रेलवे ट्रैक के पास बनी 48 हज़ार झुग्गी झोपड़ियां 14 सितंबर तक करनी होंगी खाली

शिवानी रज़वारिया

दिल्ली एनसीआर में रेलवे पटरियों के पास बनी 48 हज़ार झुग्गी झोपड़ियों को 3 महीने का अल्टीमेटम सौंपा गया है। इन 3 महीने के अंदर 48 हज़ार झुग्गी झोपड़ियों (Slum Areas) को खाली करना होगा। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया है। रेलवे विभाग ने रेलवे ट्रैक के पास बनी झुग्गी झोपड़ियों के पास नोटिस चिपका दिया है। इस नोटिस ने 14 सितंबर तक झुग्गियां खाली करने का अल्टीमेटम दिया गया है।

जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि दिल्ली एनसीआर में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटरियों के आसपास बनी झुग्गियां हटाई जाएं साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि कोई भी अदालत झुग्गी झोपड़ियों को हटाने पर स्टे नहीं देगी।

इस नोटिस के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। पूर्व न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा दिए गए निर्देशों को चुनौती देते हुए वह उच्चतम न्यायालय पहुंच गए है। अदालत ने दिल्ली में लगभग 48 हज़ार झुग्गी झोपड़ी के साथ-साथ रेलवे पटरियों को भी हटाने का निर्देश दिया था।

इससे पहले 2018 में भी दिल्ली हाई कोर्ट ने रेलवे ट्रैक के सेफ़्टी ज़ोन में बनी जुग्गियों को हटाने का आदेश दिया था। पर उस वक्त राजनीतिक पार्टियां झुग्गी वासियों के समर्थन में उतर आई थीं और उस दौरान काफ़ी पॉलिटिकल ड्रामा हुआ था।सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह आदेश एमसी मेहता मामले में दिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट साल 1985 के बाद से दिल्ली और उसके आसपास प्रदूषण से संबंधित मुद्दों पर समय-समय पर आदेश जारी करता रहता है।

भारतीय रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि दिल्ली-एनसीआर में 140 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन के साथ झुग्गीवासियों का अतिक्रमण है, जिसमें से 70 किलोमीटर लाइन के साथ बहुत ज्यादा है। यहां करीब 48000 झुग्गियां हैं। रेलवे ने कहा कि एनजीटी ने अक्टूबर 2018 में आदेश दिया था, जिसके तहत इन झुग्गी बस्तियों को हटाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया था।

लगभग 48 हज़ार झुग्गी झोपड़ियों को हटाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया है। कोरोना काल के बीच झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों का रहने का इंतजाम कहां होगा और कैसे होगा यह सवाल तो बहुत बड़ा है, चिंतापूर्ण है। पर एक सवाल यह भी है कि पिछली बार राजनीतिक पार्टियों ने बड़े पैमाने पर इस मामले में हस्तक्षेप किया था तो अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजनीतिक पार्टियों का क्या रुख होगा?

 

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