8 जनवरी 1024 सोमनाथ की लूट: 50 हजार पुजारियों और भक्तों का कत्ल

रमेश शर्मा

इतिहास में कुछ तिथियाँ और उनमें घटी घटनायें ऐसी हैं कि जिनके स्मरण से आज भी रोंगटे होते हैं। ऐसी ही एक घटना हैं सोमनाथ की लूट और वहां उपस्थित श्रद्धालुओं की सामूहिक हत्याएँ। यूँ तो सोमनाथ का इतिहास लूट, विध्वंस और हत्याकांड से भरा है। पर मेहमूद गजनवी की लूट इतनी बीभत्स थी कि जिसका वर्णन हृदय को विदीर्ण कर देता है।
सोमनाथ की लूट और विध्वंस की यह घटना 8 जनवरी 1024 की है। उस दिन लुटेरे मेहमूद गजनवी और उसकी फौज ने केवल सोमनाथ मंदिर का विध्वंस किया बल्कि वहां उपस्थित एक भी व्यक्ति को जीवित न छोड़ा । महिलाओं का मान हरण किया गया और फिर क्रूरता से भरी मौत दी गई ।
सोमनाथ में विदेशी आक्रांताओं की यह पहली लूट नहीं थी। इस पहले और बाद में भी लूट हुई है और विध्वंस हुआ है। लेकिन इस लूट की क्रूरता और हिंसा के वर्णन के लिये शब्दों की सीमा भी बाँध नहीं पाती ।
सोमनाथ में पहली लूट  सिंध में तैनात अरब के गवर्नर जुनायद ने की थी । यह गवर्नर वही है जो सिंध में मोहम्मद बिन कासिम की फतह के बाद तैनात हुआ था । जुनायद ने समुद्री रास्ते से हमला बोला और लूट कर लौट गया । जिसका पुनरुद्धार गुजरात के शासक नागभट्ट ने किया था ।
लेकिन मेहमूद गजनवी की लूट साधारण नहीं थी वह पूरी तैयारी से आया था । इस लूट और विध्वंस का वर्णन भारतीय इतिहास में कम और अल्बरूनी के वर्णन में अधिक मिलता है । बाद में जो भी लिखा गया उसका आधार अल्बरूनी का ही वर्णन है । अल्बरूनी ने न केवल लूट और विध्वंस का वर्णन किया है बल्कि लूट और आक्रमण की रणनीति का उल्लेख किया है । इस वर्णन के अनुसार मेहमूद ने अपने कुछ एजेन्ट पहले भेज दिये थे जो वेश बदल कर रहते थे और उन्होंने पूरी जमावट कर ली थी। जिसमें कुछ व्यापारियों के वेष में तो कुछ फकीरों के वेष में थे। यही नहीं मेहमूद ने एक नजूमी को भी भेजा था। नजूमी यनि भविष्य बताने वाला । जब मेहमूद ने गुजरात पर आक्रमण किया तब गुजरात में भीमदेव का शासन था। नजूमी ने राजा को चौबीस घंटे रुक कर मुक़ाबला करने की सलाह दी थी । यह मेहमूद की योजना थी। वह रास्ते में युद्ध लड़ना नहीं चाहता था और पूरी शक्ति के साथ सोमनाथ पहुंचना चाहता था। इसलिए उसने जो मार्ग चुना था वह लंबा जरूर था पर भारतीय रियासतों के किनारे से निकला था। उसने रास्ते में केवल दो स्थानों में युद्ध लड़ा। बाकी जगह रसद और भेंट लेकर आगे बढ़ता रहा।
गुजरात के राजा ने चौबीस घंटे रुकने की बात मानी। और रुक गया। मेहमूद ने इस समय का फायदा उठाया और सीधा सोमनाथ धमक गया। राजा अधिकांश सेना राजधानी की सुरक्षा में लगी रही। मंदिर की सुरक्षा के लिये सेना पहुंच ही न सकी।
उस दिन वहां कोई उत्सव चल रहा था । आँधी की तरह दौड़ते आये हमलावरों से बचने के लिये भी वीरावल के लोग मंदिर में शरण लेने पहुंच गये । तब मंदिर के भीतर कोई पचास हजार स्त्री पुरुष और बच्चे थे । यह आकड़े भी अल्बरूनी ने ही लिखे हैं । गजनवी के सिपाही आँधी की तरह टूट पड़े । जिनकी संख्या पाँच हजार थी ।  सबसे पहले कत्ले-आम शुरू हुआ । और योजना के अनुसार एक दस्ते ने शिवलिंग का विध्वंस किया । वहां जितने लोग थे सबको यातनायें देकर धन एकत्र किया गया । पहले पुरूषों और बच्चो को मारा फिर महिलाओं को । शायद ही कोई महिला ऐसी बची हो जिसके साथ बलात्कार न हुआ हो । सैकड़ो महिलाओं को पशुओं की भांति बांधकर ले जाया गया जिन्हे बाद में गुलामों के बाजार में बेचने के लिये भेज दिया गया ।
इस विध्वंस के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और धार के राजा भोज ने जीर्णोद्धार कराया । लेकिनसोमनाथ में गजनवी की लूट अंतिम नहीं थी । इसके बाद दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में लूट की विध्वंस किया । फिर 1706 में औरंगजेब ने भी यही दोहराया ।
सोमनाथ कुल सात बार लूटा गया । इस समय जो सोमनाथ मंदिर दिख रहा है इसका श्रेय के एम मुंशी और सरदार वल्लभ भाई पटेल को जाता है । स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सुविख्यात लेखक और नेहरूजी की केबिनेट में रहे के एम मुंशी जी ने पहली बार भग्न सोमनाथ के दर्शन 1922 में किये थे तभी उनके मन में संकल्प आया जो 1955 में पूरा हुआ । इसका पूरा वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक “पिलग्रिमेज टू फ्रीडम” में किया है । उन्होंने अपनी इस पुस्तक में एक कैबिनेट बैठक के बाद  नेहरूजी से हुई बातचीत का भी विवरण दिया है जिसमें नेहरूजी ने सोमनाथ के जीर्णोद्धार के प्रति अपनी असहमति जताई थी ।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं। चिरौरी  न्यूज़ का लेखक की विचारों से सहमत होना अनिवार्य नहीं है।)

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