पुस्तक समीक्षा: मैथोलोजिकल फिक्शन की डार्क हॉर्स है महाभारत आधारित पौराणिक रहस्य गाथा ‘आहुति’

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: हिन्द युग्म द्वारा प्रकाशित सौरभ कुदेशिया रचित महाभारत आधारित पौराणिक शृंखला की दो पुस्तकें (खंड 1: आह्वान और खंड 2: स्तुति) 2020 में रिलीज होने के बाद से पाठकों को इसके तीसरे भाग ‘खंड 3: आहुति’ की प्रतीक्षा थी।

खंड 3: आहुति की कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ से खंड 2: स्तुति में खत्म होती है। शुरुआती अध्याय कब साँस रोके पढ़ते हुए निकल जाते हैं, समझ ही नहीं आता है। उसके बाद शुरू होता है परत दर परत उन रहस्यों का उधड़ना जो ‘खंड 1: आह्वान’ पढ़ने के बाद से पाठकों के दिलों-दिमाग पर हावी थे। एक तरफ डॉ. स्वामी और डॉ. महापात्रा की कारगुजारियों से पर्दा उठता है, दूसरी तरफ रोहन की वसीयत के नए आयाम खुलते हुए कहानी को नए मोड़ पर लाकर खड़ा करते हैं। वसीयत के सच का पीछा करते श्रीमंत परिवार और जयंत की कशमकश और बेचैनी जब उभरती है तो पाठकों को उसका हिस्सा बनाए बिना नहीं छोड़ती है।

महाभारत से जुड़े अध्याय आने तक कहानी पूरी तरह पाठकों पर हावी हो जाती है। मौनपर्व का हर अध्याय पढ़ने के बाद महाभारत में वर्णित घटनाओं और उनके पात्रों के बारे में कई सवाल उठते हैं। कई सवाल तर्क और वितर्क में इतने उलझ जाते हैं कि शक होने लगता है कि ‘आहुति’ वाकई एक कहानी है, या इतिहास का हिस्सा। कहानी पढ़ते हुए इतिहास कब सच और कल्पना की ओट से झाँकता है और कब छुप जाता है समझ ही नहीं पड़ता। लेखक की तारीफ करनी होगी जो उसने पंच तत्त्वों से जुड़ी एक अनोखी परियोजना की परिकल्पना कर उसे इतने सरल शब्दों में प्रस्तुत किया है। (हालांकि उस विषय का कोई भी ज्ञान नहीं होने के कारण मुझे वो कुछेक अध्याय समझने में काफी वक्त लगा!) कई अध्याय तो ऐसे लिखे गए हैं,जिन्हें दोबारा पढ़ने पर इतिहास और कहानी के अलग मायने दिखते हैं।

अब तक इस शृंखला की सभी भाग एक रिसर्च की भांति लिखे गए है, जिसमें कथा हावी है और प्रत्येक किरदार अपने आप में पूर्ण होते हुए भी अपूर्ण लगता है। मृत्युशिर, नीलकमल और साक्षी जैसे डरावने किरदारों का व्यक्तित्व जैसे-जैसे टुकड़ों में खुल रहा है वो उनके बारे में एक डरावनी उत्सुकता पैदा करता है। हर पात्र रहस्यमय, हर शब्द एक संपूर्ण कहानी छिपाए हुए लगता है। हर अध्याय में श्रीमंत परिवार की चिंता होती है। कथानक का कसाव और प्रवाह इतना मधुर है कि पढ़ते हुए समय का एहसास नहीं होता है। कुछेक संवादों को छोड़ दिया जाएतो हर संवाद जीवंत जान पड़ता हैं। घटनाएँ इस कदर आपस में पिरोई गयी हैं कि उनका तालमेल दिमाग पर अमिट छाप छोड़ता है।

‘आह्वान’ और ‘स्तुति’ पढ़ने के बाद जो उम्मीदें ‘आहुति’ से जागी थी, यकीन मानिए यह उन सब उम्मीदों से आगे बढ़कर ‘खंड 4 : अग्निहोत्र’ से जुड़ी उम्मीदों को नई ऊँचाइयाँ प्रदान करती है। जितनी मेहनत लेखक ने कहानी और लेखनी पर की है, यदि उतनी हिन्द युग्म ने इस शृंखला के प्रमोशन में करे तो इस शृंखला की हर किताब एक तगड़ी बेस्टसेलर होने के लायक है। प्रमोशन की कमी के कारण पाठकों का एक बड़ा वर्ग अभी भी इस अद्भुत शृंखला से वंचित है। आज जब हर प्रोडक्ट, हर किताब प्रमोशन की मोहताज है, इस शृंखला में बेस्टसेलर होने की भरपूर क्षमता होने और पाठकों का समर्थन मिलने के बाद भी इसके बारे में हिन्द युग्म की उदासीनता हैरान करती है। यदि हिन्द युग्म अपने नए डार्क हॉर्स की तलाश में है, तो इस श्रृंखला के रूप में उसके पास एक सुनहरा अवसर है।

पाठकों को एक और बेहतरीन पुस्तक देने के लिए सौरभ जी और हिन्द युग्म को धन्यवाद और ‘आहुति’ की सफलता के लिए अग्रिम शुभकामनाएं। ‘अग्निहोत्र’ की बेसब्री से प्रतीक्षा है। उम्मीद है इस बार पाठकों को लंबा इंतजार नहीं कर पड़ेगा।

हिन्द युग्म प्रकाशन से प्रकाशित सौरभ कुदेशिया की ये पुस्तक अमेज़न पर उपलब्ध है जिसका लिंक नीचे दिया गया है।

पुस्तक:  आहुति (महाभारत आधारित पौराणिक रहस्य गाथा खंड 3)

लेखक: सौरभ कुदेशिया

पब्लिशर: हिन्द युग्म प्रकाशन

पुस्तक प्राप्ति लिंक: https://www.amazon.in/gp/product/B096PLG43K 

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