म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के कारण और होमियोपैथी में इलाज

डॉ एम डी सिंह 

कोरोना मरीज़ों के लिए ब्लैक फंगस एक नई चुनौती उभर कर सामने आ रहा है । कोरोना संक्रमित  मरीज़ों और कोरोना  से जंग जीत चुके मरीज़ों के लिए ब्लैक फंगस घातक सिद्ध हो रहा है और ब्लैक फंगस से कई मामलों में मरीज़ जान की बाज़ी हार भी चुके है ।

सही बात तो यह है कि यह उतना भयानक नहीं है जितना इसके बारे में प्रचारित हो रहा है, क्योंकि इसकी मारटेलिटी रेट ज्यादा होने पर भी संक्रामकता अत्यधिक कम है। यह फंगस हम सब के आसपास मिट्टी और हवा में हमेशा मौजूद रहता है, हम भी उसके साथ रहने की आदी हैं। स्वस्थ एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त किसी भी व्यक्ति को यह फंगस कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। इसलिए बहुत बीमार और रोग प्रतिरोधक क्षमता खो चुके लोगों को छोड़कर अन्य किसी को इससे डरने की जरूरत नहीं।

परिचय ,कारक , संक्रमण काल और निवास-

पहले म्यूकोरमाइकोसिस को जाइगोरमाइकोसिस के नाम से भी जाना जाता रहा है। यह बहुत ही कम होने वाला मारक फंगल डिजीज है। यह आमतौर पर पहले से अत्यधिक बीमार, अंग प्रत्यारोपण करवाए हुए, कैंसर जैसे अनेक कठिन रोगों से पूर्वपीड़ित एवं अनेक जीवन रक्षक औषधियों तथा आक्सीजन, वेंटिलेटर आदि के सपोर्ट पर जीवित रोग प्रतिरोधक क्षमता खोए हुए लोगों को प्रभावित करता है।

यह भयानक संक्रमण फंगस पोर्स के एक ग्रुप माइकोरमाइकोसेट्स के द्वारा शरीर में पहुंच अपना कॉलोनी बढ़ा कर उत्पन्न किया जाता है। जो मूलतः गर्मी और बरसात के मौसम में यदा-कदा कहीं भी देखा जा सकता है।

इस फंगस के स्रोत धूल, मिट्टी, पशुओं के डंग(गोबर) , सड़ रहे खर-पतवार, निर्माण कार्य चल रहे स्थल हैं। अस्पतालों में जहां साफ-सफाई की सुविधा कम हो , लंबे समय से लगे राइस ट्यूब, कैथेटर, ऑक्सीजन ट्यूब एवं बैंडेज इत्यादि भी इस फंगस के रिहायशी स्थल हैं ।

गर्मी के दिनों में वायु में भी इसके पोर्स पाए जाते हैं।

प्रकार एवं लक्षण- इस संक्रमण के प्रकार मानव शरीर के प्रभावित अंगों के आधार पर निश्चित किए गए हैं।

1-राइनोसेरेब्रल म्यूकोरमाइकोसिस

2- पलमोनरी म्यूकोरमाइकोसिस

3- डर्मल म्यूकोरमाइकोसिस

4- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल म्यूकोरमाइकोसिस

5-डिससेमिनेटेड म्यूकोरमाइकोसिस

1-राइनोसेरेब्रल म्यूकोरमाइकोसिस- इस प्रकार में नाक को संक्रमित कर किए ब्रेन तक पहुंच जाता है। जिससे निम्न लक्षण उत्पन्न होते हैं-

A- चेहरे पर एक तरफ सूजन हो जाना।

B- तेज सर दर्द।

C- राइनाइटिस।

D- नाक के ब्रिज और मुंह के तालूमें काले रंग का अल्सरेटिव घाव बनना।

E- नाक से काले रंग का बदबूदार मवाद निकलना।

F- नाक और जबड़े के कार्टिलेज में सड़न।

G– आंखों की आर्बिटल मसल का गल जाना।

H- जबड़े से लेकर कानों तक दर्द एवं श्रवण शक्ति का लोप।

I- आंख की रोशनी खत्म हो जाना।

J- ब्रेन में मैलिगनेंट सेरेब्रल अल्सर का बनना जिसके कारण मृत्यु।

K-तेज बुखार

2–पल्मोनरी म्यूकोरमाइकोसिस – जब फंगस वाह्य श्वसन मार्ग से होते हुए फेफड़ों तक पहुंच जाता है तो निम्न लक्षण उत्पन्न करता है-

A- सामान्य अथवा तेज निरंतर रहने वाला बुखार।

B- सूखी अथवा काली मवाद युक्त कफ वाली खांसी।

C- खांसते समय सीने में एक अथवा दोनों तरफ दर्द होना। सीने में दर्द बिना खांसी की भी बना रह सकता है।

D- सांस में रुकावट होती है । रोगी सांस पूरी नहीं ले पाता। दम फूलता है।

E- तेज प्रभाव वाली ब्रोंकाइटिस।

F- फेफड़ों से रक्त वाही नाड़ियों में पहुंचकर खून के थक्के जमा सकता है।

3- डरमल या कुटेनियस अथवा स्किन म्यूकोरमाइकोसिस- इस अवस्था में फंगस त्वचा पर हुए किसी जख्म अथवा जल जाने के स्थान से स्किन में अपनी कॉलोनी बनाकर उसे आक्रांत करता है। एवं निम्न प्रकार की लक्षण पैदा करता है-

A- त्वचा की इंफेक्टेड सतह पहले बहुत लाल और गर्म हो जाती है। जो बाद में चलकर काले रंग की हो जाती है।

B- संक्रमित स्थान पर छाले निकल आते हैं अथवा गहरे अल्सरेटिव घाव बन जाते हैं।

C- त्चचा दर्दयुक्त हो जाती है एवं उसकी स्पर्श कातरता भी वढ़ी रहती है।

D- घावों के चारों तरफ काले घेरे बने रहते हैं।

4-गैस्ट्रोइंटेसटाइनल म्यूकोरमाइकोसिस – दूषित जल अथवा भोजन के साथ पेट में पहुंचकर यह फंगस निम्न लक्षण पैदा करता है-

A- मिचली उल्टी होना।

B- तेज मरोड़ युक्त अथवा रह-रह कर उठने वाला पेट दर्द।

C- आंतों में रक्त स्राव।

5 होम्योपैथिक चिकित्सा- डिससेमिनेटेड म्यूकोरमाइकोसिस- पूर्व से ही किसी मेडिकल कंडीशन से प्रभावित मरीज में इसके लक्षणों को अलग कर पाना कठिन होता है। पूर्ववर्ती रोग के लक्षणों को के साथ मिलकर उन्हें काफी बढ़ा देता है।

बचाव-

1- चिंता और तनाव से मुक्त रहकर अपनी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना चाहिए।

2- शुद्ध आसानी से पचने वाले ताजा भोजन एवं ताजी मौसमी फलों का प्रयोग करना चाहिए।

3- योग, व्यायाम एवं प्राणायाम द्वारा अपनी शारीरिक क्षमता को सदैव ठीक रखना चाहिए।

4- अपने आसपास की एनवायरमेंट को सांप और शुद्ध रखने का भरसक प्रयास करना चाहिए।

5- एक को अजीर्ण और कब्ज से से बचा कर रखना चाहिए ।

6– रुग्ण अवस्था में मरीज के वार्ड, बेड, कैथेटर, बैंडेज, राइस ट्यूब एवं ऑक्सीजन ट्यूब आदि का प्रॉपर तरीके से समय-समय पर सफाई हो जाना चाहिए।

7- ऐसे कमजोर मरीजों के रूम ने अच्छा एयर फिल्टर लगा होना चाहिए।

8- कोई भी लक्षण मिलने पर तुरंत एंटीफंगल औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।

होमियोपैथिक चिकित्सा-

रोग प्रतिरोध के लिए- होम्योपैथी की दो औषधियां

1-मैंसीनेला 200 एवं

2-हिप्पोजेनियम 200 का प्रयोग एक एक हफ्ते पर एक खुराक बारी बारी से जीर्ण मरीजों को देकर इस फंगस के प्रकोप से बचाया जा सकता है।

रोग उत्पन्न हो जाने की अवस्था में-

उपरोक्त दोनों प्रतिरोधी औषधियां रोग उत्पन्न हो जाने की अवस्था में भी सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध होंगी उनके अतिरिक्त लक्षण अनुसार न्यू औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है।

संभावित दवाएं-

1-आरम मेटालिकम2-एरम ट्रिफलम,3-अरण्डो

4-मेजेरियम 5-मैलेन्ड्रिनम, 6-मर्क्यूरियस

7-प्रूनस स्पाइनोसा, 8-सिन्नाबेरिस 9-रस टाक्स

10-टिकुरियम मेरम वेरम, 11-आर्सेनिक एल्बम,

12-एसिड नाइट्रिक 13- काली आयोडेटम

14- एसिड म्यूर 15-आर्स ब्रोमाइड , 16-काण्डुरैंगो,

17-क्रिएजोट इत्यादि ।

 

नोट- उपरोक्त औषधियों का प्रयोग किसी क्वालिफाइड होमियोपैथिक चिकित्सक की सलाह पर ही करना चाहिए।

(लेखक डॉ एम डी सिंह  महाराज  गंज गाज़ीपुर उ प्र भारत में  होमियोपैथिक चिकित्सक हैं. चिरौरी न्यूज़ का आर्टिकल में लिखे बातों से सहमत होना अनिवार्य नहीं है. )

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