श्रीलंका को भारी पड़ी चीन की नजदीकी

China's proximity to Sri Lanka cost them dearly निशिकांत ठाकुर

अपनी आजादी के बाद सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे पड़ोसी राष्ट्र श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पिछले दिनों अपने भाई और वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे को बर्खास्त कर दिया। साथ ही अली साबरी को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन उन्होंने महज 24 घंटे के अंदर मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया। सरकार के लिए विकट स्थिति तब पैदा हो गई, जब सत्तारूढ़ गठबंधन के दर्जनों सांसदों ने सरकार का साथ छोड़ दिया। साथ ही केंद्रीय बैंक के गवर्नर अजित निबार्ड कराबल ने भी पद छोड़ दिया है।

आर्थिक संकट से उत्पन्न कठिनाइयों के कारण बढ़ते जनाक्रोश से निपटने के लिए राष्ट्रपति ने सभी विपक्षी दलों को एकता कैबिनेट में शामिल होने का न्योता दिया, लेकिन सभी दलों ने आमंत्रण को ठुकरा दिया। श्रीलंकाई सरकार की गलत नीतियों और पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण वहां के तमिल समुदाय में गहरा असंतोष है। जो तमिल पार्टियां वर्ष 1973 तक राष्ट्र विभाजन के विरुद्ध थीं, वह भी अब अलग राष्ट्र की मांग करने लगी हैं। सरकार की नीतियों के कारण बहुसंख्यक सिंहली समुदाय को जहां लाभ हुआ, वहीं अल्पसंख्यक तमिलों को हानि।

कभी श्रीलंका खुशहाल देश हुआ करता था। दरअसल, श्रीलंका समुद्र से उभरा हुआ पहाड़ है, जहां फसलें कम होती हैं, लेकिन चाय, मसाले, रबड़ और हार्टिकल्चर की तमाम फसलें ही उसकी इकानमी हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रतिव्यक्ति आय, प्रतिव्यक्ति जीडीपी में लंका के आंकड़े वैश्विक स्तर के थे। कुल मिलाकर  श्रीलंका दक्षिण एशिया का सबसे समृद्ध देश था। प्रभाकरण को मारकर राजपक्षे और उनका परिवार जनता का हृदय सम्राट बन गया। बहुमत पर  बहुमत मिला, ताकतवर सरकार बनी। ताकतवर सरकार, यानी बाजार, व्यापार, बैंक, अर्थव्यवस्था, कानून, कोर्ट और मीडिया सब पर पूरा नियंत्रण। तभी आज श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की तानाशाही है।

तानाशाह  को साइंस, टेक्नोलॉजी, हिस्ट्री, सिविक्स, एग्रीकल्चर, बैंकिंग, बिजनेस, स्पोर्ट्स, स्पेस, राडार; यानी दुनिया की हर चीज के बारे में व्यापक जानकारी होती है। डिक्टेटर भला आदमी होता है, उसकी नीयत में खोट नहीं होता। तो राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने निर्णय लिया- हमारा देश विश्वगुरु बनेगा, और वह वहीं मात खा गए। एकदम आर्गेनिक! एक दिन घोषणा कर दी कि आज से देश मे फर्टिलाइजर बैन, कीटनाशक बैन! किसी तरह के केमिकल का देश में उपयोग नहीं होगा। जो ऐसा करेगा, सजा पाएगा। देश रातों-रात आर्गेनिक हो गया। राष्ट्रपति का दूनिया में डंका बजने लगा। यूएन ने तारीफ की, लेकिन वैज्ञानिकों ने कहा, ‘नहीं, इससे श्रीलंका का कृषि क्षेत्र तबाह हो जाएगा।’ और, ऐसा ही हुआ। श्रीलंका के डिक्टेटर ने अनसुना कर दिया। मजबूत इरादे और साफ नीयत से किया गया काम तो हमेशा सफल होता है। श्रीलंका की फसलें तबाह हो गईं। उत्पादन आधा हो गया।

इधर, कोविड ने टूरिज्म खत्म किया तो इकानमी को मिलने वाली विदेशी मुद्रा भी गायब हो गई। विदेशी मुद्रा से खाने-पीने की वस्तुओं का आयात संभव नहीं हुआ। भुखमरी छाने लगी तो राष्ट्रपति ने सेना के जनरल को ड्यूटी पर लगाया। सेना घूम-घूमकर व्यापारियों के गोदामों में छापेमारी करने लगी। परिणामस्वरूप  व्यापारियों ने भी विदेश से आयात बंद कर अनाज के व्यापार से हाथ पीछे खींच लिए। यहां तक कि कृषि मंत्रालय ने भी खेती के आंकड़े जारी करना बंद कर दिया। फिलहाल श्रीलंका की इकानमी लगभग ध्वस्त हो चुकी है। श्रीलंकाई मुद्रा को कोई हाथ भी नहीं लगा रहा। आयात के लिए पैसे नहीं है। जरूरी चीजों का अभाव है, राशनिंग और कोटा निर्धारित किए जा रहे हैं। श्रीलंका में महंगाई 10 गुना तक बढ़ गई है। वहां की 50 फीसद जनता भुखमरी का शिकार होने के करीब है। लड़कियां एक किलो चावल के लिए वेश्यावृत्ति तक अपनाने के लिए मजबूर हैं। कर्ज न चुका पाने के कारण श्रीलंका को अपना हम्बनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन के हवाले करना पड़ा था। अब और कर्ज लिया जा रहा है। राजपक्षे एक ही रट लगाए हैं -देश नहीं बिकने दूंगा।’

विदेशी मुद्रा संकट और भुगतान संतुलन के मुद्दे से उत्पन्न आर्थिक स्थिति से निबटने में अक्षम रहने के कारण सत्तारूढ़ राजपक्षे परिवार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन हो रहे हैं। जनता सड़कों पर उमड़ रही है और राजपक्षे परिवार से इस्तीफा मांग रही है। सिंहली बहुल तांगले को राजपक्षे परिवार का गढ़ माना जाता है। ज्ञात हो कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे, प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे, पूर्व वित्तमंत्री वासिल राजपक्षे भाई हैं। इसके अतिरिक्त महिंद्रा राजपक्षे के पुत्र सरकार के खेल एवं युवा मामलों के मंत्री थे जिन्होंने पिछले सप्ताह इस्तीफा दे दिया। विश्व का शायद श्रीलंका ही पहला लोकतांत्रिक देश होगा, जहां एक ही परिवार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, खेलमंत्री और न जाने कितने लोग हैं जिन्होंने सरकार को अपनी मुट्ठी में जकड़ रखा है। ऐसे में देश का दिवालिया होना तो निश्चित है।
श्रीलंका में आमलोगों को परेशानी अब और बढ़ गई है। ईंधन और जरूरी वस्तुओं की भारी कमी का सामना कर रहे नागरिक सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार के खिलाफ भारी हिंसक प्रदर्शन के बीच संसद को संबोधित करते हुए सरकार के मुख्य सचेतक मंत्री जानसन फर्नाडो ने कहा  कि लोगों को हिंसा खत्म कर संकट से निपटने में सरकार की  मदद करनी चाहिए । राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे को लेकर पिछले दिनों से जो हिंसक प्रदर्शन हो रहा है उसके लिए उन्होंने कहा कि सरकार इस संकट का समाधान करेगी और राष्ट्रपति के इस्तीफे का कोई कारण नहीं है , क्योंकि उन्हें  इस पद के लिए चुना गया है ।

सत्तारूढ़ दल के सचेतक  फर्नाडो ने यह भी कहा कि इस प्रकार के घातक राजनीति की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए । भुखमरी, बेरोजगारी का आलम यह है कि विश्व के कई देशों में स्थित दूतावासों को 30 अप्रैल से बंद करने का निर्णय वर्तमान कैबिनेट ने लिया है। जिन देशों के दूतावास को बंद करने का निर्णय कैबिनेट ने ले लिया है उनमें ओसलो(नॉर्वे), बगदाद, रिपब्लिक ऑफ इराक, सिडनी को फिलहाल रखा गया है ।

श्रीलंका एक द्वीप देश है। यहां की आबादी महज 2.25 करोड़ है। एक छोटे देश में ऐसी किल्लत हो गई है कि नागरिकों को पेट्रोल-डीजल मुहैया कराने में सरकार फेल हो रही है। भारत में 140 करोड़ की आबादी होने के बावजूद हमें पेट्रोल-डीजल के लिए कहीं भी लाइन में नहीं लगना पड़ता। दरअसल, रूस अब भारत को कम कीमतों पर कच्चा तेल बेचने पर राजी हो गया है। भारत और रूस के बीच हुई इस डील से अमेरिका जैसे देश काफी नाराज हैं। श्रीलंका इस कूटनीति पर चलने में फेल रहा है। श्रीलंका को चीन की नजदीकी भारी पड़ी है। चीन की रणनीति ऐसी है कि जिस-जिस देश में उसने अपने निवेश बढ़ाए हैं, वहां राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी है।

श्रीलंका और पाकिस्तान इसके बड़े उदाहरण हैं। धीरे-धीरे पाकिस्तान भी उसी स्थिति की ओर आगे बढ़ रहा है, जो स्थिति श्रीलंका की है। कई बार सरकारों के गलत फैसले और प्राकृतिक स्थितियों के साथ बदलते हालात देश को कंगाली तक भी ले जा सकते हैं। श्रीलंका इसका साक्षात उदाहरण है। कुछ फैसले गोटाबाया राजपक्षे सरकार ने गलत किए तो कुछ हालात कोविड के चलते लाकडाउन से बिगड़े। रही-सही कसर रूस-यूक्रेन युद्ध ने बिगाड़ दी। यही वह वजहें हैं, जिसने श्रीलंका को कंगाल कर दिया है। लोगों के पास खाने के लिए कुछ हीं बचा है।  पेट्रोल खत्म है, बिजली नहीं है, अस्पतालों का कामकाज ठप है, देश पर मोटा कर्ज चढ़ चुका है, लोग सड़कों पर आ गए हैं… आखिर किसी देश के इससे भी खराब दिन और क्या आएंगे! यहां तक कि देश की विदेशी मुद्रा का भंडार खाली है। महंगाई चरम पर है। लोग अब नावों के जरिये वहां से निकलकर पड़ोसी देशों की ओर भाग रहे हैं।

पता नहीं, श्रीलंका के इस आर्थिक संकट का पटाक्षेप कब होगा, लेकिन इतना तो तय है कि इसका दूरगामी और भयावह परिणाम भारत सहित विश्व के कई देशों पर पड़ेगा। कुछ विश्लेषक मानते हैं कि सत्ता पर एक ही परिवार के कब्जे का यही परिणाम होता है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि जिस देश में व्यावसायिक कारणों से चीन की घुसपैठ हुई, उसकी आर्थिक स्थिति इसी तरह धूल—धूसरित हुई है। संभव है, यह चीन की चाल भी हो कि श्रीलंका पर कब्जा कर भारत के खिलाफ साजिश रच दें, क्योंकि श्रीलंका से भारत की दूरी समुद्री रास्ते से बहुत ही करीब और सुगम है। ऐसी स्थिति के दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए ही भारत, श्रीलंका को हरसंभव मदद भी दे रहा है।

Due to ego and stubbornness, the world is on the cusp of the third world war.(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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