नींव के पत्थरों को मत भूलिए

निशिकांत ठाकुर

लंबे संघर्ष के बाद भारत जब 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, उस समय किसी भी विदेशी राजनीतिज्ञ या इतिहासकार को यह विश्वास नहीं था कि यह देश अखंड रह पाएगा। उनकी सोच प्रायः यही रही होगी कि अभी तो यह देश दो टुकड़ों में ही बँटा है, कुछ दिनों बाद ही एक-दो ही नहीं कई और टुकड़ों में बट जाएगा और कुछ वर्षों के बाद भारतवर्ष का नामो-निशान मिट जाएगा। विदेशी मूल ही नहीं, विदेशी सोच से प्रभावित कई राजनेता और बुद्धिजीवी भी यही सोचे बैठे थे। ऐसे ही एक विचारक तो भारत के 200 टुकड़ों में तोड़ने की पूरी योजना देकर बैठे थे। अभारतीय सोच के उन राजनेताओं-बुद्धिजीवियों का यह सोचना था कि इस विशाल भूखंड और आबादी वाले देश में एक नहीं कई भाषाएँ बोली और लिखी जाती हैं। इसमें विभिन्न जातियों वर्णों और धर्मों के लोग रहते है, जिनका आपस में कोई तालमेल अपनों से नहीं होता है। अब सब अपने अपनों से लड़ेंगे और भारत टुकड़ों-टुकड़ों में बँटकर स्वतः खत्म हो जाएगा।

उन विदेशी राजनीतिज्ञों और इतिहासकारों का यह सोचना किसी तरह गलत नहीं था। वह इसलिए क्योंकि उन्होंने भारत को पहले मुगल आक्रांताओं और फिर अंग्रजों द्वारा लूटे-खसोटे जाते देखा और इन्हीं भारतीयों को गुलाम बनाकर कोड़े खाते देखा फिर उन्हें क्यों यह विश्वास होता कि भारतवर्ष अखंड रह सकेगा। मुगल आक्रांताओं ने पहले भारत में अकूत संपत्ति वाले सोमनाथ मंदिर को लूटा, फिर मात्र बारह हजार लुटेरों के साथ आकर अखंड भारत को गुलाम बनाकर सैकड़ों वर्षों तक रखा और फिर यह दावा करने लगे कि वह तो इसी देश के हैं और यहीं के होकर रह गए। फिर अंग्रेज केवल तथाकथित व्यापार करने के उद्देश्य से भारतीय भूभाग में घुसपैठ करके अपने सुर्ख लाल गालों के बल पर गली-गली घूमकर खिलौना बेचने का बहाना बनाकर आए फिर शासक बनकर दो सौ वर्षो तक हम भारतीयों को गुलाम बनाकर रखा। कई सहस्राब्दियों के इतिहास वाले भारत के इस नगण्य से कालखंड के मामूली इतिहास को जानने वाला कोई भी यह कह सकता था कि भारतवर्ष अंग्रजों के जाने के बाद अधिक दिनों तक अखंड नहीं रह सकेगा। स्वयं अंग्रेज भी भारतीयों से कहते थे कि पहले शासन चलाने के लिए बुद्धि तो विकसित कर लो।

हमने हजारों लोगों से और इतिहास से यह जाना है कि हमें अंग्रेजो से आजादी कैसे मिली और कितने देशभक्त निर्लोभ भाव से संघर्ष करते हुए शहीद हो गए। इनमें कई संगठन शामिल थे, कुछ गरम दल के तो कुछ नरम दल के। गरमदल के हजारों शहीदों ने अपनी कुर्बानी तो नरम दल के आंदोलनकारियों ने कालापानी की सजा के साथ उनके तरह-तरह के अत्याचारों को सह कर दिया। सुभाष चंद्र बोस सहित कई महान क्रांतिकारी गरम दल के साथ जुड़े थे, वहीं नरम दल का नेतृत्व मोहनदास करमचंद गांधी कर रहे थे। गरम दल को नेतृत्व देने वाले सुभाष चंद्र बोस प्रशासनिक सेवा छोड़कर आए थे। उनका कहना था कि 38 करोड़ की भारतीय आबादी पर एक लाख अंग्रेज कैसे राज्य कर सकते हैं। गांधी जी सुभाष चंद्र बोस को समझाया करते थे कि अंग्रेज केवल एक लाख ही नहीं हैं, उसके पीछे अमेरिका खड़ा है। पर, सुभाष बाबू इस बात को कहाँ मानने वाले थे!

आजादी के संदर्भ में आम विचारको में और यहाँ तक कि इतिहासकारों में एक राय नहीं है। कुछ विचारकों का मानना है कि महात्मा गांधी पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रति उदार थे और मोतीलाल नेहरू के दबाव में थे। इसीलिए सबको पीछे छोड़ते हुए देश के दो टुकड़े कराए और जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री का पद दिलवाया। जिसके कारण देश का विकास नहीं हुआ क्योंकि देश पर नेहरू परिवार का वर्चस्व रहा और जैसा वह चाहते थे अथवा उनका परिवार चाहता वैसा ही होता रहा। गांधी जी के प्रति कुछ दल विशेष में इतना आक्रोश था कि आजादी के छह महीने में ही गांधी की हत्या दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी में सार्वजनिक रूप से प्रार्थना सभा में गोली मारकर कर दी गई। गांधी जी पर कई चारित्रिक आरोप भी लगाए गए, लेकिन इस पर स्वयं गांधी जी का कहना था कि मेरा राजनीतिक जीवन पारदर्शी है, इसलिए मेरी जो कमी है उसे आप सार्वजनिक करें ताकि उससे उन्हें भी सीख मिल सके इसलिए राजनैतिक रूप से देश का अगुआ होते हुए भी उन्होंने कोई सरकारी पद नहीं लिया।

वर्तमान में सत्तारूढ़ दल बार बार नेहरू और नेहरू परिवार को कोसते हैं कि सत्तर साल में भारत का कोई विकास ही नही हुआ। यह बात वही कह रहे हैं जिनका जन्म भी आजादी के बाद हुआ। आजादी के पहले के कुछ ही नेता आज जीवित हैं जो इस बात को जानते हैं कि भारत को अखंड रखने और उसके विकास के लिए उन नेताओं ने कितनी मेहनत की होगी। जबकि विदेशी राजनीतिज्ञ और इतिहासकार यह मान चुके थे कि भारत वर्ष अधिक समय तक अखंड नहीं रह पाएगा और वह कुछ ही समय बाद खंड-खंड में विभाजित होकर समूल नष्ट हो जाएगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत को आधुनिक भारत के निर्माण के लिए जवाहर लाल नेहरू ने जो कुछ भी किया इसके लिए उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है। उन्होंने शिक्षा से लेकर औद्योगिक जगत तक को बल देने के लिए कई काम किए। उन्होंने आईआईटी, आईआईएम और कई विश्वविद्यालयों की स्थापना की। साथ ही उद्योग-धंधों की भी शुरुआत की। भाखड़ा नांगल बाँध , रिहंद बाँध और बोकारो इस्पात कारखाने की स्थापना की। उनका कहना था कि उद्योग यदि नहीं होंगे तो हमारे पढ़े-लिखे युवा कहाँ जाएंगे। भारत को एक कड़ी में बाँधने के लिए संविधान का निर्माण किया गया, पंचवर्षीय योजना बनाई गई।

नेहरू विपक्ष द्वारा की गई आलोचना को बुरा नहीं मानते थे और उन्हें पूरा सम्मान देते थे। भारत सदैव अखंड रहे इसका सबसे पहले ध्यान रखा गया और 5 अक्टूबर 1963 को 16 वा संशोधन पेश किया गया। जिसके कारण अलगाववादियों की कमर टूट गई। साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अंतर्गत “मैं भारत की स्वतंत्रता एवं अखंडता को बनाए रखूंगा” जोड़ा गया। अब ऐसे इतिहासकार और आजादी के बाद पैदा हुए हमारे राजनीतिज्ञ स्वयं सोचें कि यदि नीव मजबूत नहीं होती आज भारत जिस प्रकार विकास के दावे कर रहा है ऐसा कर सकता था। आलोचना इस चीज की करिए जिन्हें जानबूझकर किया गया हो। यदि आलोचना को ही हम अपना धर्म बना लेंगे तो कभी न कभी कोई आपसे भी पूछेगा और आपके प्रति अनर्गल बातें सार्वजनिक मंच से करेगा। इसलिए अपने पद के हिसाब से कोई भी बात बोलने से पहले सोचिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)।

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