प्रेम का हर रूप मिलेगा “एडल्ट चुस्कियां” में
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: कविता अहसासो का नाम है। पर यही अहसास पाठक को छू जाएं, तो समझें कि कवि अपनी बात कहने में सफल हुआ। कविताओं के लिहाज से आप साल 2021 से पहले के साहित्य के पन्नों को पलटें। अनेकों किताबें मिलेंगी। कुछ को किताबें नहीं ग्रंथ कहना ठीक होगा। हम किसी कवि या उनकी लेखनी पर प्रहार नहीं कर रहे हैं। वो कविताएं उस परिस्थितियों और समयकाल का सटीक आंकलन देती हैं। फिर चाहे सुमित्रानंदन पंत हों या निराला या अन्य हिंदी साहित्य के दिग्गज। उन कविताओं में खूबसूरती थी व्याकरण, भाषा, भाव…हर लिहाज से। लेकिन एडल्ट चुस्कियां, भी अपनेआप में अनोखी है। हिंदी साहित्य में अनूठा प्रयोग करता काव्य संग्रह।
इन कविताओं का भाव बोध बहुत हटकर है । इनमें नये तरह की शब्दावली है और संभवतः बिल्कुल नये अंदाज में प्रस्तुति । आप भी देखिए :
आज कुछ नया करते हैं
बस, बंद करो रोना धोना
रोमांटिक डेट पर चलते हैं ,,,,
जिंदगी के रोने धोने से दूर रोमांटिक डेट की कल्पना कितनी खुशगवार ,,
फिर अगली कविता में आइए :
वो कच्ची पक्की बातें
वो मिस करती हूं
उन दिनों को
फिर से हम बच्चे बन जायें ,,,
यही तो है कि हम से फिर से बच्चे होने की इच्छा करते हैं । तभी तो कहते है कि तुम्हें ही बहुत जल्दी पड़ी थी बड़े होने की । अब क्या मिला बचपन खोकर ?
इश्क का रंग भी दीप्ति का सबसे हटकर रंग है :
इश्क में रंगे हो
तो रेड पिंक में
क्यों जकड़े हो ?
रंगों की दुनिया में समा जाओ
रमते रमते रिश्ता बन गया ,,,
ऐसा नहीं कि रोमांटिक ही हैं दीप्ति दीप्ति अंगरीश की कविताएं । एक पत्रकार की नज़र से राजनीति को बड़े करीब से देखा है और उस अनुभव से ये पंक्तियां निकली हैं :
बदली कुर्सी, बदला नज़रिया,,,
कुर्सी बदलती है तो नज़रिया भी बदलते देर नहीं लगती क्योंकि कुर्सी पर बैठे राजनेता के साथ बहुत कुछ बदल जाता है ।
एक उदास कविता भी है जो संभवतः दीप्ति ने अपने पिता के निधन पर लिखी हो :
कुछ भी नहीं
पक्षी हैं गुमसुम
खो गयी है हवा
खो गया पूरा आकाश
कहीं कुछ नहीं बचा शेष
कुछ भी नहीं ,,,,
प्यार तो चाहिए पर बनावटी नहीं । औपचारिकता वाला नहीं । जंगली प्यार चाहिए :
फूल तो भेजो
पर जंगली
खूबसूरत पर सुगंधविहीन
मन तो महका पर
इंद्रियां मौन ,,,
है न बिल्कुल अनोखे अंदाज़ की कविताएं ,,,
पर बहुत आशावान कवयित्री है दीप्ति अंगरीश जब कहती है :
हमेशा उम्मीद रही
कली से फूल बनूं मैं ,,,,,
सबसे नये अंदाज में लिखी है टेलीपैथी कांटैक्ट कविता :
पुरानी इतनी भी नहीं
कलर के ज़माने में
करते हैं ब्लैक एंड व्हाइट वाला इश्क
जहां दूरियां हैं
खामोश बेताबियां हैं
अर्से बाद लौट आया है
फिज़ाओं में प्यार ,,,
एक चुटकी टू वे लव की
बस , तैयार है लव पंच
सुनो , तैयार है लव पंच
इसे रोज़ ही पिएंगे
मैं हूं रेडी,,,
इस किताब में कुल 74 कविताएं हैं, जो सरल भाषा में गंभीर भाव लिए युवाओं से लेकर बुजुर्गोंं को बहुत कुछ कहती है। सबसे अच्छी बात लगी कि कवियित्री ने सिर्फ युवाओं का नहीं बुजुर्गों का भी सोचा। उन्हें भी पोएट्री के माध्यम से यंग अहसास करवाया। यह जरूरी भी है एक उम्र के बाद ढलान अधिकांष समाज से तिरस्कार ही झेलता है। उनकी आवाज। उनकी सोच। उनके मनोभाव। बहुत बार वे खुद मार लेते हैं या लोग ही उनको दबादते हैं। ऐसे में कवयित्री दीप्ति अंगरीष का काव्य संग्रह उनके लिए अनुपम उपहार है। भाषा, बिंब और षब्दों का चयन उन्होंने बेहतरीन किया है। काव्य संग्रह के आवरण पृष्ठ और छपाई षानदार है। एक युवा इतनी गहराई से 16 से 60 उम्र के लोगों के दिमाग-मन को पढ़ सकता है, यह बताता है कि कवियित्री कितनी सुलझी हुई हैं। पहले काव्य संग्रह में किसी भी प्रकार की त्रुटी नहीं दिखी। बस, एक कमी खली की इसमें कुछ कविताएं प्यार के मनोभाव से परे हैं। उन्हें अलग से खंड बनाकर संग्रह में जगह देनी चाहिए थी। डिजाइनिंग के लिहाज से यह उम्दा है। इसकी चर्चा ही इसे खास बना रही है। ऐसी प्रयोगवादी कविताएं पढ़ने को मिले, तो यकीनन समाज में एक बार फिर पढ़ने की आदत फलीभूत होगी।
पुस्तक : एडल्ट चुस्कियां
कवयित्री : दीप्ति अंगरीश
प्रकाशक : सरोजिनी पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
मूल्य : 200 रुपये पेपरबैक