शिवराज की ये कैसी है सियासत ?

सुभाष चन्द्र
मध्य प्रदेश में उपचुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। सरकार के साथ पूरी भाजपा चुनावी मैदान में पिल पडी है। एक भी सीट हाथ से न जाने पाए, इसके लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान हर वह दांव चल रहे हैं, जिससे उन्हें लगता है कि जीत तो हमारी ही होगी। इसी कडी में उन्होंने ऐसा कह दिया जो न तो भारतीय जनता पार्टी का चरित्र रहा है और न ही उसके मातृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का। तो क्या इसका अर्थ यह निकाला जाना चाहिए कि सत्ता की कुर्सी पर आरूढ होकर चुनावी राजनीति में वे एकोहम् द्वितीय नास्ति की राह पर चल पडे हैं ? यदि वाकई ऐसा है, तो यह भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है।

असल में, मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चैहान ने वह बात कही है, जो कुछेक साल पहले राज ठाकरे या उद्धव ठाकरे कह देते थे। उनके पहले बालासाहेब ठाकरे की पूरी राजनीति इसी तरह की रही है। ऐसा ही बात तमिलनाडु में हिन्दी भाषियों के लिए करूणानिधि व जयललिता करती थी।  शिवराज सिंह चैहान की सरकार ने मध्य प्रदेश में होने वाले 27 सीटों के उपचुनाव में लाभ हासिल करने की नीयत से यह फरमान जारी कर दिया है कि अब राज्य की सरकारी नौकरियों में दूसरे राज्यों के युवाओं को अवसर नहीं दिया जाएगा। मतलब कि मध्यप्रदेश की नौकरियों में अब सिर्फ मध्यप्रदेश के मूल निवासी ही नौकरी कर सकेंगे।

मध्य प्रदेश सरकार की सभी नौकरियां राज्य के लोगों के लिए आरक्षित होंगी। इसके लिए आवश्यक कानूनी बदलाव जल्द ही पेश किए जाएंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि हम आवश्यक कानूनी कदम उठाएंगे, ताकि मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियां केवल राज्य के युवाओं को दी जाएं। मध्य प्रदेश के संसाधन मध्य प्रदेश के बच्चों के लिए। यह सूचना उन्‍होंने वीडियो जारी करते हुए दी है। मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा कि मध्यप्रदेश के युवाओं का भविष्य ‘बेरोजगारी भत्ते’ की बैसाखी पर टिका रहे यह हमारा लक्ष्य ना कभी था और ना ही है। जो यहां का मूल निवासी है वही शासकीय नौकरियों में आकर प्रदेश का भविष्य संवारे यही मेरा सपना है। मेरे बच्चों, खूब पढ़ो और फिर सरकार में शामिल होकर प्रदेश का भविष्य गढ़ो।

बता दें कि शिवराज सरकार की इस बड़ी घोषणा के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं में खुशी का माहौल है। प्रदेश में जेल प्रहरी के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित होने वाली है। इस भर्ती के लिए बड़ी संख्या में युवाओं ने फार्म भरा है। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने हाल ही में पुलिस आरक्षक में 4269 पदों पर जल्द भर्ती करने की बात कही थी। वहीं नवंबर में जेल प्रहरी के 282 पदों पर भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित होनी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने कहा है कि आपकी (शिवराज सिंह चौहान) इस सोच पर हम सभी को गर्व है। प्रदेश के युवा को प्रदेश के विकास में शामिल करने की यह पहल फिर से एक स्वर्णिम मध्यप्रदेश की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

इससे पहले कमलनाथ सरकार ने उद्योगों में 70 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को देना अनिवार्य कर दिया था। कमलनाथ सरकार के फैसले के मुताबिक, राज्य में लगने वाले उद्योगों में 70 फीसदी नौकरी मध्यप्रदेश के मूल निवासियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया था। इसके तहत शासकीय योजनाओं, टैक्स में छूट का फायदा उद्योगपति को तभी मिलेगा जब वो 70 फीसदी रोजगार मध्यप्रदेश के लोगों को देंगे।कांग्रेस ने शिवराज सरकार के इस फैसले को लेकर कहा कि इसे कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार ने ही शुरू किया था, लेकिन भाजपा की सरकार आने के बाद इसे बदल दिया गया था।

कल्पना करके देखिए कि शिवराज की तर्ज पर अगर कल को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस तरह का फरमान जारी कर दें या किसी गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री ही इस तरह का फैसला कर लें, तो क्या स्थिति होगी? फिर उसके बाद देश की संघीय व्यवस्था का क्या होगा ? देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने जो देश का एकीकरण किया था, उसका क्या होगा ? आज नौकरी के लिए, तो कल स्कूल-कॉलेज में एडमिशन के लिए भी इस तरह के कानून चुनाव में लाभ हासिल करने के लिए लागू किया जा सकता है।
अब मध्य प्रदेश सरकार के इस एलान पर सियासत भी गरमा गई है। कांग्रेस ने शिवराज सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के फैसले पर निशाना साधा है। अब्दुल्ला ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में नौकरियां तो सभी के लिए हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में सिर्फ राज्य के लोगों के लिए ही।

यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि एक देश, एक विधान और एक निशान की बात करने वाली भाजपा जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए खत्म कराती है, तो पूरे देश में भाजपाई खुशी मनाते हैं। देश की संघीय व्यवस्था पर गर्व करते हैं। कहते है कि देश के नागरिक पूरे देश में कहीं भी रोटी-रोजगार के लिए समान रूप से आ जा सकते हैं। वहीं, लोग मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह की इस नीति पर चुप्पी साधे हुए हैं।

महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के संदर्भ में इनसाइडर-आउटसाइडर वाली बहस खूब होती है। यह बात वहां की राजनीति पर भी हावी है और नौकरियों में भी। यहां मराठी भाषा में पारंगत स्थानीय निवासियों को सरकारी नौकरी दी जाती है। स्थानीय का मतलब, किसी शख्स का यहां घर हो और वो 15 साल से ज्यादा समय से यहां रहा हो। हालांकि नौकरियों में आवेदन के लिए कर्नाटक के बेलगाम जिले के निवासियों को छूट दी गई है। बेलगाम में बड़ी संख्या में मराठीभाषी रहते हैं और इस वजह से महाराष्ट्र लंबे समय से बेलगाम पर अपना दावा करता आया है। वहीं, गुजरात की बात करें, तो राज्य के श्रम और रोजगार विभाग का 1995 का सरकारी प्रस्ताव कहता है कि राज्य सरकार के किसी उपक्रम-उद्योग में कर्मचारियों, कारीगरों के चयन में कम से कम 85 फीसदी और मैनेजर, सुपरवाइजर जैसे पदों पर 60 फीसदी स्थानीय निवासी होंगे।

हालांकि, देश में कुछ राज्यों की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति के कारण वहां कुछ जाति विशेष के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। पूर्वोत्तर के कई राज्यों में यह कानून है। आदिवासी बहुल झारखण्ड में भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ग्रेड सी तक की नौकरियां झारखण्डियों के लिए आरक्षित की हुई हैं। सुदूर पूर्वोेतर के राज्य अरुणाचल प्रदेश में आप वहां की सरकार की मर्जी के बिना प्रवेश नहीं कर सकते। हिमाचल प्रदेश में किन्नौर, जहां का सेवा बेहद प्रसिद्ध है, वहां कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता।

दरअसल, हमारे देश में नौकरियों में जाति आधारित आरक्षण की व्यवस्था पहले से है। इसके अलावा आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान भी हाल ही में लागू किया गया। इसके पीछे तर्क है कि समाज में हाशिए वाले वर्गों को हिस्सेदारी और प्रतिनिधित्व मिले। लेकिन क्या क्षेत्र के आधार पर किसी को नौकरियों में आरक्षण दिया जा सकता है? कई राज्य ‘अपने’ लोगों को सरकारी नौकरियां देने की वकालत करते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, झारखंड, आंध्र प्रदेश, मेघालय, असम समेत कई राज्यों में ऐसी व्यवस्थाएं या तो लागू हैं या इन्हें लागू करने की कोशिशें चल रही है। इसके लिए ‘मूल निवासी’ या ‘डोमिसाइल’ शब्द प्रयोग होते हैं। मतलब स्थानीय लोगों को नौकरियों में या किसी सुविधा में वरीयता देना। कहीं इसका प्रतिशत अधिक होता है, कहीं कम। मध्य प्रदेश के मामले में इसे 100 फीसदी स्थानीय लोगों के लिए लागू करने की बात कही गई है।

अब सवाल उठता है कि डॉक्टर श्याम प्रसाद मुखर्जी के नारों की बात करने वाली भाजपा जब देश में एक विधान की बात करती है, तो हमारा संविधान क्या कहता है ? असल में, जिस संविधान से देश चलता है या चलना चाहिए, उसमें राज्य की तरफ से ‘जन्मस्थान’ के आधार पर भेदभाव न करने और ‘अवसर की समानता’ की बात कही गई है। इसके लिए संविधान के तीन आर्टिकल का जिक्र यहां जरूरी है। संविधान के भाग-3 में मूल अधिकारों की बात है। इनमें एक मूल अधिकार समता का अधिकार है।

आर्टिकल 14 में कहा गया है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। आर्टिकल 15 में लिखा है कि राज्य किसी नागरिक से धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, ‘जन्मस्थान’ या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। भारत का संविधान कहता है कि राज्य को जन्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। वहीं, इस बहस में आर्टिकल-16 (1) काफी अहम है। इसके मुताबिक, राज्य के अधीन किसी जगह पर रोजगार या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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