कब तक जनता यूं ही ठगी जाएगी ?

निशिकांत ठाकुर

भोली भाली जनता को गुमराह करने के लिए राजनीतिज्ञ क्या-क्या योजना बनाते हैं ? किस प्रकार मौकापरस्त गठबंधन करते हैं ? नीति-सिद्धांतों को ताक पर रखकर नेताओं की आवाजाही होती है , यह सब यदि आपको एक बार फिर से देखना हो, तो बिहार के विधानसभा चुनाव में आप देख सकते हैं। अब आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है ? तो इतना जान लीजिए, इसके पीछे कोई राॅकेट साइंस नहीं होता है। इसका पहला और आखिर सच यही होता है कि इन नेताओं को सत्ता की कुर्सी मिल जाएं। इन नेताओं की हालत बिलकुल मछली की तरह होती है। जिस तरह मछली पानी के बिना छटपटाती है, ठीक उसी प्रकार इन नेताओं का हाल कुर्सी और सत्ता के बगैर होने लगता है।

यदि सत्ता की कुर्सी हाथ आ गई, तो यह मान लिया जाता है कि जनता ने अपना मतदान करके सरकार बनाने का उसे अधिकार दिया है। इससे उनका मनोबल बढ़ता है और उनकी सोच तुरंत बदल जाती है। फिर उनकी सोच होती है कि जनता की सेवा तो बाद में देखा जाएगा पहली अपनी सेवा करने में जुट जाओ। देश की बात तो बाद में करते रहेंगे। बिहार में तो आजादी के बाद से अब तक यही होता रहा है। नेता बदलते गए। नहीं बदला तो सत्ता और कुर्सी का चरित्र। राज्य के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण बाबू से लेकर वर्तमान में आप नीतीश कुमार के राज को देखकर समझ सकते हैं।

कभी आपने इस पर विचार किया है कि मेधा से परिपूर्ण लोग, परिपक्व मनोबल , इतने मेहनती और प्राकृतिक संपदाओं में अकूत जलराशि , उपजाऊ जमीन के होते हुए भी आज बिहार देश का सबसे उपेक्षित राज्य क्यों हो गया है ? चुनाव से पहले राज्य के सभी मतदाताओं को इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि आखिर किस कारण से बिहार आज तक उपेक्षित रहा और उसके मेहनतकश कामगार दर दर की ठोकरें खाने के लिए क्यों मजबूर होते रहे हैं ? क्यों उन्हें अपने देश के भीतर ही प्रवासी जैसे शब्दों से पुकारा जाता है।

मेरा तो यही मानना है कि विधानसभा और लोकसभा में बिहार के स्थानीय प्रतिनिधि अपनी बात ठीक से वहां रख नहीं पाते हैं । कई कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि क्षेत्रीय व्यक्ति लोकसभा और विधान सभा में प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं , लोक सभा की बात तो यह मानकर समझाया जा सकता है कि संसद में देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात की जाती है, लेकिन विधान सभा में तो लगभग राज्य और क्षेत्रीय समस्याओं पर ही बात होती है और उसका निराकरण कैसे हो इस पर चर्चा यदि वहां के प्रतिनिधि नहीं करेंगे तो सरकार उसका निराकरण कैसे करेगी ? ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि अब स्थानीय स्तर पर भी बाहर से बैसाखी के सहारे आसमान से टपके लोगों को चुनाव लडने का ठेका दिया जा रहा है। जिसे न तो वहां के स्थानीय लोगों से कुछ लेना देना , न क्षेत्रीय भौगोलिक का उन्हें भान होता है। ऐसे में वह किस प्रकार वहां की समस्याओं से जुड़कर उसे दूर करने की आवाज जोरदारी से उठाएंगे ? ऐसा लगता है, जैसे बिहार में स्थानीय योग्य नेताओं की कमी हो गई है। यकीन नहीं होता हो, तो आप इस बार के विधानसभा चुनाव में अब तक घोषित उम्मीदवारों की सूची देख लें। क्या भाजपा, क्या जदयू, राजद, कांग्रेस और लोजपा। सभी दलों का एक ही हाल है ।

बिहार भाजपा के एक वरिष्ठ और युवा टिकट के दावेदार प्रत्याशी ने हताश होकर बताया कि वह जिस क्षेत्र से लड़ना चाहता था । वह विधानसभा जनतादल युनाइटेड के हिस्से में चला गया । विधान सभा का वह क्षेत्र हमारे हिस्से में भी आ सकता था, लेकिन थैला देना अब काफी मंहगा हो गया जिसके तहत मैं चुनाव में हिस्सा नहीं ले सका । एक कर्मठ और जुझारू नेता के रूप में वर्षों तक मेहनत करने के बाद आखिरी समय में उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया । यह तो केवल उदाहरण मात्र है। लगभग सभी प्रत्यशियों को आज बिहार ही नहीं देश भर में ऐसा करना पड़ता है । ऐसी स्थिति में कोई भी जब जीतकर कहीं से सत्ता की कुर्सी तक पहुंच जाएगा तो वह वहां पहुंचकर उसका फल पहले स्वयं भोगकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा ही देगा न की सेवा भाव से राज्य या देश की जनता का भाग्य संवरेगा । चुनाव में टिकट पाने में जो भ्रष्टचार शुरू होता है वह वहीं खत्म नहीं होता। उसके बाद फिर शुरू होता है घुस, शराब और गुंडागर्दी का फेज इसके लिए चुनाव में खुली छूट है । बंदूकों और संगीनों के बल पर भी वोट लिए जाते हैं । कभी कभी तो कत्लेआम होता है। पैसे और शराब के द्वारा वोट खरीदना आम बात हो गई है । जब शीर्ष पर बैठे व्यक्ति ही भ्रष्टाचार से ओतप्रोत रहेंगे, तो फिर भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना कैसे कर सकते हैं ।

पता नहीं चुनाव लड़ने के लिए लोग कहां कहां से बिहार चले आते हैं? ऐसे लोगों को उस राज्य या स्थान विशेष से क्या लेना देना उन्हें तो जनता को अपने डील डॉल से मतदाताओं को, आकर्षित करना, प्रभावित करना , अपने बेतुकी भाषणों से उन्हें गुमराह करना एक मात्र उद्देश्य होता है। बिहार के कई संसदीय क्षेत्र का विकास केवल इसलिए नहीं हुआ क्योंकि वहां का कोई स्थानीय प्रतिनिधि वर्षों तक चुनाव जीत नहीं सका । इसका कारण यह रहा कि तथाकथित राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता वहां से चुनाव जीतकर जाते थे , वह अपना विकास करते रहे लेकिन स्थानीय विकास के नाम पर स्पष्ट कहा करते हैं कि हम राष्ट्रीय स्तर की बात करते है । स्थानीय मामलों से उनका कुछ भी लेना देना नहीं । अब वहीं हाल विधान सभा चुनाव में देखने को मिल रहा है फिर बिहार का विकास कैसे होगा । एक तो इतने प्रकार का गठबंधन दलों ने कर लिया है कि मतदाता गुमराह हो रहे है । उसकी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि वह किसे अपना मतदान करे ।

रही बात नीतीश कुमार की , वह एक पढ़े लिखे अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं, लेकिन इस पंचवर्षीय चुनाव में उनकी सरकार ने उनके प्रति मतदाताओं के मन में आक्रोश ही भरा है । व्यक्तिगत रूप से मेरी कई मतदाताओं से बात हुई सबने वर्तमान सरकार की कार्य पद्धति को नकार दिया । अब रही की फिर इस बार बिहार में किसकी सरकार बनेगी तो इस पर कोई अनुमान ही लगा सकता है । सटीक भविष्यवाणी यदि कोई करता है, तो वह सिर्फ कयास ही लगा रहा है और मतदाताओं को दिग्भ्रमित कर रहा है । इसलिए सरकार किसकी बनेगी इस पर कोई निश्चित विचार प्रकट कर रहा है , तो वह आपको बहला रहा है इसलिए आप अपना मतदान जरूर करे और अपने विवेक से योग्य व्यक्तियों के लिए करें और गाल बजाने वालों से सावधान रहें । जातिवादी नीति को छोड़कर योग्य व्यक्ति को अपना मतदान जरूर करें ।

जरा गंभीरता से इस पर विचार करिएगा कि भारत ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, लेकिन कई आक्रांताओं के दंश को सैकड़ों वर्षों तक झेला है । कभी मुगलों ने सैकड़ों वर्षों तक राज्य किया और अपनी सभ्यता, अपना धर्म हमारे ऊपर मढ़ा फिर यहीं के होकर रह गए । उनमें जो उपद्रवी तत्व थे, उन्होंने देश का मर्दन और खंडित किया । फिर अंग्रेजों ने हमसे गुलाम और जानवरों जैसा बर्ताव किया । ईस्ट इंडिया कंपनी के अध्यक्ष मिस्टर मेंगलस ने पार्लियामेंट में एक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा कि ईश्वर ने हमें हिंदुस्तान का विशाल साम्राज्य इसलिए सौंपा है कि हम यहां एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक ईसा मसीह का झंडा फहराए। इसलिए हमने से प्रत्येक का कर्तव्य है कि सम्पूर्ण भारत को ईसाई बनाने में अपनी पूरी ताकतें लगा दें । उनके समर्थन में बैठक में मौजूद सभी ने कहा कि हम पर चाहे जितनी विपत्तियां आए जब तक भारत में हमारा साम्राज्य कायम है तब तक हमारा सबसे बड़ा काम समूचे भारत को ईसाई बनाना है ।

इसे यहां जोड़ने का उद्देश्य केवल यह है कि आज बिहार के राज्यस्तरीय विधान सभा के चुनाव में किन किन मुद्दों को बीच में लाया जाता है यहां तक कि देश के गृह राज्यमंत्री ने कहा कि यदि दूसरे दल की सरकार बनती है, तो बिहार अतंकियों का गढ़ बन जाएगा । गृह राज्यमंत्री से केवल एक ही प्रश्न की क्या वह इस्ट इंडिया कंपनी के अध्यक्ष की तरह देश के लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि यदि उनकी सरकार नहीं बनी तो बिहार को अतांकवादियों का गढ़ बना दो। क्यों नहीं गृह राज्यमंत्री से इसका मतलब जानता को समझना चाहिए?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं )।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *