शांति बनाये रखने के लिए युद्ध कब तक टाला जायेगा?

रीना सिंह, अधिवक्ता उच्चतम न्यायालय

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, हमारा सविंधान किसी भी प्रकार के बाहरी नियंत्रण से पूरी तरह से मुक्त है, यह लोकतंत्र की शक्ति ही है की हमारे प्रतिनिधि, चुनावो के माध्यम से जनता द्वारा चुन कर सशक्त होते है। हमारे देश में सभी प्रकार की नीतियों का निर्धारण एवं नियंत्रण स्वयं लोकतंत्र द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि ही करते है, यहाँ की जनता शासन के हाथो में सुरक्षित है और अगर यह कहा जाये की शासन भी जनता के हाथो में पूर्ण रूप से सुरक्षित है तो ऐसा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

हमारा देश एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है, जहाँ सरकार जनता के लिए और जनता द्वारा संचालित है इसका मुख्य उद्देश्य जनकल्याण है। हमारे देश में सभी कानून सविंधान के दायरे में बनाये जाते है जिसमे प्रत्येक नागरिक को सामाजिक, आर्थिक ओर  राजनैतिक न्याय का वचन दिया जाता है, जिसमे सभी धर्मो को समान मान्यता प्रदान की गयी है, प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंतकरण की इच्छा के हिसाब से किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता है। हालांकि लोकतंत्र के प्रति प्रेम विश्व के बहुत से कटरपंथी देशो में प्रचलित नहीं है, अगर हम मुस्लिम देशो की बात करे तो हम पाएंगे की विश्व में करीब 57 मुस्लिम देश है जिनमे 200 करोड़ से भी अधिक मुस्लमान रहते है, दुनिया में ऐसा कोई भी मुस्लिम देश नहीं है जो पूरी तरह से लोकतांत्रिक है। इन देशो में लोकतंत्र एवं तानाशाही से भी बढ़कर इस्लाम का कट्टरवादी कानून है, इन देशो में इस्लाम की कट्टर विचारधारा का ही बोल बाला है।

सऊदी अरब में न्यायालय शरीया कानून के हिसाब से फैसला सुनाता है, जहाँ आज भी सिर कलम करने का कानून है, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशो में लोकतंत्र जरूर है, पर वहां भी कट्टर इस्लाम की जड़े काफी मजबूत हो चुकी है जिस कारण लोकतांत्रिक सरकार ढंग से काम नहीं कर पा रही। बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशो में इस्लामिक कानून तथा लोकतंत्र का मिश्रित कानून चलता है, पाकिस्तान के बारे में इतिहास गवाह है की वहां के ज़्यादातर प्रधानमंत्रियों ने सत्ता मिलने के बाद देश से भाग कर अपनी जान बचायी, ऐसे देशो में इस्लामिक कट्टरवाद के हाथो कठपुतली सरकार चलती है।

मौजूदा समय में तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जे की घटना इस तथ्य को और मजबूत करती है की कट्टरवादी मुस्लिम समुदाय लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है, इन कट्टरवादियों की विचारधारा में सिर्फ शोषण कर अनुचित लाभ उठाकर राज करना है। अगर हम यूनाइटेड अरब अमीरात की बात करे तो हम पाएंगे की दुबई जैसा शहर जिसकी लोकप्रियता दुनिया के पांच बड़े शहरों में होती है वह दुबई भी इस्लामिक कट्टरवाद से अछूता नहीं है।

अगर आप तथ्यों को देखे तो आप पाएंगे की यूनाइटेड अरब अमीरात तथा सऊदी अरब जैसे देश अपने स्थानीय नागरिकों की संस्कृति एवं हितों की रक्षा करने के लिए अन्य किसी भी देश के नागरिकों को आप्रवासन अधिनियम के तहत अपने मुस्लिम देशो की नागरिकता प्रदान नहीं करते, ऐसा जानते हुए भी हमारी सरकारें और हमारे लोग इन तथ्यों को गंभीरता से नहीं लेते। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में भीषण नरसंहार क्या इस बात की ओर इशारा नहीं करता की अगर मुस्लिम होकर मुस्लिम देश छोड़ना पड़े तो क्या ये इस्लाम छोड़ने का वक्त नहीं है ? अगर हम 90 के दशक के पाकिस्तान को देखे तो हम पाएंगे की उस समय में पाकिस्तान के अंदर काफी हद तक उदारवादी विचारधारा थी, लेकिन पिछले कुछ दशकों से इस्लामिक कट्टरवाद जिस तरह से लोकतंत्र पर हावी हो रही है तो यह निश्चित है की आने वाले पांच सालों में पाकिस्तान का हाल भी अफगानिस्तान जैसा होगा जहाँ पर इस्लामिक कट्टरवाद से ग्रसित इस्लाम को मानने वाले लोग ही अपनी जान बचाने के लिए हवाई जहाज के साथ दौड़ लगाते नज़र आएंगे।

यहाँ यह बताना आवश्यक है की भारत ईरान से क़र्ज़ के पैसे से कच्चा तेल खरीदता है जिसमे बहुत बड़े ब्याज की राशि भी भारत द्वारा ईरान को दी जाती है, ईरान का यह क़र्ज़ भारत पर कांग्रेस की सरकार के समय से है अगर हम यहाँ गौर करे तो हम पाएंगे की मौजूदा  अफगानिस्तान के हालत में तालिबान का सबसे बड़ा समर्थक ईरान है। यह हमारे देश की विडम्बना ही है की एक तरफ तो हम इन इस्लामिक देशो को तेल के कर्ज़ों पर ऋण चूका रहे है ओर दूसरी तरफ इस्लामिक कट्टरवादी रुपी आतंकवाद अफगानिस्तान को पार कर पाकिस्तान होता हुआ हमारे देश, हमारी सभ्यता और हमारे धर्म को निशाना बनाने की कोशिश कर रहा है। लोकतंत्र का गाला घोटती इस्लामिक कट्टरवादी विचारधारा सनातन धर्म के लिए सबसे बड़ा खतरा है, इस्लामिक कट्टरवाद ऐसा उग्र रूप ले चूका है की इसकी विचारधारा वाले लोगो के लिए हर नियम और कानून सिर्फ कुरान और शरीया के अधीन है, इस्लामिक देशो में रहने वाले ज़्यादातर लोग लोकतंत्र के पक्ष में है जो उन्हें खुली हवा में जीने और सांस लेने का अवसर प्रदान करता है।

तुर्की, मिस्र, जॉर्डन, लेबनॉन, तुनिशिया जैसे मुस्लिम देशो के ज़्यादातर  लोगो का मानना है की एक लोकतांत्रिक सरकार ही श्रेष्ठ सरकार है। वर्ष 2012 में अमेरिका के पिउ रिसर्च सेंटर द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार बहुसंख्यक मुस्लिम देशो के लोग एक मजबूत लोकतांत्रिक सरकार के पक्ष में है, इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व की कुल मुस्लिम आबादी के 20% से भी कम लोग तालिबान और अलकायदा जैसे इस्लामिक कट्टरवाद का समर्थन करते है। अगर हम अपने देश की बात करे तो हम पाएंगे की आज़ादी के बाद से ही हमारे हिन्दू बहुसंख्यक देश ने अपनी जमीन के बड़े हिस्सों को इस इस्लामिक सोच के परिणाम स्वरुप खोया है चाहे वह देश के बटवारे के समय पाकिस्तान हो, आज़ादी के बाद देश के भूभाग से बंगाल के एक बड़े हिस्से को अलग कर बांग्लादेश जैसा मुस्लिम देश बनना हो या फिर चीन द्वारा अक्साई चीन के रूप में भारत की जमीन पर कब्ज़ा हो। 1947 से निरंतर देश मुस्लिम आतंकवादियों से ग्रसित रहा है, हम अक्सर कश्मीर की बात करते है पर हिंदी सिनेमा पर इस्लामिक विचारधारा के कब्ज़े को समझ नहीं पाते जिसने हमारे युवा की सोच को ही खोखला कर दिया है।

1997 में गुलशन कुमार हत्याकांड के साथ ही बॉलीवुड में हिन्दू धर्म के भजन एवं गीत बनाने वाले एक युग का भी अंत हो गया जिसकी भरपाई आज तक नहीं हो पायी है। आज़ादी के बाद से सनातनी उस छदम युद्ध को झेल रहा है जहाँ स्कूली शिक्षा में मुगलो की पीढ़ियों का तो हर रियासत के हिसाब से पाठ पढ़ाया जाता है परन्तु उस राजपूत क्षत्रिय राजा विक्रमादित्य को विक्रम बेताल की कहानी तक ही सीमित कर दिया, राजा विक्रमादित्य जिसने विश्व के एक बड़े हिस्से पर हिन्दू धर्म का परचम लहराया उस महान राजा का एक कुंठित विचारधारा के लोगो ने कोई जिक्र नहीं होने दिया, क्या ये सोच किसी आतंकवाद का हिस्सा नहीं है। समय आ गया है की हर हिन्दू एक सैनिक की सोच के साथ अपने धर्म और पहचान की रक्षा के लिए उस मृग तृष्णा से बाहर निकले, की कोई बाहर का व्यक्ति आकर हमारे घर और परिवार की रक्षा करेगा। हर हिन्दू को अपनी सोच के बंदी गृह से बाहर निकल कर आँखे खोलने का वक्त आ गया है, यह वह समय है की अगर हम अब भी नहीं जागे तो आने वाली हमारी पीढ़ियां हमे कभी माफ़ नहीं करेंगी। इतिहास गवाह है की शांतिपूर्वक जीवन के लिए हमारी इस पावन धरती के वीर योद्धाओं ने अनगिनत बार युद्ध को अपनाया है, सर्वत्र विजय के लिए युद्ध घोष करने का वक्त आ गया है क्यूंकि शांति बनाये रखने के लिए युद्ध के लिए तैयार रहना होगा।

“तलवार से तेज अपनी धार रख तू,

युद्ध भूमि में जाने को अपनी सेना तैयार रख तू”  

(रीना सिंह जी सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता हैं. ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं जिससे चिरौरी न्यूज़ का सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)

 

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