रहीम जैसे कोच की जरूरत है भारतीय फुटबाल को

राजेंद्र सजवान

आज का दिन सिर्फ इसलिए खास नहीं क्योंकि आज से यूरोप के देशों के बीच यूरो फुटबाल का महांसंग्राम शुरू हो रहा है, जिसमें यूरोपीय फुटबाल के दिग्गज श्रेष्ठता की जंग लड़ने जा रहे हैं। 11 जून भारतीय फुटबाल के पहले द्रोणाचार्य और वर्षों तक राष्ट्रीय टीम के प्रमुख सदस्य रहे नईमुद्दीन का जन्मदिन है तो इसी दिन 1963 में देश के सर्वकालीन श्रेष्ठ फुटबाल कोच सैयद अब्दुल रहीम का देहांत हुआ था।

इसमें दो राय नहीं कि भारत में भी यूरो 2020 का बुखार सिर चढ़कर बोलने वाला है और भारतीय फुटबाल प्रेमी देर रात जाग कर मैचों का लुत्फ उठाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें अपनी फुटबाल जरा भी नहीं भाती इसलिए यूरोपीय फुटबाल के मुरीद हैं। यह सही है कि भारतीय फुटबाल प्रेमी अपनी फुटबाल और अपने खिलाड़ियों से कहीं ज्यादा पसंद यूरोप और लैटिन अमेरिका की फुटबाल को करते हैं।

कारण सभी जानते हैं । लेकिन कभी भारतीय फुटबाकिल का भी नाम था। आज भले ही हम एशिया महाद्वीप में बहुत पीछे छूट गए हैं पर 1951 और 1962 के एशियाई खेलों में भारत ने जीत के झंडे गाड़ कर महाद्वीप में अपने खेल कौशल का नज़ारा पेश किया। चार ओलंपिक खेलों में न सिर्फ उपस्थिति दर्ज की बल्कि 1956 के मेलबर्न खेलों में चौथा स्थान भी अर्जित किया। बेशक, अब इस मुकाम को चूमना मुश्किल हो गया है।

1950 से 1963 का दौर भारतीय फुटबाल के लिए इसलिए स्वर्ण युग कहा जाता है क्योंकि तब हमारे पास सैयद रहीम जैसा योग्य गुरु था जिसने भारत की फुटबाल को बुलंदियों तक पहुंचाया। 11 जून 1963 में जब रहीम दुनिया छोड़ कर गए तो भारत को एक मजबूत फुटबाल राष्ट्र बना गए थे। तब शायद ही किसीने सोचा होगा कि रहीम के उत्तराधिकारी भारतीय फुटबाल को चंद सालों में ही बर्बाद कर डालेंगे।

रहीम पेशे से अध्यापक थे और अपने खिलाड़ियों को समझने की कला बखूबी जानते थे। वह अध्यापन की तमाम खूबियों के चलते बहुत छोटी उम्र में राष्ट्रीय कोच बन गए और देखते ही देखते राष्ट्रीय टीम स्टार खिलाड़ियों से सज गई।

लेकिन उनके स्वर्गवास के कुछ साल बाद भारतीय फुटबाल पर विदेशी कोच हावी हो गए और वह भारत के पहले और आखिरी महान कोच बन कर रह गए। हालांकि नईम ने मोहन बागान, ईस्ट बंगाल, मोहमड्डन क्लबों को कोचिंग दी और राष्ट्रीय कोच भी बने लेकिन उनमें रहीम जैसी काबलियत देखने को नहीं मिली।

अपना खोया स्थान पाने के लिए भारतीय फुटबाल का संघर्ष जारी है लेकिन हमारी फुटबाल को कोई मसीहा चाहिए जोकि रहीम की तरह दूरदर्शी हो और एक आदर्श कोच की तरह लगातार पिछड़ रही भारतीय फुटबाल को दिशा दे सके।

 (लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

 

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