कोरोना से भी घातक बीमारी के शिकार हैं भारतीय खेल 

राजेंद्र सजवान

कोरोना काल के चलते देश के कुछ जाने माने अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों, कोचों और खेल जानकारों से भारतीय खेलों की दुखती रग टटोलने और बीमारी का इलाज जानने का अवसर मिला। अधिकांश की राय में भारतीय खेल अपनों की कारगुजारियों के चलते बर्बादी की कगार तक जा पहुँचे हैं और आज़ादी के 73 सालों के बाद भी हमारे खिलाड़ी गुलामी और गुमनामी में जी रहे हैं।

एक बड़े वर्ग के अनुसार देश की सरकारों के सुस्त रवैये और खेलों को गंभीरता से नहीं लेने का परिणाम है कि खेलों का बुनियादी ढाँचा साल दर साल कमजोर हुआ है। वरना क्या कारण है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद भी हमारे पास आज तक सिर्फ़ एक ओलम्पिक स्वर्ण विजेता है, वह भी ऐसे खेल में जिसे खेलना आम नागरिक के बूते की बात नहीं है। भले ही हॉकी में आठ स्वर्ण पदक जीते हैं लेकिन यह कहानी जैसे युगों पुरानी हो गई है।

आख़िर ऐसी  कौनसी बीमारी है जोकि भारतीय खेलों को घुन की तरह खोखला कर रही है? कौनसी महामारी है जोकि हमारे खेलों को लील रही है? क्या यह बीमारी कोरोना से भी ज़्यादा घातक है? ज़्यादातर भुक्तभोगियों और विफल खिलाड़ी कहे जाने की सज़ा भुगतने वालों से पूछें तो उनका मत यह है कि भारतीय खेल एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। पचास- साठ  साल पहले हॉकी, फुटबाल में बड़ी ताक़त थे। आज इन दोनों ही खेलों में बहुत पीछे रह गए हैं। ओलम्पिक में खेलते सौ साल हो गए पर किसी स्पर्धा में चौथा स्थान मिल जाने पर भी पगला जाते हैं।

जनसंख्या के हिसाब से देखें तो हमारा औसत प्रदर्शन सबसे फिसड्डी देश का है। कुछ लाख की आबादी वाले देशों के पास दर्जनों ओलम्पिक पदक विजेता हैं परन्तु हम मात्र एक अभिनव बिंद्रा पैदा कर पाए हैं। कारण, हमारे खिलाड़ियों से कहीं बड़े खिलाड़ी उन्हें हांकने वाले खेल अधिकारी और  भारतीय खेल प्राधिकरण एवम् खेल मंत्रालय के बड़े हैं। उनका खेल ना तो सरकारें समझ पाई हैं और ना ही आम जन मानस समझ पा रहा है।

खैर टोक्यो ओलम्पिक तो कोरोना ने बिगाड़ दिया है और भारतीय खेल आकाओं को बना बनाया बहाना भी मिल गया है। लेकिन ओलम्पिक बाद क्या होगा? सरकार भारत को खेल महाशक्ति बनाने का ढोल पीट रही है। लेकिन इस दिशा में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं हो रहा। खेलो इंडिया  तो ठीक है लेकिन जीतो इंडिया का नारा कब लगाएँगे? हैरानी वाली बात यह है क़ि खेल में बड़ी ताक़त बनने का दम भरने वाले देश के खिलाड़ियों के लिए  ओलम्पिक में भाग लेना ही बड़ी बात है।

खैर,  फिलहाल देश कोरोना से निपट रहा है और खेल काफ़ी हद तक बिगड़ चुके हैं। लेकिन बड़ा नुकसान पहले ही हो चुका है जिसकी भरपाई तब ही हो सकती है जब भारतीय खेलों के कर्णधार ईमानदारी से पेश आएँ और  बीमारी को जड़ से उखाड़ फेंकने का दृढ़ निश्च्य करें।

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