कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय शुरू करेगी पंजी व्यवस्था में डिप्लोमा कोर्स

ईश्वर नाथ झा

नई दिल्ली: आधुनिकता की दौड़ में मिथिला के ब्राह्मणों और कर्ण कायस्थों में प्रचलित पंजी व्यवस्था को खत्म होने से बचाने के लिए पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न समूहों के द्वारा समय समय पर मांग उठती रही है। अब कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय ने एक बार फिर से नए सेशन से पंजी व्यवस्था में डिप्लोमा का कोर्स शुरू करने का निर्णय लिया है जिस से इस व्यवस्था को जीवित रखने में मदद मिल सकती है। बता दें कि पूर्व कुलपति रामशरण शर्मा के समय में भी इसकी शुरुआत हुई थी लेकिन कुछ कारणों से इस कोर्स को बंद कर दिया गया था। अब फिर से वर्तमान कुलपति डॉ श्री शशिनाथ झा इसे शुरू कर रहे हैं जिससे मिथिला के ब्राह्मणों और कर्ण कायस्थों की इस परंपरा को जीवित रखा जा सके।

चिरौरी न्यूज़ से बातचीत में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ श्री शशिनाथ झा ने बताया कि, “पंजी व्यवस्था में डिप्लोमा का कोर्स शुरू करने का निर्णय लिया गया है और इसके लिए आवश्यक व्यवस्था की जा रही है। एक साल पहले ही यह कोर्स शुरू होने वाला था, लेकिन किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाया। अब अगले साल फरवरी से सत्र की शुरुआत हो सकती है। पहले बैच में तक़रीबन 30 विद्यार्थियों का नामाकन होगा और इसके लिए शैक्षणिक योग्यता 12वीं रखी गयी है।  कोई भी इस कोर्स में नामांकन के लिए आवेदन कर सकता है।“

मिथिला के ब्राह्मण और कर्ण कायस्थ की लिखित वंशावली को पंजी कहते हैं। मिथिला के ब्राह्मण और कर्ण कायस्थों के विवाह के समय वर और वधू पक्ष से सात-सात पीढ़ी का मिलान आवश्यक होता है, जिसके द्वारा यह जांचा जाता है कि दोनों पक्षों में से किसी के बीच सात पीढ़ी तक कोई सम्बन्ध तो नहीं है। इसके बाद ही विवाह के लिए पंजीकार स्वीकृति देते हैं। मिथिला के ब्राह्मणों और कर्ण कायस्थों के लिए यह बहुत पुरानी व्यवस्था है, लेकिन 13 वीं शताब्दी में राजा हरिसिंह देव के समय इसे औपचारिक रूप से लिपिबद्ध और संग्रहित करना शुरू किया गया। प्रारंभ में यह लिपिबद्ध नहीं था जिसके कारण यह पूरी तरह व्यवस्थित नहीं था, लेकिन 13वीं शताब्दी के बाद से इसका लिपिबद्ध प्रमाण मौजूद है।

मिथिला के प्रसिद्ध पंजीकार श्री शक्तिनंदन झा ने कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ श्री शशिनाथ झा के इस कदम की सराहना की है और कहा कि पंजी व्यवस्था का महत्व यह है कि इससे किसी भी परिवार की सम्पूर्ण वंशावली को समझने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को पंजी व्यवस्था की समग्र जानकारी के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान देने की भी व्यवस्था करनी चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *