सिरफिरे और सनकी का काम… कुश्ती पर काला धब्बा

राजेंद्र सजवान

रोहतक स्थित जाट कालेज के अखाड़े में हुए गोली कांड का कारण चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन देशभर के पहलवान, गुरु खलीफा और कुश्ती प्रेमी इस हत्याकांड को कुश्ती पर काला धब्बा बता रहे हैं।

आख़िर ऐसा क्या हुआ कि किसी पागल और सिरफिरे कोच को ताबड़ तोड़ गोलियाँ बरसाकर पांच निर्दोषों को मौत के घाट उतारना पड़ा। कुछ और जिंदगी मौत से जूझ रहे हैं।

यह सही है कि कुछ साल पहले तक भारतीय अखाड़ों को शक की नज़र से देखा जाता था। अक्सर कहा जाता था कि अखाड़ों में नेताओं के गुंडे शरण लिए होते हैं और चुनाव के चलते सड़कों पर उतरकर उत्पात मचाते हैं।

कभी कभार गोली कांड भी हुए और कुछ एक ने जान भी गँवाई पर रोहतक जैसा नरसंहार शायद ही कभी देखने सुनने को मिला होगा। पिछले चालीस पचास सालों के भारतीय कुश्ती इतिहास पर नज़र डालें तो पहलवानों पर लगे शरारती तत्व का दाग धोने में गुरु हनुमान अखाड़े के ओलंपियन और महान पहलवानों ने बड़ा काम किया।

सुदेश कुमार, प्रेमनाथ, सतपाल, करतार, जगमिंदर, सुभाष, राजीव तोमर, सुजित मान आदि पहलवानों की उपलब्धि ने कुश्ती को पवित्र खेल और पहलवानों को देश के हीरो जैसा सम्मान दिया।

इस कड़ी में मास्टर चंदगी राम का नाम शीर्ष पर आता है।उन्होंने अपने प्रदर्शन और फिर उनके द्वारा तैयार अनेक पहलवानों ने देश का सम्मान बढ़ाया।

दिल्ली के एक अन्य अखाड़े कैप्टन चाँद रूप व्यायामशाला के अशोक गर्ग, ओमवीर, रोहतश, रमेश दहिया और कई अन्य अखाड़ों के ढेरों पहलवानों की उपलब्धि ने भारतीय कुश्ती को ना सिर्फ़ गौरवान्वित किया बल्कि अखाड़ों और कुश्ती को लेकर बनी ग़लत धारणा को भी जड़ से समाप्त कर दिया।

सुशील और योगेश्वर के ओलंपिक पदकों ने भारतीय कुश्ती को आसमान की बुलंदियों तक पहुँचाया दिया।

यह सब महाबली सतपाल, स्वर्गीय यशवीर और रामफल जैसे कुश्ती द्रोणाचार्यों के त्याग और गुरुत्व गुणों के कारण संभव हो पाया और छत्रसाल अखाड़े को दुनियाभर में पवित्र मंदिर की तरफ देखा जाने लगा।

छत्रसाल अखाड़े के ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त व्यक्तिगत तौर पर रोहतक के हत्याकांड की निंदा करते हैं और कहते हैं कि जो बच्चे अखाड़ों में सीखने-पढ़ने जाते हैं।

इस घटना से उनका मनोबल गिरेगा और अपने बच्चों को चैम्पियन पहलवान बनाने का सपना देखने वाले माता पिता भी सोचने के लए मजबूर होंगे। लेकिन वह मानते हैं कि इस प्रकार के सिरफिरे हर जगह मिल जाएँगे।

अपने गुरु भाई योगेश्वर की तर्ज पर दोहरे ओलंपिक पदक विजेता सुशील कहते हैं कि बेवजह हत्या करने वाला कोई सनकी ही होगा।

मामला चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन इस कदर पागलपन कोई मंदबुद्धि ही दिखा सकता है। लेकिन सुशील का कहना है कि एक ग़लत आदमी के कारण अखाड़ों या कुश्ती को कोसना न्याय संगत नहीं होगा। कुश्ती का मान सम्मान ऐसे लोगों के कारण कभी कम नहीं हो सकता।

लेकिन रोहतक के उस अखाड़े के बारे में क्या कहा जाए जोकि कोचों की अकड़ धकड़ के चलते श्मशान में बदल गया। हत्यारा और दो अन्य हिस्सेदार एनआईएस कोच बताए जाते हैं।

मामला चाहे अखाड़े को कब्जाने का हो, किसी लड़की को लेकर या अन्य कोई कारण रहा हो लेकिन कुश्ती को बड़ा नुकसान पहुँचा है।

गुरुहनुमान अखाड़े के द्रोणाचार्य महासिंह राव की राय में रोहतक का हत्याकांड कुश्ती पर कालिख समान है, जिसने पहलवानों को फिर से शक के दायरे में ला खड़ा किया है। रोहतक के ओलपियन अशोक गर्ग कहते हैं कि वह कभी कभार अखाड़े में जाया करते थे और तीनों हिस्सेदारों को अनेक बार समझाने का भी प्रयास किया।

लेकिन उन्हें इस कदर खून ख़राबे की उम्मीद कदापि नहीं थी। अशोक के बड़े भाई राजेंद्र गर्ग ओलंपिक रेफ़री हैं और रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में शारीरिक शिक्षा विभाग के हेड हैं। उन्हें किसी अखाड़े में इस प्रकार के खूनी खेल की कदापि उम्मीद नहीं थी। वह मानते हैं कि निर्दोषों की हत्या कुश्ती के लए बड़ा आघात है।

देश के नामी कुश्ती गुरुओं और चैपियन पहलवानों को रोहतक की घटना ने हिला कर रख दिया है। सभी का मानना है कि कुश्ती के लिए अशुभ संकेत है। उस समय जबकि भारतीय कुश्ती लगातार तरक्की कर रही थी, ऐसी घटना से पहलवानी पर उंगलियाँ उठना स्वाभविक है।

द्रोणाचार्य राज सिंह कहते हैं कि कुश्ती में शरारती तत्वों की घुसपैठ के कारण इस तरह की शर्मनाक घटनाएँ होती हैं। पहलवान और कोच जोकि अपने खेल को समर्पित हैं ऐसा कभी नहीं कर सकते। उन्होने ऐसे अखाड़ों से दूर रहने और कड़े कदम उठाने का आग्रह किया।

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