‘मोदी सरकार ने दिया है किसानों को अनमोल उपहार’

राजकुमार चाहर
21वीं सदी में भारत का किसान, बंधनों में नहीं, खुलकर खेती करेगा। जहां मन आएगा अपनी उपज बेचेगा, किसी बिचौलिए का मोहताज नहीं रहेगा और अपनी उपज, अपनी आय भी बढ़ाएगा। कुछ लोग बिचौलियों का साथ दे रहे हैं, वो लोग किसानों की कमाई को बीच में लूटने वालों का साथ दे रहे हैं। विश्वकर्मा जयंती के दिन, लोकसभा में ऐतिहासिक कृषि सुधार विधेयक पारित किए गए हैं। इन विधेयकों ने हमारे अन्नदाता किसानों को अनेक बंधनों से मुक्ति दिलाई है, उन्हें आजाद किया है। इन सुधारों से किसानों को अपनी उपज बेचने में और ज्यादा विकल्प मिलेंगे, और ज्यादा अवसर मिलेंगे। लेकिन कुछ लोग जो दशकों तक सत्ता में रहे हैं, देश पर राज किया है, वो लोग किसानों को इस विषय पर भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं, किसानों से झूठ बोल रहे हैं।
केंद्र की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने जो कृषि बिल पास किया है, वह किसानों के हित में हैं। उससे किसानों का ही फायदा होगा। दलालों से छुटकारा मिल सकेगा। किसान अपनी फसल को बाजार में अपनी इच्छा से बेच सकेगा। उसे दलालों के सहारे की जरूरत नहीं होगी। विपक्षी राजनीतिक पार्टियां  किसानों को गुमराह करने का काम कर रही हैं। जिन यंत्रों से हम अपना खेत जोतते हैं, कांग्रेस इंडिया गेट पर उनको जलाने का काम कर रही है। हम ट्रैक्टरों का पूजने का काम कर रहे है।
संसद में पास होने से पहले ही इन तीनों विधेयकों का विरोध विभिन्न किसान संगठनो के द्वारा किया गया जो अभी भी जारी है। इन विरोधों का केंद्र मुख्यत: पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तरप्रदेश हैं। इस विधेयकों को लेकर विभिन्न किसान संगठनों के मन में कुछ प्रश्न है जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य, मंडियो के ख़त्म होने का भय। वहीं, खेती का उद्योगपतियों के हाथों में जाने और कृषि में उनकी दख़ल को लेकर भी डर है। वर्तमान में किसान हितैषी का दम भरने वाली कांग्रेस पार्टी पहले इस क़ानून को देश के किसानो के लिए अमृत मान रही थी, परंतु आज सबसे ज़्यादा विरोध कांग्रेस के बंधु ही कर रहे हैं। हालांकि, विपक्ष के विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा, ‘हम किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करेंगे। यह उसी दिशा में एक कदम है, जिससे कि ओपन मार्केट में वस्तु का मूल्य बाजार आधारित नियंत्रित होगा और जो कैश क्रॉप्स फसल है उससे मार्केट में ज्यादा फायदा होगा। यह किसान के लिए मण्डी के अतिरिक्त एक विकल्प है कि वो अपनी फ़सल कहीं भी बेच सके. पूर्व की न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था जारी रहे।’
जिस प्रकार 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि इससे सेवा क्षेत्र में भारी नुकसान होगा लेकिन आज हम 30 वर्षों बाद देखते हैं कि सेवा क्षेत्र में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। देश की 20% से जनसंख्या सेवा क्षेत्र पर निर्भर है लेकिन वह जीडीपी का 60% निर्धारित करती है, वहीं कृषि में 50% से अधिक लोग जुड़े हैं लेकिन जीडीपी में इसका योगदान सिर्फ 16% है। यह जिस प्रकार सेवा क्षेत्र में 1991 में सुधार हुए वैसे ही 2020 में सरकार का कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है।
हमें तो इस बात की बेहद खुशी है कि ब्रज के आलू किसानों के लिए भी तरक्की के रास्ते खुलेंगे।अब तक ब्रज के अधिकांश आलू किसान बिचौलियों पर निर्भर थे। इसलिए उनका लाभ बिचौलियों में बंट जाता था। नये विधेयक के बाद बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी। इससे आलू किसानों की तरक्की के रास्ते खुलेंगे। उन्हें आलू का सही दाम मिल सकेगा। उनकी आय में इजाफा होगा। ब्रज में आलू के साथ ही गेहूं, सरसों की फसल अच्छी-खासी तादात में होती है। अब इस क्षेत्र में धान की फसल का भी प्रचलन बढ़ता जा रहा है। कुछ राज्यों में जब फलों और सब्जियों को कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) कानून से बाहर लगाया गया था, तो बड़ी संख्या में किसानों को उसका फायदा मिला था। अब अनाज उत्पादक किसानों को भी उसी तरह की आजादी मिलेगी। किसान मजबूत होंगे, तभी आत्मनिर्भर भारत की नींव भी मजबूत होगी।
जहां तक कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 का सवाल है तो ये राज्य-सरकारों की ओर से संचालित एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) मंडियों के बाहर (बाजारों या डीम्ड बाजारों के भौतिक परिसर के बाहर) फार्म मंडियों के निर्माण के बारे में है। क्योंकि भारत में 2,500 एपीएमसी मंडियां हैं जो राज्य सरकारों द्वारा संचालित हैं। वहीं, दूसरा बिल कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020) कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग या अनुबंध खेती के बारे में है। जबतक हमलोग इससे जुड़े एक एक पहलू को नहीं समझ लेंगे, तबतक किसानों को समझाना किसी के बूते की बात नहीं होगी।
राज्यों की कृषि उत्पादन विपनण समिति यानि एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) के अधिकार बरकरार रहेंगे। इसलिए किसानों के पास सरकारी एजेंसियों का विकल्प खुला रहेगा। नए बिल किसानों को इंटरस्टेट ट्रेड (अंतरराज्यीय व्यापार) को प्रोत्साहित करते हैं, ताकि किसान अपने उत्पादों को दूसरे राज्य में स्वतंत्र रूप से बेच सकेंगे। वर्तमान में एपीएमसीज की ओर से विभिन्न वस्तुओं पर 1 प्रतिशत से 10 फीसदी तक बाजार शुल्क लगता है, लेकिन अब राज्य के बाजारों के बाहर व्यापार पर कोई राज्य या केंद्रीय कर नहीं लगाया जाएगा। किसी एपीएमसी टैक्स या कोई लेवी और शुल्क आदि का भुगतान नहीं होगा। इसलिए और कोई दस्तावेज की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। वहीं, खरीदार और विक्रेता दोनों को लाभ मिलेगा। निजी कंपनियों और व्यापारियों की ओर से एपीएमसी टैक्स का भुगतान होगा, किसानों की ओर से नहीं।
किसान कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग या अनुबंध खेती के लिए प्राइवेट प्लेयर्स या एजेंसियों के साथ भी साझेदारी कर सकते हैं। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग निजी एजेंसियों को उत्पाद खरीदने की अनुमति देगी- कॉन्ट्रेक्ट केवल उत्पाद के लिए होगा। किसी भी निजी एजेंसियों को किसानों की भूमि के साथ कुछ भी करने की अनुमति नहीं होगी और न ही कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग अध्यादेश के तहत किसान की जमीन पर किसी भी प्रकार का निर्माण होगा। वर्तमान में किसान सरकार की ओर से निर्धारित दरों पर निर्भर हैं। लेकिन नए आदेश में किसान बड़े व्यापारियों और निर्यातकों के साथ जुड़ पाएंगे, जो खेती को लाभदायक बनाएंगे।  प्रत्येक राज्य में कृषि और खरीद के लिए अलग-अलग कानून हैं। लिहाजा, नए कानून के तहत लागू एक समान केंद्रीय कानून सभी हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) के लिए समानता का अवसर उपलब्ध कराएगा।  नए बिल कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करेंगे, क्योंकि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। निजी निवेश खेती के बुनियादी ढांचे को और मजबूत करेगा और रोजगार के अवसर पैदा करेगा। एपीएमसी प्रणाली के तहत केवल लाइसेंस प्राप्त व्यापारी जिसे आड़तिया यानी बिचौलिया कहा जाता है, को अनाज मंडियों में व्यापार करने की अनुमति थी, लेकिन नया विधेयक किसी को भी पैन नंबर के साथ व्यापार करने की अनुमति देता है।

(लेखक फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश के सांसद और भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

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