ओलंपिक 2048: इसे कहते हैं दूरदृष्टि, पक्का इरादा

राजेंद्र सजवान

दिल्ली सरकार 2048 में दुनिया के सबसे बड़े खेल मेले ‘ओलम्पिक’ खेलों के आयोजन का इरादा रखती है। केजरीवाल सरकार ने अपने बजट में बाकायदा खेलों को प्राथमिकता भी दी है। बजट पेश करते समय उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार चाहती है कि आज़ादी की सौवीं वर्षगाँठ के उपलक्ष में यदि दिल्ली को ओलम्पिक खेलों का आयोजन मिल पाया तो देशवासियों के लिए इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता है! केजरीवाल और सिसोदिया केंद्र सरकार के साथ मिल कर अपने सपनों को उड़ान देना चाहते हैं|

दूसरी तरफ केंद्र सरकार और उसके खेल मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि 2032 या 2036 में भारत ओलम्पिक मेजबानी का दावा ठोक सकता है। यही भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार बत्रा का मानना भी है। अर्थात ओलम्पिक दावेदारी को लेकर केंद्र और दिल्ली के बीच तलवार खिंच सकती है। भले ही जल्दी से जल्दी भारत को मेजबानी मिलना गर्व का विषय रहेगा लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है। कारण, सबसे पहले भारतीय आयोजकों और दावा करने वालों को अपनी गिरेबान में झाँककर देखना होगा।

यदि ओलम्पिक के मेजबानों पर सरसरी नज़र डालें तो जिन देशों ने भी यह सम्मान पाया है उन्होने पहले अपनी खेल हैसियत को साबित किया और तत्पश्चात खेल आयोजित करने के लिए हाथ बढ़ाया। बेशक, ओलम्पिक खेलों का आयोजन किसी भी देश के लए बड़े गर्व की बात है लेकिन जिस देश को सौ साल बाद भी यह पता नहीं कि टोक्यो ओलम्पिक में कितने पदक जीत सकते हैं, उसकी दावेदारी शेख़चिल्ली का सपना लगती है।

देश का खेल मंत्रालय कह रहा है कि भारत 2028 में पदक तालिका में पहले दस देशों में स्थान बना लेगा। यदि सचमुच ऐसा होता है तो सरकार और आईओए तुरंत मेजबानी के लिए आगे बढ़ सकते हैं। सरकार भी भारत को खेल महाशक्ति बनाने के सपने देख रही है। लेकिन हमारे ज़िम्मेदार लोगों को यह पता नहीं कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश के पास एक भी ऐसा खिलाड़ी नहीं जिसे लेकर दावा किया जा सके। मेजबानी तब ही अच्छी लगती है जब मेजबान में दम हो और उसके खेलों का लोहा दुनिया मानती हो।

बेशक, भारत हर क्षेत्र में सक्षम है लेकिन ओलंपिक मेजबानी कोई हँसी खेल नहीं है। कामनवेल्थ खेल इसलिए आयोजित कर पाए क्योंकि हमारे पास सुरेश कलमाडी जैसा योग्य खेल प्रशासक था। लेकिन खेलों के बाद क्या हुआ? गड़बड़ घोटाले करने वाले एक एक कर बच निकले और कीमत चुकानी पड़ी बेचारे कलमाडी को।

खेल जानकार, समीक्षक और योजनाकार कह रहे हैं कि 2032 या चार साल बाद का आइडिया कोरी हवाबाजी है। हाँ, दिल्ली सरकार ने सोच समझकर और दूरदृष्टि के साथ योजना बनाई है और बाक़ायदा अभी से काम भी शुरू कर दिया है। वर्ल्ड क्लास खेल विश्वविद्यालय, स्टेडियम, नये ट्रैक, होटल, आवास स्थल और तमाम सुविधाओं का निर्माण दिल्ली सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल हैं और सही समय पर केजरीवाल और सिसोदिया ने ओलंपिक आयोजन की तैयारियों की शुरुआत कर दी है।

दूसरी तरफ खोखले दावे करने वाले बस चिल पों मचा रहे हैं। इस तरह की बयानबाज़ी खेलों के हित में कदापि नहीं है। दिल्ली सरकार के दावे में ज़रूर दृढ़ निश्चय झलकता है। लेकिन सरकार आईओए को विश्वास में ज़रूर ले। आईओए अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा पहले ही नाराज़गी व्यक्त कर चुके हैं। उन्होंने दिल्ली सरकार से पूछा है कि आईओए से सलाह क्यों नहीं ली गई?

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं. )

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