होमियोपैथी का समयानुकूल समुचित एवं एलोपैथी के साथ संयुक्त प्रयोग कोरोना को हराने में कारगर

डॉ एम डी सिंह

दुनिया की सबसे कम उम्र  चिकित्सा पद्धति होते हुए भी संभावनाएं होम्योपैथी के पास सबसे ज्यादा हैं। अतीत में इसने अनेक महामारिओं में दुनिया की अतुलनीय सेवा की है। जब 1915 में सारी दुनिया प्लेग महामारी से त्राहि-त्राहि कर रही थी उस समय होम्योपैथिक औषधि इग्नेशिया ने महौषधि का काम किया।  वैसे ही एक बार जब अमेरिका में पशुओं पर ऐनथ्रैक्स का आक्रमण हुआ तो वहां की अर्थव्यवस्था डगमगा गई । उस समय एक पशु चिकित्सक ने मर रहे जानवरों के नोजोड से ऐन्थ्रेसाइनम नामक होम्योपैथिक औषधि बनाई जिसके प्रयोग ने हीं अमेरिका के पशु उद्योग को नवजीवन दिया। होम्योपैथी में जितने भी नोजोड्स हैं वे सभी एक तरह के वैक्सीन ही हैं।जरूरत पड़ने पर वे सभी वैक्सीन की तरह ही कार्य भी करते हैं।

होम्योपैथी आज सारी दुनिया में सबसे ज्यादा विकसित अपने देश भारत में है। इसके चिकित्सकों की संख्या भी बहुत बड़ी है जो पूरे देश में फैली हुई है उनका प्रयोग सही ढंग से किया जाए तो इस महामारी से लड़ने में वे बड़े सहयोगी सिद्ध होंगे। होम्योपैथी की औषधीय संपदा सबसे बड़ी और सस्ती है और उन्हें जन-जन तक पहुंचाना होम्योपैथों के लिए एक सामान्य प्रक्रिया होगी। आयुष द्वारा निर्देशित होम्योपैथिक औषधि आर्सेनिक एल्ब को पूरे देश में बहुत लोगों ने खाया है और अब भी लगातार खा रहे हैं। आज सोशल मीडिया द्वारा बहुत आसानी से यह जानकारी इकट्ठा की जा सकती है की आरसैनिक एल्ब 30 खाकर कितने लोग अभी भी सुरक्षित हैं और कितने लोग संक्रमित हुए। नए संक्रमण की अवस्था में उसकी पोटेंसी 200 की जा सकती है एवं रोग कारक की बारंबारता को देखते हुए उसे रोज एक खुराक खाने का निर्देश दिया जा सकता है।

जहां किसी भी पैथी के पास सर्वमान्य चिकित्सा उपलब्ध नहीं है ऐसी अवस्था में लाक्षणिक आधार पर काम करने वाली होम्योपैथिक औषधियां ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकती हैं। एवं अनेक होमियोपैथिक चिकित्सक ऐसा सफलतापूर्वक कर भी रहे हैं। उनके अनुभव का सुनियोजित प्रयोग भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है यदि वे प्रमाण दे सकें।

जहाँ कोई भी चिकित्सा पद्धति आज शत-प्रतिशत लाभ का दावा कर सकने की स्थिति में नहीं है, वहीं रोग की भिन्न- भिन्न आस्थाओं में होम्योपैथिक दवाएं चुनी जा सकती हैं। जरूरत पड़ने पर होम्योपैथिक दवाएं भी अन्य चिकित्सा पद्धति वाली दवाओं की तरह एलोपैथिक दवाओं के साथ सफलतापूर्वक प्रयोग की जा सकती हैं।

आज अधिसंख्य सरकारी चिकित्सालयों में होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी भी तैनात  हैं।अस्पतालों में भर्ती   गम्भीर  मरीजों  को एलोपैथिक दवाओं के साथ साथ लाक्षणिक आधार पर होम्योपैथिक दवाओं को देकर भी होमियोपैथी के प्रभाव को जाना भी जा सकता है और मरीज को तत्काल लाभ भी दिया जा सकता है। एलोपैथिक दवाओं के साथ होम्योपैथी काम नहीं करेगी या दुष्प्रभाव पैदा करेंगी ऐसा सोचना गलत है। इससे एक ही चिकित्सा पद्धति पर पड़ने वाले दबाव में काफी हद तक कमी होगी।

आज ऑक्सीजन की कमी से पूरे देश में त्राहि-त्राहि मची हुई है। यह खबर सुनकर अधिकांश लोग चाहे बीमार हो या नहीं आक्सीजन के जुगाड़ में पड़े हुए हैं। भय और अवसाद सर्वत्र व्याप्त है। ऐसी अवस्था इम्यून सिस्टम को नष्ट कर सकती है। यही कारण है कि आज ज्यादातर लोग रोगभ्रांति से पीड़ित मिल रहे हैं। चिकित्सा के नेगेटिव पक्ष वाले समाचार भी तनाब  पैदा कर रहे हैं। जबकि उसके लिए कोविड-19-2 ही काफी है।

औषधि-

1- चिंता भय एवं अवसाद-

यदि होम्योपैथिक औषधि इग्नेशिया 200 सबको खिला दिया जाए तो देश भर में फैल रहे पैनिक को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। इससे ऑक्सीजन पर निर्भरता अपने आप कम हो जाएगी।य़ह चिंता भय ,अवसाद , एवं असहाय आस्थाओं में उत्पन्न होने वाले क्षद्म स्वासअल्पता (सूडो डिसीनिया)की उत्तम औषधि है।

2- सर्दी-जुकाम ,बुखार बदन दर्द-

एकोनाइट नैप 30, आर्सेनिक एल्ब 30, बेलाडोना 200, ब्रायोनिया एल्ब 30 जेल्सीमियम 30, यूपेटोरियम पर्फ 200 ,यूकेलिप्टस जी 30, मार्बीलिनम 30, सैबाडिला 30, पल्साटिला 30,चिरैता Q,रस टाक्स 200 , टिनैसपोरा Q इत्यादि ।

3- गले में खरास –

एकोनाइट, बेलाडोना, कैप्सिकम, मेन्था पी, पाइपर नाइग्रा, सोलेनम जैन्थोस्परमम आदि।

4-टेस्ट और स्मेल का खत्म हो जाना-

बेलाडोना, एमाईग्लैडिस, जस्टीसिया , पल्साटिला, इग्नेशिया, मेन्थाल,मार्बीलिनम,न्यूमोकोकिनम , हिपर सल्फ इत्यादि।

5-डाइरिया और पेट दर्द-

एकोनाइट नैप, आर्सेनिक एल्ब, बेलाडोना,एलोय सोको,

ब्रायोनिया एल्ब, कार्बो वेज ,डल्कामारा ,पल्साटिला, नक्स वोमिका, मर्क सोल।

6- खांसी ,न्यूमोनिया,दमा-

अमोनियम कार्बन,ब्रायोनिया एल्ब, ऐन्टिम टार्ट, हिपर सल्फ, आर्सेनिक एल्ब, ऐसपाइडोस्परमा,काली बिच,

एसिड हाइड्रोसाइनिक, मेन्था पीपराटा, यूकेलिप्टस जी, जस्टीसिया लाइकोपोडियम।

7-ऑक्सीजन लेवल कम हो जाने पर-

a-स्पाइडोस्पर्मा क्यू  एवं 30-फेफड़े कमजोर होने अथवा निमोनिया होने पर ,तेज खासी आने पर ,ऑक्सीजन की कमी होने पर। यह फेफड़ों के टानिक की तरह काम करती है।

b-हिपैटिका  क्यू  अथवा 30- फेफड़ों में न्यूमोनिया के कारण हिपेटाइजेशन हो जाना एवं फेफड़ों का अशक्त हो जाना।

c- एसिड हाइड्रोसाइनिक 30- तेज़ खांसी के साथ दम घुटता महसूस हो, खास तौर से सुबह शाम ।मृत्यु भय के साथ न्यूमोनिया, ऑक्सीजन कमी से झटके आना, बेहोश हो जाना।

d-वैनेडियम 30 मस्तिष्क को ऑक्सीजन की कमी होने पर।

e- न्यूमोकोकिनम 200- किसी भी प्रकार की न्यूमोनिया होने पर फेफड़ोंकाअत्याधिकअस्वस्थहोजाना। ।

f-लारोसेरेसस  क्यू  अथवा 30- हृदय में कमजोरी अथवा एंग्जाइटी के कारण ऑक्सीजन की कमी महसूस होने पर।लम्बी-लम्बी साँस लेता है फिर भी फेफड़े खाली प्रतीत नहीं होते।

इसके अतिरिक्त और भी होमियोपैथिक औषधियां हैं जिन्हें    चिकित्सक की राय पर रोग की किसी भी अवस्था में अकेले अधवा अन्य चिकित्सा पद्धति की औषधियों के साथ प्रयोग किया जा सकता है।

दवाओं के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाओं, राजनीतिक पार्टियों , चिकित्सा संस्थानों ,बुद्धिजीवियों एवं मीडिया को पॉजिटिविटी के साथ एक- एक व्यक्ति को जागरूक करने के लिए अपना संपूर्ण योगदान देना चाहिए तभी इस महामारी से बचाव संभव है।

बचाव के लिए कोविड-19 के पहले वेरिएंट में सबसे ज्यादा लक्षण न्यूयमोंकोकिनम 200और आर्सेनिक अल्ब 200 के थे, नए वाइरस के संक्रमण को रोकने के लिए उपरोक्त दोनों दवाओं के साथ मार्बीलिनम 200 को भी परखा जा सकता है। इन औषधियों को आयुष मंत्रालय द्वारा अच्छी तरह जांच परख कर पूरे देश के लिए जारी किया जा सकता है । इससे इनकी विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठेगा एवं कुछ ही दिनों में इन दवाओं के सर्वेक्षण रिपोर्ट भी आ जाएंगे। जो पूरे विश्व के लिए वरदान साबित होंगे एवं होमियोपैथी को भी उसका उचित सम्मान मिल पाएगा।

सबको वैक्सीन लगने तक उपरोक्त होम्योपैथिक औषधियों की कुछ खुराकें एक क्रमबद्धता के साथ देकर लंबे समय तक उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है ।

(डॉ एम डी सिंह, महाराज गंज गाज़ीपुर उ प्र में पिछले पचास सालों से होमियोपैथी  की चिकित्सा कर रहे हैं. लेख में व्यक्त किये गए विचारों से चिरौरी न्यूज़ का सहमत होना अनिवार्य नहीं है)

 

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