क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमाएं होनी चाहिए?

शिवानी राज़वारिया

नई दिल्ली: दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द है “मां” जिसकी ममता और बलिदान के आगे देवी-देवता भी सर झुकाते हैं, इस संसार की संरचना भले ही भगवान ने की हो पर सृष्टि रचियता ने कितनी बार इसी मां की कोख से जन्म लेकर धरती पर लीलाएं रची है उसने भी इसकी शक्ति को नतमस्तक होकर नमन किया है। मां बनना एक औरत के लिए सौभाग्य की बात होती है जब एक मां बच्चे को जन्म देती है तो दुनिया की सारी खुशियां उस बच्चे के सामने फीकी पड़ जाती हैं।

हम बचपन में जो देखते हैं और सुनते हैं हमारे आस-पास जो आचार व्यवहार, बातों का माहौल चल रहा होता हैं उसका बचपन पर गहरा असर पड़ता है। हम जैसे-जैसे बड़े होते हैं हमारे आसपास खड़े अनुभवी पेडों तले विचार धाराएं बनती है, नज़रिए बनते हैं और उसी तले हम फलते फूलते पनपते बड़े होते हैं। कुछ पेड़ पर्यावरण को शुद्ध करते हैं और उनके तले पनप रहे दूसरे पौधे आनंदित महसूस करते हैं पर उन्ही में कुछ पौधे समाज और देश के लिए जहर का काम करते हैं। उनकी बीमार सोच उनकी कट्टरपंथी  विचारधाराएं,उनके जहर से भी ज्यादा जहरीले शब्द इंसानियत पर से विश्वास उठाने का काम बखूबी से करते हैं।

एक बच्चे की परवरिश का उसके आज और आने वाले कल दोनों पर बहुत गहरा असर होता है और उसका प्रभाव केवल उस तक या उसके परिवार तक ही नहीं रहता बल्कि जैसे-जैसे वह बड़ा होता है और जिंदगी में आगे बढ़ता है उसके साथ बहुत से लोगों के भविष्य जुड़ने लगते हैं उसके द्वारा किया गया काम, उसके विचार,सोच कहीं ना कहीं देश हित या अहित में शामिल होते हैं।

अब बात आती है समाज की! समाज एक पहेली सा है कभी समझ में नहीं आया इसी समाज के कारण कितनी अप्रिय घटनाएं घटी,कितनों की जिंदगी से उनका साथ छूट गया। ये वही समाज है जिसको प्रगति की दिशा की ओर ले जाने में बड़े-बड़े महान लोगों ने अपनी पूरी जिंदगी का सफर लगा दिया,सफलता मिली पर पूर्ण रूप से नहीं! आजादी के समय से चल रहा यह संघर्ष बीसवीं सदी तक भी कायम है।आज भी हम इसी दिशा में काम कर रहे हैं।

आखिर क्या कारण है हम सोसाइटी से इतना डरते हैं जबकि उसी सोसाइटी के बीच हम रहते हैं उसी के बीच रहकर हमने अपने बचपन से बुढ़ापे तक का समय बिताया होता है सफर का अंत भी इसी समाज के बीच तय होता है। सोसाइटी की बात करें तो उसके अंदर तमाम विचारधाराओं,परंपराओं नीतियों को मानने वाले लोग रहते हैं जो अलग-अलग धर्मों से ताल्लुक रखते हैं धर्मों की बात की जाए तो भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन सभी धर्मों के लोग अपनी अपनी मान्यताओं, परम्पराओं, विचारधाराओं के साथ एक समाज की तरह रहते हैं।

आज भी हमारे समाज में अधिकांश रहने वाले लोग नकारात्मक सोच की गंभीर बीमारी से ग्रस्त है इसमें  कोई दो राय नहीं हैं।आज भी जो समाज में कुरीतियां, असमानता, बुद्धिहीनता, आजागरूकता फैली हुई है जो एक गंभीर विषय है। जिस पर काम होना बहुत जरूरी है और समाज के धर्म गुरुओं, देश के प्रतिनिधियों को इस पर विचार करना चाहिए। समाज के प्रतिनिधियों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह समाज में फैल रही अराजकता की हवा को साफ करें।

सफूरा जरगर का नाम फ़िर से लाइमलाइट में आया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर वो जमकर कोसी जा रही है, उस पर अभद्र टिप्पणियां की जा रही है। दरअसल, जेल में सफूरा जरगर की तबीयत बिगड़ने के दौरान उनका चेकअप होने पर वह 2 महीने गर्भवती पाई गई है, इसके बाद जब से यह खबर बाहर आई है तब से लोगों ने सोशल मीडिया पर मजाकिया मिम्स ओर पिक्चर्स पोस्ट करने शुरू कर दिए है। शहीनबाग से इस खबर को जोड़कर उसके चरित्र पर सवाल उठाने शुरू कर दिए है। यह मुद्दा इसलिए और ज्यादा तूल पकड़ गया जब सफूरा जरगर ने रिकॉर्ड में अपने हस्बैंड का नाम नहीं मेंशन कराया। लोगों ने अपनी मानसिकता के अनुसार लिविंग रिलेशनशिप, अविवाहित मां तमाम अटकलें लगानी शुरु कर दी।

कुछ दिनों से सोशल प्लेटफॉर्म्स पर सफूरा जरगर नाम से हेस्टैक ट्रेंड में चल रहा है। आप लोगों ने भी शायद देखा होगा या सुना होगा और अगर नहीं सुना और देखा तो आपकी जानकारी के लिए सफूरा जरगर जामिया मिलिया इस्लामिया की पीएचडी स्कॉलर स्टूडेंट है, जो उस वक्त लाइमलाइट में आई जब देश में कुछ महीने पहले एनआरसी और सीएए एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे थे। फिलहाल तो वह तिहाड़ जेल में बंद है।

सफूरा जरगर पर CAA एक्ट और नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में दिल्ली के जाफराबाद में हुए दंगों को भड़काने की साज़िश में एंटी टेरर एक्टिव यानी अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रीवेंशन एक्ट (UAPA) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। एनआरसी और सीएए एक्ट पर हुए विरोध के समय सफूरा का नाम सामने आया था, जिसकी जांच के बाद 10 अप्रैल को दिल्ली पुलिस द्वारा उसको अरेस्ट किया गया है।

सफूरा जरगर विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे नेतृव करती हुई दिखाई दी उनकी बातों का लोगों पर काफी असर भी दिखा। लीडर की तरह आगे बढ़कर सभी टीवी चैनल पर, पत्रकारों को दिए इंटरव्यू में उन्होंने निडरता के साथ अपनी बात कही। सफूरा जरगर सिर्फ जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्टूडेंट नहीं रही एक पब्लिक फिगर बन गई है और जब हम पब्लिक का नेतृत्व करते हैं तो जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती है।  तब हम किसी भी परिस्थिति में पल्ला झाड़ कर बचने की कोशिश नहीं कर सकते। आपकी जवाबदेही बनती है और आपको जवाब देना होता है।

किसी भी महिला के लिए यह उसका निजी मामला है पर जिस समाज में हम रहते हैं और खासकर कहा जाता है कि मुस्लिम समाज में इस्लामिक मान्यताओं के साथ कोई समझौता नहीं किया जाता। ऐसे में सफूरा जरगर की प्रेग्नेंसी लोगों के बीच और भी ज्यादा सवाल खड़े कर रही हैं।

ट्रोलिंग सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक चलन बन चुका है, सेलिब्रिटीज हो या राजनेता या फिर खिलाड़ी कोई भी ट्रोलिंग से बच नहीं पाता। सानिया मिर्जा जो इतनी बड़ी स्पोर्ट्स प्लेयर है उनके स्कर्ट पहनने पर तमाम आलोचना की गई थी और उनके खिलाफ फतवा तक जारी कर दिए गए थे। हाली ही में दुनिया से अलविदा कह चुके इरफान ख़ान को उनके जाने पर लोग कोसते हुए नजर आए। इरफान ख़ान इस्लाम की कई बातों को नहीं मानते थे जिससे काफी लोग उनसे ख्फा रहते थे। समाज में और भी बहुत सी ऐसी घटित घटनाएं है।

अब सवाल यह है कि अभिव्यक्ति की आजादी जो हमें संविधान से मिली है उसकी क्या सीमाएं है। भारत एक ऐसा देश है जहां पर आम से खास हर इंसान को बोलने की आजादी दी गई है गलत पर आवाज़ उठाने की,सही के साथ खड़े होने की आजादी दी गई है। लेकिन हम लोग भूल जाते हैं कि हर चीज की एक मर्यादा होती है वरना यूं ही नहीं श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहां गया है।

कुछ चुनिंदा लोगों के लिए सवाल जो खुद को समाज का हेडमास्टर समझते है।

हमारे देश के संविधान में कहां पर यह लिखा गया है यदि कोई महिला शादी से पहले गर्भवती होती है तो उसके बच्चे को नाजायज करार देने का अधिकार समाज के कुछ चुनिंदा लोगों को दिया जाता हैं।  हमारे संविधान में कहां यह लिखा गया है कि किसी भी महिला या स्त्री का चरित्र उसके पहनावे, उसके काम, उसके विचारों से आँका जाएगा और इसकी जिम्मेदारी समाज के कुछ मानसिक रूप से बीमार चुनिंदा लोगों की जहरीली जुबान तय करेगी।

आखिर कौन है यह लोग जो स्त्री के चरित्र को बनाने में अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है? किसी स्त्री के ऊपर अपने हिसाब से अभद्र टिप्पणी कर सकते हैं उसके चरित्र पर उंगली उठा सकते हैं उसके खिलाफ उस हद तक बोल सकते हैं जिसकी कोई हद ही न तय की जा सके।

यह केवल सफूरा जरगर की बात नहीं है सफूरा पर जो गंभीर आरोप हैं उसके लिए सजा भी होनी चाहिए। किसी से असहमति होने पर विरोध करने का भी अधिकार है पर उस बच्चे को नाजायज कहना जिसकी अब तक इस दुनिया में आंखें तक नहीं खुली कहां तक ठीक है।

यह तो सिर्फ एक बात रखने का तरीका था। शायद मैं अपनी बात आप तक पहुंचा पाई हूं पर एक मां और उसके होने वाले बच्चे के लिए जो अभद्र टिप्पणियां की जा रही हैं वो हमारी सोच की विकलांगता को दर्शाती है।

इन सब सवालों के जवाब बहुत जरूरी है क्योंकि कोई भी ऐसा अधिकार नहीं है कि हम किसी के निजी मामलों में हस्तक्षेप करें। शादी ,प्रेग्नेंसी किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी निजी जिंदगी का हिस्सा होती है। उसके मौलिक अधिकारों पर निर्भर करती है। जिसके लिए वह किसी भी तरह से बाध्य नहीं होता।

लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी होती है जहां पर हमें जवाब भी देना होता है जब हम जनता के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं तो आपका हर एक कदम चाहे वह निजी जिंदगी से जुड़ा हो या ना हो आप से जुड़े लोग उसे जानना चाहते हैं। सफुरा जरगर का इस तरह लाइम लाइट में आना युवा पीढ़ी का उसकी और प्रभावित होना सामान्य है। क्या सफुरा को इस जिम्मेदारी का एहसास नहीं होना चाहिए था? वो युवा पीढ़ी के लिए एक आइकन बनकर उभर रही थी।

 

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