तो क्या खेलों की दुनिया बदल देगा कोरोना?

राजेंद्र सजवान

कोरोना से मनुष्यजाति को कब छुटकारा मिलेगा कहना मुश्किल है। दुनिया के बाकी देश तो बेहतर स्थिति में हैं लेकिन भारत ऊंची ऊंची हांकने के बावजूद भी महामारी के कुचक्र में फंसता चला गया। आज पूरा देश त्राहि त्राहि कर रहा है। बीमारों की कतार और लाशों के ढेर फैलते जा रहे हैं। ऐसे में टोक्यो ओलंपिक की तैयारी पर असर पड़ना स्वाभाविक है।

चलिए मान लिया कि हमारे खिलाड़ी तमाम बाधाओं के बावजूद ओलंपिक खेल आएंगे। लेकिन ओलंपिक संभावितों को छोड़ बाकी खिलाड़ी कब खेल मैदानों में उतरेंगे? एक साल से भी अधिक समय से अधिकांश खेलों के छोटे बड़े आयोजन बंद पड़े हैं। प्रतिस्पर्धात्मक मुकाबले संभव नहीं हो पा रहे, अभ्यास करें तो कैसे और कहां? मान लिया कि कुछ महीनों और शायद एक दो साल में हालात सामान्य हो सकते हैं।

खिलाडी बंद कमरों से निकलकर खुली हवा में सांस ले पाएंगे। लेकिन दो-तीन साल में बहुत कुछ बदल जाएगा। सब जूनियर जूनियर हो जाएंगे और जूनियर खिलाड़ी सीनियर वर्ग में खेलने के दावेदार हो जाएंगे। लेकिन शून्य काल का असर खिलाड़ियों को क्या पहले की तरह असरदार रहने देगा?

यह न भूलें कि विश्व और ओलंपिक स्तर पर भारतीय खिलाड़ियों का रिकार्ड बेहद खराब रहा है। बमुश्किल ही हमारे खिलाड़ी ओलंपिक के टिकट पाते हैं। दूसरी बड़ी समस्या उम्र की धोखाधड़ी है। अक्सर देखा गया है कि उम्र की धोखाधड़ी भारतीय खेलों का नासूर रही है।

चिंता का सबसे बड़ा कारण यह है कि जब कोरोना भारत को।छोड़ेगा और खेलों के लिए माहौल बन पाएगा, तब तक आज के ज्यादातर स्टार खिलाड़ी मैदान छोड़ चुके होंगे। देखा जाए तो एक कामयाब खिलाड़ी की उम्र बहुत ज्यादा नहीं होती।

चार छह साल में वह शिखर चूम कर नीचे उतरने लगता है। कोरोना काल के चलते हमारे हॉकी, फुटबाल और बैडमिंटन खिलाड़ी सन्यास के करीब पहुंच चुकेहैं। अधिकांश मुक्केबाज, पहलवान, निशानेबाज, तीरंदाज और एथलीट भी शीर्ष पर पहुँचने के बाद ज्यादा देर नहीं टिक सकते।

महामारी चली तो जाएगी लेकिन क्या असर छोड़ जाएगी, कहना मुश्किल है वैसे भी साल दो साल खिलाड़ी कमरे में बंद रहे तो वह खेलना भूल जाता है। उनकी प्रगति की रफ्तार कम हो जाती है।

बेशक, भारतीय खेल मंत्रालय, ओलंपिक संघ,खेल संघो और खिलाड़ियों की समस्याएँ बढ़ सकती है। सबको नये सिरे से प्रयास करने पड़ेंगे। भारतीय खेलों का वैसे भी भगवान मालिक रहा है। लेकिन अब तो भगवान भी नहीं सुन रहा। ऐसे में सभी खेलों को कोरोना की विदाई के बाद नई सोच और नये जोश के साथ शुरुआत करनी होगी। लेकिन कोरोना है कि मानता नहीं।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

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