भारतीय ज्ञान प्रणाली में समस्‍त दुनिया की अनगिनत समस्याओं का समाधान निहित है: श्री धर्मेंद्र प्रधान

Solution to countless problems of the whole world lies in Indian knowledge system: Shri Dharmendra Pradhanचिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज ‘भारतीय ज्ञान प्रणालियों का परिचय: अवधारणाएं और अमल’ पर एक पाठ्यपुस्तक का विमोचन किया। श्री सुभाष सरकार, शिक्षा राज्य मंत्री; श्री के. संजय मूर्ति, सचिव, उच्च शिक्षा; श्री ए.डी. सहस्रबुद्धे, एआईसीटीई अध्यक्ष; और एआईसीटीई, आईकेएस प्रभाग एवं शिक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।

श्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि लेखकों ने इस पुस्तक में भारतीय ज्ञान प्रणाली को एक अकादमिक स्‍वरूप प्रदान किया है। श्री प्रधान ने वैश्विक स्‍तर पर भारतीय ज्ञान, संस्कृति, दर्शन और आध्यात्मिकता के व्‍यापक प्रभाव के बारे में बताया। उन्होंने प्राचीन भारतीय सभ्यता के बारे में बताया और इसके साथ ही यह भी जानकारी दी कि आखिकार किस तरह से इसने पूरी दुनिया को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। वेदों, उपनिषदों और अन्य भारतीय ग्रंथों के बारे में उल्‍लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन विरासत अद्भभुत कृतियों से भरी हुई है जिसे संरक्षित, प्रलेखित और प्रचार-प्रसार करने की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने प्राचीन भारत की विज्ञान आधारित प्रथाओं और ज्ञान के विभिन्न उदाहरणों के बारे में भी बताया, जिन्हें हम आज भी आधुनिक दुनिया में प्रासंगिक पा सकते हैं।

मंत्री महोदय ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय शिक्षा प्रणाली में वैकल्पिक ज्ञान प्रणालियों, दर्शन और परिप्रेक्ष्य को प्रतिबिंबित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वैसे तो हम अपने प्राचीन अतीत की अच्छी चीजों को अपनाते हैं, लेकिन इसके साथ ही हमें अपने समाज में निहित समस्याओं के प्रति भी सचेत रहना चाहिए और एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना चाहिए जो प्राचीन अतीत के विशिष्‍ट ज्ञान व समकालीन मुद्दों के बीच उचित सामंजस्‍य सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि समस्‍त दुनिया की अनगिनत समस्याओं का समाधान भारतीय ज्ञान प्रणाली में निहित है।

यह पुस्तक हाल ही में एआईसीटीई द्वारा अनिवार्य किए गए ‘आईकेएस (भारतीय ज्ञान प्रणालियों)’ पर एक आवश्यक पाठ्यक्रम की पेशकश करने की आवश्‍यकता को पूरा करती है। इसके अलावा, नई शिक्षा नीति (एनईपी) में भी उच्च शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रम में आईकेएस के बारे में विस्‍तृत जानकारियां प्रदान करने के लिए एक स्पष्ट दिशा बताई गई है जिससे आने वाले दिनों में देश के कई उच्च शिक्षण संस्थानों में इस तरह की पुस्तक अत्‍यंत आवश्यक हो गई है। वैसे तो यह पुस्तक मुख्य रूप से इंजीनियरिंग संस्थानों द्वारा उपयोग के लिए लिखी गई है, लेकिन इसमें निहित संरचना और सामग्री स्‍वयं ही इस तरह की पुस्तक के लिए अन्य विश्वविद्यालय प्रणालियों (लिबरल आर्ट्स, चिकित्सा, विज्ञान और प्रबंधन) की आवश्यकता को आसानी से पूरा करने में मदद करती है। ‘आईकेएस’ पर हाल ही में जारी पाठ्यपुस्तक विद्यार्थियों को अतीत के साथ फिर से जुड़ने, समग्र वैज्ञानिक समझ विकसित करने और बहु-विषयक अनुसंधान एवं नवाचार को आगे बढ़ाने के लिए इसका उपयोग करने का अवसर प्रदान करके विद्यार्थियों को पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के बीच की खाई को पाटने में सक्षम बनाएगी।

इस पाठ्यपुस्तक का पाठ्यक्रम भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरू द्वारा व्यास योग संस्थान, बेंगलुरू और चिन्मय विश्व विद्यापीठ, एर्नाकुलम के सहयोग से विकसित किया गया है। यह प्रोफेसर बी महादेवन, आईआईएम बेंगलुरू द्वारा लिखा गया है और एसोसिएट प्रोफेसर विनायक रजत भट, चाणक्य विश्वविद्यालय, बेंगलुरू; एवं चिन्मय विश्व विद्यापीठ, एर्नाकुलम में वैदिक ज्ञान प्रणाली स्कूल में कार्यरत नागेंद्र पवन आर एन इसके सह-लेखक हैं।

डॉ. सुभाष सरकार ने पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों के बारे में सीखने की नितांत आवश्यकता का उल्लेख किया। उन्होंने आयुर्वेद, प्राचीन काल में जहाजों के निर्माण, विमान संबंधी ज्ञान, सिंधु घाटी शहरों के वास्तुकार, और प्राचीन भारत में मौजूद राजनीति विज्ञान के उदाहरणों का हवाला दिया। उन्होंने ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली का परिचय’ पर लिखी गई पुस्तक की सराहना की जिसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान प्रणालियों की ज्ञानमीमांसा एवं सत्व शास्त्र को जीवन के सभी क्षेत्रों में लागू करना, और इंजीनियरिंग एवं विज्ञान के छात्रों को इनसे कुछ इस तरह से परिचय कराना है जिससे कि वे इससे जुड़ाव महसूस कर सकें, इसके महत्व को गंभीरता से समझ सकें और इस दिशा में आगे खोज कर सकें। श्री सरकार ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति के उत्थान के लिए उसकी जड़ें अवश्‍य ही मजबूत होनी चाहिए और इन जड़ों को संरक्षित करने के लिए पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में जानकारियां जरूर होनी चाहिए।

इस कार्यक्रम में प्रो. ए.डी.सहस्रबुद्धे, अध्यक्ष, एआईसीटीई और लेखक, डॉ. बी. महादेवन, आईआईएम, बेंगलुरू सहित अन्य लोगों के स्वागत भाषण शामिल थे। एआईसीटीई के उपाध्‍यक्ष प्रो. एम पी पूनिया ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *