भारतीय खेलों के लिए बड़ी चेतावनी है एरिक्सन की धड़कनों का रुकना और वापस लौटना

राजेंद्र सजवान

“उसको दिल का दौरा पड़ा और वह चला गया था। हमने उसके उस दिल को फिर से धड़काया जिसने काम करना बंद कर दिया था”, यूरो कप 2020 में डेनमार्क और फिनलैंड के बीच खेले गए मैच में डेनमार्क के क्रिस एरिक्सन का इलाज करने वाले टीम डॉक्टर मोर्टेन बोएसेन ने एरिक्सन के होश में आने के बाद यह प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने यह भी कहा कि एरिक्सन लगभग चला गया था और काफी दूर से हम उसे वापस खींच लाने में कामयाब रहे।

मंजे हुए मिडफील्डर एरिक्सन इटली के इंटर मिलान क्लब के लिए खेलते हैं। मिलान और डेनमार्क के टीम डॉक्टरों का कहना है कि उनके खिलाड़ी को कोरोना की कोई शिकायत नहीं थी और मैदान पर उतरने तक भी भी वह सामान्य और फिट खिलाड़ी की तरह व्यवहार कर रहे थे।

लेकिन उनके दिल के दौरे ने दुनियाभर के खिलाड़ियों के दिल जोर से धड़का दिए हैं। खासकर, उन देशों के खिलाड़ी डरे सहमे हैं जिन्हें कोविड 19 ने अपनी चपेट में लिया है और जिन देशों या क्लबों में चिकिस्ता व्यवस्था को गंभीरता से नहीं लिया जाता, जिनमें हमारा भारत महान सबसे आगे है।

जिन खिलाड़ियों, कोचों, खेल आयोजकों, खेल पत्रकारों और खेल प्रेमियों ने भारतीय खेल आयोजनों को करीब से देखा है और खिलाड़ियों को चोटें खाते देखा है, वे जानते हैं कि हमारे खेल आयोजन स्थलों और स्टेडियमों में चोट लगने पर खिलाड़ी को कैसी चिकित्सा व्यवस्था से गुजरना पड़ता है। उसे कैसे जानवरों की तरह ट्रीट किया जाता है।

यह न भूलें कि कोविड 19 की सबसे ज्यादा मार सहने वाले और अपने लाखों देशवासियों को खोने वाले भारत के खिलाड़ियों को आने वाले दिनों में और भी कई गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।

कोरोना ने भारत के चिकित्सा तंत्र, भारतीय विज्ञान, मनोविज्ञान और चिकित्सा पद्ति को फेल साबित कर दिया है। ज़ाहिर है खिलाड़ियों को कदम कदम पर अच्छे और जीवन बचाने वाले डॉक्टरों की जरूरत पड़ेगी। लेकिन देश में हालात बहुत खराब हैं। बेचारे डॉक्टर खुद जानें गंवा रहे हैं।

शुरुआत राष्ट्रीय स्कूली खेलों से करते हैं , जिनमें भाग लेने वाले हजारों खिलाड़ियों के लिए कभी कभार ही कोई डॉक्टर आन ड्यूटी होता है। गंभीर चोट लगने की स्थिति में यदि खिलाड़ी को हस्पताल ले जाना पड़े तो एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं होगी।

चोटिल खिलाड़ी जब तक हस्पताल पहुंचता है,उसका बहुत खून बह चुका होता है। अक्सर देखने में आया है कि देश के जिस किसी राज्य में स्कूली खेलों का आयोजन होता है, दर्जनों खिलाड़ी बीमार होते हैं, चोटें खाते हैं और आयोजकों के नाकारापन के कारण बीमारी साथ ले जाते हैं।

इंटर कॉलेज और इंटर यूनिवरसिटी आयोजनों में मार काट और खून खराबा आम है। हाकियाँ, क्रिकेट और बेसबॉल के बैटऔर चाकू-छुरे चलाए बिना कोई भी आयोजन सम्पन्न नहीं होता। एसजीएफआई की तरह कॉलेज खेलों के आयोजक भी डॉक्टर या मेडिकल किट की जरूरत महसूस नहीं करते। लेकिन दवा दारू की आड़ में मोटे मोटे बिल जरूर बनाए और पास किए जाते हैं।

हो सकता है कि आईपीएल, आईएसएल जैसे बड़े आयोजनों में खिलाड़ियों के तत्काल उपचार की व्यवस्था रहती हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर के बड़े बड़े आयोजनों में ऐसी व्यवस्था शायद ही देखने को मिले। यह हाल तब है जबकि देश गांव, शहर का कोई भी आयोजन बिना खून खराबे के शायद ही सम्पन्न होता हो।

एरिक्सन प्रकरण से सबसे पहला सबक भारतीय खेलों को सीखने की जरूरत है। कारण, खेलों के नाम पर यहां जंगल राज चलता है। महामारी के सबसे ज्यादा शिकार अपने देश में हैं। ऊपर से गंदी राजनीति खिलाड़ियों को और ज्यादा बीमार करेगी। वक्त रहते संभल जाएं। यहां भी थाली और ताली बजाने वाली मूर्खता काम नहीं करेगी।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

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