चुनावी रेसिपी में अपराध का तड़का

सतेंद्र कुमार मिश्रा

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग ने जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख के चुनाव की तारीखों की घोषणा होने के साथ सियासत शुरू हो गई है। जिला पंचायत अध्यक्ष के 75 पद हैं जिसमें 16 पद अनुसुचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इसमे 6 पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। 20 पद पिछड़ी जाति के लिए तथा 7 पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। जिला पंचायत के 3050 चुने हुए सदस्य हैं जो अपने अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। ब्लाक प्रमुख के 826 पद हैं। इनका चुनाव 75852 चुने गए पंचायत सदस्य करेंगे। इसमे भी 5 पद अनुसूचित जनजाति 171, अनुसूचित जाति और 223 पद पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हैं।

यह चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है अत: सियासी जोड़तोड़ राजनीतिक दलों के प्रत्याशी उम्मीद्वारों की धड़कने बढ़ा दिया है। गोरखपुर जिले के चुने हुए कुछ जिला पंचायत सदस्यों और ग्राम प्रधानों की एक बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, जिसमे मुख्य बात यह थी कि धनबल, बाहुबल तथा सत्ता का समर्थन ही इसमें निर्णायक भूमिका अदा करेगा। इसकी बेचैनी सदस्यों और उम्मीद्वारों को डरा रही थी। धनबल वाला बाहुबल से भयभीत है, बाहुबल वाला सत्ता समर्थन से। इसी बल के सहारे प्रत्याशी वोटरों को प्रलोभन और भय दिखाकर पहले से उन्हे अपने पाले में इकट्ठा करने लगे हैं। जो एक अपहरण जैसा है, परंतु राजनीति में जायज है। प्रत्याशियों का मानना है कि सत्ता समर्थन किसी भी उम्मीद्दवार का खेल बिगाड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश में तो पहले ही अपराध और राजनीति का चोली दामन का साथ रहा है। यह चुनाव ही राजनीति में अपराध का एक प्रवेश द्वार है। सदस्यों की माने तो पंचायत चुनाव में मुंह की खाई भाजपा इस चुनाव में इज्जत बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है। अपराध कैसा भी हो, अपराध तो अपराध है। उत्तर प्रदेश में नेता बनने की योग्यता अपराध बन गया है ऐसा लोगों का मानना है।

सत्ता की लालच में अपराध को सभी राजनीतिक दल समर्थन देते है। अत: अपराध मुक्त राजनीति की संभावना बेमानी है। इस चुनाव को पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है इसमे सिक्रेट बैलेट का उपयोग होना चाहिए। लेकिन यह सब राजनीतिक दलों की इच्छाशक्ति पर ही निर्भर करता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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