खो खो को अन्तराष्ट्रीय पहचान दिलाना और ओलिंपिक में शामिल करना है लक्ष्य: सुधांशु मित्तल  

ईश्वर नाथ झा
नई दिल्ली: विशुद्ध भारतीय खेल खो खो को अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए फेडरेशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता सुधांशु मित्तल इन दिनों लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने तकरीबन 125 खिलाड़ियों का ट्रेनिंग कैम्प आयोजित करने का फैसला लिया है जहां सभी खिलाड़ियों की क्षमताओं का थ्री डाइमेंशन एनालिसिस की जाएगी। इसमें प्रत्येक खिलाड़ियों की क्षमताएं  स्पोर्ट्स साइंस के आधार पर पहले मापी जाएगी और तब उनकी ट्रेनिंग की जाएगी।

खो खो फेडरेशन के अध्यक्ष सुधांशु मित्तल ने जानकारी देते हुए बताया कि यह पहली बार हो रहा है कि ट्रेनिंग के लिए स्पोर्ट्स साइंस का सहारा लिया जा रहा है जिसमें खिलाड़ियों की क्षमताओं का आकलन कर उन्हें उसके अनुसार ट्रेनिंग दी जायेगी। मित्तल ने कहा कि खिलाड़ियों की ट्रेनिंग के लिए दो सेन्टर मानव रचना यूनिवर्सिटी और गुरुतेग बहादुर यूनिवर्सिटी को चुना गया है जहां स्पोर्ट्स साइंस की मदद से खिलाड़ियों को भविष्य के लिए तैयार किया जाएगा।

मित्तल ने कहा कि अभी फेडरेशन का पूरा फोकस खो खो अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने को लेकर है। उन्होंने कहा कि फिलहाल देश और दुनिया में खो खो के लिए माहौल बनाने के बारे में सोच रहे हैं। उनकी पहली प्राथमिकता खिलाड़ियों को सुविधा देना और खो खो को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने की है। फिलहाल उन्हें उस दिन का इंतजार है जब यह विशुद्ध भारतीय खेल 2022 के एशियाड में शामिल होगा। उन्हें उम्मीद है कि सरकार द्वारा परंपरागत खेलों को बढ़ावा देने के चलते खो खो की प्रगति संभव है। उन्होंने कहा कि उनके खेल के लिए पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं। ठीक वैसे ही जैसे कबड्डी ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए विश्व स्तर पर पहचान बनाई है।
श्री मित्तल का मानना है कि कबड्डी की तर्ज पर वह भी पिछले साल नवंबर में खो खो लीग के आयोजन का फैसला कर चुके थे पर कोरोना ने खेल बिगाड़ दिया। उन्हें विश्वास है कि लीग का आयोजन शीघ्र संभव हो पायेगा। खो खो फेडरेशन के सचिव एम एस त्यागी के अनुसार यदि कोरोना से निजात मिली तो सितंबर में लीग का आयोजन हो सकता है जिसमें दस फीसदी खिलाड़ी एशिया, अफ्रीका और यूरोप से हो सकते हैं।

त्यागी ने बताया कि उनका खेल तकनीकी रुप से कबड्डी से भी ज्यादा गतिमान और आकर्षक है, जिसमें ओलिंपिक खेल बनने की बड़ी सम्भावना है। उनके अनुसार खो खो देशभर में बेहद लोकप्रिय खेल है। जरूरत थी तो एक कुशल नेतृत्व की और श्री मित्तल के अध्यक्ष पद संभालने के बाद से खो खो की कामयाबी तय समझें।

त्यागी मानते हैं कि उनके खेल को जीरो से शुरू करना है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ सालों में खो खो की प्रगति नहीं हो पाई। जब यह विशुद्ध भारतीय खेल 2022 के एशियाड में शामिल होगा तब जाकर उन्हें चैन मिलेगा। चूंकि सरकार परंपरागत खेलों को बढ़ावा दे रही है, उम्मीद है कि अब खो खो की प्रगति भी संभव हो पाएगी। त्यागी को भरोसा है कि श्री मित्तल के नेतृत्व में भारत वर्ल्ड खो खो का नेतृत्व कर पायेगा। एशियाड में शामिल होने के बाद उनके खेल को ओलम्पिक में जगह पाने के लिए कमसे कम 70 देशों का समर्थन चाहिए, जोकि कुछ एक सालों में संभव हो सकता है।

सुधांशु मित्तल ने एक सवाल के जवाब में खेल मंत्री किरण रिजिजू की जमकर तारीफ की और कहा कि वह भारतीय खेलों की नब्ज पहचानते हैं और हर खेल की गहरी समझ रखते हैं। उनके अनुसार खेल मंत्री प्राचीन भारतीय खेलों को नयापन देने का प्रयास कर रहे हैं और खो खो को उनका हर प्रकार से सहयोग मिल रहा है। उन्होंने स्वीकार किया कि खोखो को अभी लम्बा सफर तय करना है और इससफर में उन्हें मीडिया का सहयोग चाहिए।

आईओए की राजनीति से रहेंगे दूर

खो खो फेडरेशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता सुधांशु मित्तल की भारतीय ओलिम्पिक संघ में एक अपना दबदबा है जिसके कारण कुछ दिनों पहले ये कयास लगाये जा रहे थे कि वह आईओए के अध्यक्ष पद की दावेदारी करेंगे। लेकिन आज एक अनौपचारिक मुलाकात में उन्होंने साफ साफ कहा कि फिलहाल वह खो खो को अंतरराष्ट्रीय पहचान तथा ओलंपिक खेल का दर्जा दिलाने का काम करना चाह रहे हैं। वह भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) की राजनीति से अभी दूर रहना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि आईओए की राजनीति से किसी का भला नहीं हुआ, हालांकि कुछ दिनों पहले तक वह आईओए के घमासान में खासी रुचि ले रहे थे।
उन्होंने कहा कि आईओए के साथ उनका अनुभव इतना बुरा रहा है कि अब उस ओर देखने का मन नहीं करता। उन्हें नहीं लगता कि फिर कभी पुरानी कहानी दोहराना चाहेंगे। हां, इतना जरूर कहा कि सही वक्त आने पर आईओए को भी जरूर सुधारेंगे, जोकि अपनी चाल भूल गई है।

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