यूनिसेफ ने जारी की द स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स चिल्ड्रेन 2021 रिपोर्ट

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: यूनिसेफ ने कोविड और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर एक अहम रिपोर्ट जारी की है। महामारी का दौर बच्चों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा। मानसिक स्वास्थ्य पर यूनिसेफ की रिपोर्ट ऐसे समय में जारी की गई है जबकि सरकारी स्तर पर पोस्ट कोविड प्रभावों को ध्यान में रखते हुए कल्याणकारी योजनाएं और स्वास्थ्य की रणनीतियां तैयार की जा रही हैं। रिपोर्ट में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य सुधार की एक व्यापक तस्वीर देखी जा सकती है, जिसमें निवेश के साथ ही सामाजिक और पारिवारिक सहयोग को भी अहम बताया गया है। जिसका केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने भी समर्थन किया है। इसी क्रम में सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य के लिए न सिर्फ नेशनल हेल्पलाइन जारी की गई, बल्कि जिला स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम भी संचालित किए जा रहे हैं।
यूनिसेफ और गैलप द्वारा जारी की गई द स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स चिल्ड्रेन 2021 रिपोर्ट में 21 देशों के 15-24 साल के आयुवर्ग के 20,000 बच्चों से मानसिक स्वास्थ्य पर किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। भारत के संदर्भ में सर्वेक्षण के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, भारत के 41 प्रतिशत बच्चे मानसिक स्वास्थ्य की परेशानियों को किसी के भी साथ साझा करने में हिचकिचाते हैं। मानसिक तनाव का यह स्तर घातक हो सकता है, जिसका दूरगामी परिणाम बच्चों के सामान्य जीवन और देश के आर्थिक विकास पर पड़ेगा। यूनिसेफ की भारत में प्रतिनिधि डॉ. यास्मीन अली हक के अनुसार भारत के संदर्भ में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के पहलू काफी गंभीर हैं, कोविड में बच्चे रिश्तेदार, दोस्त, क्लॉस रूम से ही दूर नहीं हुए बल्कि उन्हें उपेक्षा और दुव्र्यवहार भी झेलना पड़ा, सही मायने में बच्चों पर कोविड19 महामारी के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव की हमें अभी बहुत कम जानकारी है। यूनिसेफ की रिपोर्ट और इसके अहम पहलूओं का केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया ने भी समर्थन किया है और कहा कि बच्चों के बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए शिक्षकों के पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को शामिल किया जाएगा।
मध्य प्रदेश की 16 वर्षीय अस्मिता डांगी कोविड के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहती हैं कि यह समय काफी मुश्किल था, उसकी पढ़ाई नहीं हो पा रही थी, घर के सभी लोग परेशान थे, इसलिए किसी से भी अपनी बात साझा नहीं कर सकती थी। पश्चिम बंगाल के प्रियांशु दास या फिर लखनऊ की मलिहा, सभी ने किसी तरह किसी तरह से मानसिक तनाव के गंभीर चरण को महसूस किया। यूनिसेफ के सर्वेक्षण में ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत के बच्चे मानसिक परेशानी को माता पिता के साथ भी साझा करने में सहज नहीं हैं, 41 प्रतिशत बच्चों व किशोरों ने यह माना कि वह मन की बात किसी से नहीं कह पाते हैं, जबकि 21 अन्य देशों के 83 प्रतिशत बच्चों का मानना है कि मानसिक परेशानी में दूसरों से सहायता लेना एक बेहतर उपाय हो सकता है।
मानसिक परेशानी का सामाना लगभग हर व्यक्ति दिन में कई बार करता है, लेकिर रिपोर्ट इस बात का भी खुलासा करती है कि मानसिक परेशानी की वजह से अनमने या अरूचि के साथ किसी काम को करने, दूसरों से बात न करें, चिड़चिड़े रहने या फिर अकेले रहने का असर बेहतर भविष्य को भी प्रभावित करती है। भारत में प्रति सात में एक या 14 प्रतिशत बच्चों को मानसिक परेशानी की वजह से काम में रूचि नहीं होती, जापान में यह अनुपात प्रति दस बच्चे में एक है। डायग्नोस या पहचान में आए मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकार जैसे एडीएचडी (अटेंशन डेफेसिट हाइपर एक्टिविटी डिस्ऑर्डर) एंजाइटी या चिंता, ऑटिज्म, बायोपोलर डिस्ऑर्डर, व्यवहार संबंधी परेशानी, डिप्रेशन, इटिंग डिस्ऑर्डर, बौद्धिक अक्षमता और सिजोफ्रेनिया जैसे परेशानियां न सिर्फ बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि यह उनकी आर्थिक और सामजिक स्थिति को भी प्रभावित करती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डब्लूएचओ 2020 रिपोर्ट के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य परेशानियों की वजह से वर्ष 2012-2030 के बीच भारत में 1.03 ट्रिलियन अमेरिकन डॉलर आर्थिक क्षति होने का अनुमान है। भारत में बच्चों में मानसिक तनाव की स्थिति का यह आकलन कोविड के दौरान किया गया, जबकि महामारी के पहले की भी स्थिति अधिक संतोषजनक नहीं थी। इंडियन जर्नल ऑफ साइक्रायट्री की वर्ष 2010 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पचास मिलियन बच्चे किसी ने किसी तरह से मानसिक समस्या के शिकार थे, जिनमें 80 से 90 प्रतिशत बच्चों को कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई। इंडियन जर्नल ऑफ सायक्रायट्री वर्ष 2017 रिपोर्ट के अनुसार अनुसारभारत में मानसिक स्वास्थ्य पर कुलस्वास्थ्य बजट का केवल 0.05 प्रतिशत ही खर्च किया गया। लेकिन समस्या है तो समाधान भी है। हाल के कुछ वर्षो में सरकार के सकारात्मक प्रयास की वजह से जिला स्तर पर स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किए गए, जिससे तनाव को प्राथमिक स्तर पर ही पहचाना जा सके, इसके साथ ही किसी भी समय सहायता के लिए राष्ट्रीय स्तर की हेल्पलाइन भी शुरू की गई। यूनिसेफ की रिपोर्ट में व्यापक और योजनाबद्ध तरीके से निवेश करने का सुझाव देती है। रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों के जन्म के शुरूआती दिन या बचपन से आनुवांशिकी, अनुभव और पर्यावरणीय कारकों का मिलाजुला प्रभाव उनकी व्यक्तित्व विकास पर पड़ता है। जिसमें पालन पोषण, स्कूली शिक्षा, रिश्तों की गुणवत्ता, हिंसा या दुव्र्यवहार के संपर्क में आना, भेदभाव, गरीबी, स्वास्थ्य आपात स्थिति जैसे कि कोविड19 आदि शामिल है, यह सभी ऐसे पहलू हैं जो जीवन भर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को आकार देते हैं और प्रभावित करते हैं।
बच्चों को बचपन में मिला भावनात्मक सहयोग, सुरक्षा, देखभाल, प्यार सुरक्षित माहौल, सहयोगी या परिजनों का सकारात्मक सहयोग आदि भविष्य में होने वाले मानसिक विकारों के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं। रिपोर्ट में इस बारे में भी सचेत किया गया है कि धन की कमी संबंधी बाधाएं या गरीबी अधिकांश बच्चों के सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य विकास को रोकती है। इसलिए बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य योजनाओं में निवेश को सामाजिक पहलू से भी देखना जरूरी है, रिपोर्ट कहती है कि बच्चों और किशोरों के बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए लिंग आधारित भेदभाव को रोकने संबंधी योजना और रणनीति पर निवेश को बढ़ाया जाना चाहिए, मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में लोगों के मिथकों को दूर किया जाना चाहिए, मानसिक परेशानियों पर खुलकर बात की जानी चाहिए, इसके लिए सकारात्मक पहल जरूरी है। स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा को समग्र रूप से काम करने की जरूरत है। जिससे घर में माता पिता के साथ ही स्कूलों में शिक्षकों की भी इस संदर्भ में भागीदारी सुनिश्चित की जाएं, जिससे देश को स्वस्थ्य मानसिक स्वास्थय के साथ विकास करने वाले बच्चों के रूप में बेहतर कल दिया जा सके।

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