जो माकूल हो, उन खेलों को बढ़ावा दे उत्तराखंड

अजय नैथानी

उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है। लिहाजा यहां हर तरह का खेल नहीं खेला जा सकता है, खासतौर पर वे टीम गेम इस राज्य के लिए आदर्श नहीं है, जिनके लिए बड़े मैदानों, भारी-भरकम इंफ्रास्ट्रकचर और धन की जरूरत होती है। क्योंकि इस राज्य की पहाड़ी जनता की स्थिति आर्थिक रूप मजबूत नहीं है लेकिन यहां के युवा मजबूत कद-काठी, दृढ़-निश्चयी और मेहनती होते हैं।

इस कारण यहां पर वही खेल पनपे हैं, जिनके लिए बहुत बड़े इंफ्रास्ट्रकचर की जरूरत नहीं होती है और जिनमें खर्चे भी कम होते हैं। उत्तराखंड से ऐसे ही खेलों के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति हासिल की है। इनमें मनीष रावत (वॉक-रेसर, ओलम्पियन), नितेंद्र सिंह रावत (मैराथन रनर, ओलम्पियन), कविंद्र सिंह बिष्ट (अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज) और बच्छेंद्रीपाल, लवराज धर्मशक्तु (दोनों ख्याति प्राप्त पर्वतारोही) प्रमुख हैं।

वैसे उत्तराखंड में प्रतिभा की कमी नहीं लेकिन मूलभूत ढांचागत सुविधाओं में आभाव में बहुत से खिलाड़ी पलायन करके दूसरे राज्यों का प्रतिनिधित्व करते नजर आए है, इनमें महेंद्र सिंह धोनी (पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान), रिषभ पंत (भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य), वंदना कटारिया (भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी) और अनिरुद्ध थापा (भारतीय फुटबाल खिलाड़ी) जैसे बड़े स्टार प्रमुख हैं।

दुर्गम पहाड़ और संसाधनों की कमी है बड़ी रुकावट

उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है। इस छोटे से राज्य में बड़े खेल के मैदान बहुत कम संख्या में नजर आते हैं, ज्यादातर ये मैदान राजधानी देहरादून, रुड़की और काशीपुर जैसे तराई के इलाकों में सीमित संख्या में हैं। यहां कई नदियां बहती हैं, ताल हैं, झीलें हैं और पहाड़ों की कई श्रृंखलाएं हैं। लिहाजा, उत्तराखंड में निवास करना हमेशा से ही एक दुर्गम चुनौती माना जाता रहा है।

अनुकूल खेलों के खिलाड़ी भी विश्व पटल पर दिखा चुके हैं धमक

इस राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां कुछ खेलों के लिहाज से एकदम माकूल है, जैसे कि पर्वतारोहण, एथलेटिक्स, तैराकी इत्यादि। पर्वतारोहण में, बच्छेंद्रीपाल को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली महिला माउंटेनियर का गौरव हासिल है, जबकि लवराज धर्मशक्तु तो रिकॉर्ड सात बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर चुके हैं।

नितेंद्र सिंह रावत मैराथन रनर हैं और मनीष सिंह रावत वॉक-रेसर (पैदल चाल) हैं। ये दोनों 2016 के रियो ओलम्पिक में शिरकत कर चुके हैं। इन दोनों ने ही अपने खेल को उत्तराखंड में ही निखारा। कविंद्र सिंह बिष्ट को भविष्य का मुक्केबाज माना जा रहा है और वह कई राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में अपने मुक्कों का दम दिखा चुके हैं।

प्रतिभाओं का पलायन है गंभीर समस्या

“पहाड़ का पानी और जवानी…कभी उसके काम नहीं आते हैं।” यह कहावत उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के खेल परिदृश्य पर सटीक बैठती है। वजह है खेल प्रतिभाओं का पलायन, रिषभ पंत जैसे प्रतिभाशाली विकेटकीपर-बल्लेबाज को अपनी खेलने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए रुड़की छोड़ना पड़ा।

इसी तरह महेंद्र सिंह धोनी भी “जवानी और पानी” की तरह उत्तराखंड के के कभी काम न आए। इसी तरह देहरादून निवासी भारतीय मिडफील्डर अनिरुद्ध थापा को भी फुटबाल खेलने की अपनी हसरत को पूरा करने के लिए उत्तराखंड से पलायन करने पड़ा था। उत्तराखंड की एकमात्र हॉकी स्टार वंदना कटारिया को भी अपना हुनर निखारने के लिए पलायन करना पड़ा।

वह भारतीय महिला हॉकी टीम में एक जाना-माना नाम हैं और यह फॉरवर्ड लम्बे समय टीम के लिए गोल कर रही है। पूर्व अंतर्राष्ट्रीय फुटबालर जतिन सिंह बिष्ट को भी शीर्ष स्तर पर खेलने के लिए पलायन करना पड़ा। लिहाजा, राज्य के कई ऐसे पूर्व एवं वर्तमान प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं, जिन्हें पलायन करने को मजबूर होना पड़ा।

समाधान: देश-काल-परिस्थितियां देखकर बनानी होगी खेल-नीति

राज्य के नीति-निर्माताओं को राज्य की परिस्थिति के हिसाब से खेल नीति बनाने की जरूरत है। उन्हें ऐसे खेल और खिलाड़ियों को बढ़ावा देने की जरूरत है, जो राज्य की परिस्थितयों के हिसाब से फिट बैठते हो। जैसे कि, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, पर्वतारोहण, तैराकी इत्यादि। अगर, नीति-निर्माता ऐसे खेलों को बढ़ावा दें, तो इन खेलों में राज्य के प्रतिशाली खिलाड़ी देश का नाम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रौशन कर सके। इसके अलावा यह भी देखना होगा कि राज्य की खेल प्रतिभाओं का पलायन न हो और इसके लिए उनको भरपूर मौके देने की जरूरत है।

( लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं।)

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