वैक्सीन आत्मनिर्भरता से अन्य कई बीमारियों के वैक्सीन बनाने के रास्ते खुले

Vaccine self-sufficiency opens the way for making vaccines for many other diseases
(Dr. Renu Swarup, Secretary, Department of Bio-Technology, Government of India)

डॉ. रेणु स्वरूप, सचिव, बायो-तकनीकि विभाग, भारत सरकार

विज्ञान के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि महमारी से निबटने के लिए इतने कम समय में वैक्सीन तैयार किया। उसके आपात उपयोग को मंजूरी दी गई। जन जन की सहभागिता से भारत में वयस्क टीकाकरण अभियान का आंकड़ा 100 करीब तक पहुंचा। कोरोना महामारी के खिलाफ चलाए गए अभियान में दुनिया के सभी देशों के सामने यह एक उदाहरण है। महामारी को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण एक अहम उपाय है, लेकिन इसके साथ ही कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करना भी जरूरी है, और मुझे लगता है कि सभी नागरिकों को इसके लिए अपना योगदान देना चाहिए कि वह इस तरह का वातावरण न बनाएं जो वायरस को दोबारा पनपने या बढ़ने का अवसर दे।

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसे न सिर्फ देश के भीतर बल्कि विश्व स्तर पर भी मान्यता प्राप्त हुई है। इससे हमें इस बात का आत्मविश्वास मिला है कि हम पब्लिक स्वास्थ्य में आने वाली किसी भी चुनौती का सामाना करने के लिए तैयार हैं। देश की आबादी और जनसंख्या घनत्व को देखते हुए, मैं आपूर्ति चेन, संसाधन और मानवीय श्रम को बधाई देना चाहती हूं जिन्होंने इसे संभव बनाया।

वैक्सीन को भले ही कम समय में जारी किया गया है लेकिन इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है, इसके लिए हमारे पास दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण के सुरक्षा और गुणवत्ता डाटा हैं। इस संदर्भ में टीकाकरण के बाद वैक्सीन की प्रभावकारिता और नये वेरिएंट पर इनका प्रभाव जानने के लिए कई अध्ययन किए जा रहे हैं। हमें संक्रमण के प्रकार, दोबारा संक्रमण होने आदि का पता लगाने के लिए भी डाटा प्राप्त हो रहे हैं, और हमें यह हमें विश्वास दिलाता है कि वैक्सीन प्रभावी है और सुरक्षित भी।

डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट सहित देशभर के विभिन्न संस्थान वैक्सीन के दीर्घकालीन प्रभावों को जानने के लिए अध्ययन कर रहे हैं।

असल में,  वैक्सीन विकसित करने का सफर काफी महत्वपूर्ण रहा, जिसके लिए सभी शोधकर्ता, शैक्षणिक संस्थाान, उद्योग और स्टार्ट अप एक मंच पर आए।  हमने शिक्षा और उद्योग के बीच की सीमाओं को तोड़ते हुए ज्ञान और विचारों की बुनियादी जानकारियों को एक साथ साक्षा किया, और इसका परिणाम आज सबके सामने है, हमने स्वदेशी कोवैक्सिन को विकसित किया, इसके साथ ही कोविशील्ड का उत्पादन शुरू किया गया, जिसके कारण कोविड टीकाकरण अभियान शुरू हो सका। हमें देश की पहली डीएनए आधारिक वैक्सीन के इमरजेंसी प्रयोग की अनुमति प्राप्त हो गई है, जल्द ही हमें बायोलॉजिकल ई वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। इसके साथ ही एक अन्य एमआरएनए वैक्सीन का भी दूसरे चरण का परीक्षण शुरू कर दिया गया है, हमें विश्वास है कि वैज्ञानिक कौशल और उपलब्ध बुनियादी ढांचे  के साथ हम कोविड19 के अतिरिक्त कई नये टीके विकसित कर सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि केवल कोविड वैक्सीन के लिए यह चुनौती रहा है। कोई भी वैक्सीन विकास एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। हमें वैक्सीन विकास के लिए वैज्ञानिक और तकनीकि क्षेत्र में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसका सामना हर वैज्ञानिक शोधकर्ता को करना पड़ता है। हम एक साथ पांच से छह वैक्सीन को विकसित करने के बारे में विचार कर रहे थे, हमारी चुनौती मांग के अनुसार पर्याप्त शोध को पूरा करने की थी।

वास्तव में भारत उन प्रमुख देशों में एक था जिसने विश्व स्वास्थ्य संगठन की फरवरी 2020 में हुई बैठक में विकसित देश यूएस और यूके की भांति ही बीमारी से लड़ने का रोडमैप तैयार कर लिया था। हमने वैक्सीन को सबसे मजबूत ताकत के रूप में पहचान लिया था। भारत सरकार ने नये वैक्सीन को विकसित करने के लिए उच्च जोखिम की आर्थिक सहायता की, जिसकी वजह से उद्योगों को भी एनआरएन और डीएनए वैक्सीन पर काम करने के लिए आत्मविश्वास मिला।

इसके साथ ही हमने वैक्सीन निर्माण की कमियों की भी पहचान की, हमें अतिरिक्त पशु सुविधाओं, इम्यून एस्से लैबोरेटरी और क्लीनिकल ट्रायल सुविधाओं की जरूरत थी। इन सभी कमियों को हमने शीघ्र ही पूरा कर लिया।

आज हमारे पास 54 क्लीनिकल परीक्षण साइट्स, चार एनिमल या पशु परीक्षण सुविधा है, हमारे शोधकर्ताओं को अब संसाधन जुटाने के लिए विदेशों पर आश्रित होने की जरूरत नहीं है। हमारे पास देश में ही शोध संबंधी सभी संसाधन उपलब्ध हैं इसलिए यह कहा जा सकता है यह रणनीति के तहत किया गया सोचा समझा प्रयास रहा।

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