भारत में कपड़ा उद्योग के अस्तित्‍व को बचाने के लिए महत्‍वपूर्ण है अपशिष्‍ट जल प्रबंधन: सचिव, वस्त्र मंत्रालय

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: रीफैशन हब एक सामूहिक प्रयास है जिसका उद्देश्‍य दीर्घकालिक सकारात्‍मक जलवायु प्रभाव पैदा करने के लिए भारत के कपड़ा उद्योग में जल प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इस पर परिचर्चा करना है। इस पहल के एक हिस्‍से के रूप में, 18 मई 2021 को एलायंस फॉर वाटर स्‍टीवार्डशिप एंड वाटर मैनेजमेंट फोरम (इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स इंडिया के तहत) के सहयोग से सेंटर फॉर रिस्‍पॉन्सिबल बिजनेस (सीआरबी) द्वारा अपशिष्‍ट जल को एक संसाधन के रूप में स्‍थापित करने और कपड़ा उद्योग द्वारा स्‍थायी तरीके से इससे निपटने पर सहमति बनाने के लिए एक राष्‍ट्रीय बहु-हितधारक परामर्श चर्चा का आयोजन किया गया।

श्री उपेन्‍द्र प्रसाद सिंह, सचिव, वस्त्र मंत्रालय ने मुख्‍य भाषण दिया और विषय विशेषज्ञों जैसे श्री रिजित सेनगुप्‍ता, सीईओ, सीआरबी, इंजीनियर नरेंद्र सिंह, अध्‍यक्ष, इंस्‍टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स ऑफ इंडिया, डा. के रमेश, सीनियर मैनेजर – प्रोसेस इंजीनियरिंग/आरएंडडी, तमिलनाडु वाटर इनवेस्‍टमेंट कंपनी, चेतन कुमार सानगोले, हेड, सस्‍टैनेबिलिटी डेस्‍क, महरत्‍ता चैम्‍बर ऑफ कॉमर्स, इंडस्‍ट्री एंड एग्रीकल्‍चर, अंकुर खन्‍ना (मालिक, खन्‍ना इंडस्‍ट्रीज), दिनेश चोपड़ा (सदस्‍य, इंडियन केमीकल्‍स काउंसिल एंड पूर्व-निदेशक, हनीवेल) और अर्चना दत्‍ता, राष्‍ट्रीय समन्‍वयक, भारत, स्‍विच एशिया – आरपीएसी, युनाइटेड नेशन एनवायरमेंट प्रोग्राम, ने वर्कशॉप के पैनालिस्‍ट के रूप में अपशिष्‍ट जल का पुन: उपयोग, नीति हस्‍तक्षेप और प्रोत्‍साहन के विभिन्‍न पहलुओं पर चर्चा की।

वर्चुअल कॉन्‍फ्रेंस के दौरान, इंडस्‍ट्री लीडर्स, कपड़ा उद्योग की संस्‍थाओं, सरकार और विकास एजेंसियों ने अपशिष्‍ट जल के पुन: उपयोग, एक संसाधन के रूप में अपशिष्ट जल के समग्र दृष्टिकोण, नीतिगत सिफारिशों, योजना प्रोत्‍साहनों और भारत में कपड़ा उद्योग द्वारा अपशिष्‍ट प्रबंधन पर दीर्घकालिक और निरंतर कार्रवाई के दिशा में सहयोगी अप्रोच के निर्माण के विभिन्‍न पहलुओं पर चर्चा की।

अभियान को अपने समर्थन का आश्वासन देते हुए, श्री उपेन्‍द्र प्रसाद सिंह, सचिव, वस्त्र मंत्रालय, ने कहा, “भारत में कपड़ा उद्योग के अस्तित्‍व को बचाने के लिए अपशिष्‍ट जल प्रबंधन महत्‍वपूर्ण है और यह कोई परोपकार का विषय नहीं है। सरकार, कपड़ा निकायों और उद्योग सहित सभी हितधारकों की यह जिम्‍मेदारी है कि वह ऐसी हरित तकनीकों में निवेश करें जो जल संरक्षण को बढ़ावा दें। ” इस तरह की पहल की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्‍होंने कहा, “जल एवं अपशिष्‍ट जल प्रबंधन की आपूर्ति को लेकर पर्याप्‍त जानकारी मौजूद है लेकिन मांग नहीं है। कुशल जल और अपशिष्‍ट जल प्रबंधन आपूर्तिकर्ताओं/खरीदारों को ब्रांड्स/उपभोक्‍तओं के साथ जोड़ने में मदद कर सकता है।” इसके अलावा, उन्‍होंने कपड़ा और अन्‍य अधिक जल-उपयोग वाले क्‍लस्‍टर्स में जल एवं अपशिष्‍ट जल प्रबंधन के लिए जरूरत के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए ‘क्‍लस्‍टरों की स्थिति का आकलन’ का सुझाव दिया। अंत में उन्‍होंने कहा कि उद्योगों के वाटर फुटप्रिंट के बारे में उतनी जागरूकता और जानकारी नहीं है, जितनी कार्बन/एनर्जी फुटप्रिंट पर है और इसलिए इसके महत्‍व के बारे में जागरूकता और ज्ञान बढ़ाने की आवश्‍यकता है।

2019 वर्ल्‍ड रिसोर्सेस इंस्‍टीट्यूट (डब्‍ल्‍यूआरआई) रिपोर्ट में भारत को विश्‍व स्‍तर पर सबसे अधिक पानी की कमी वाले देशों की सूची में 13वें स्‍थान पर रखा है। भारतीय कपड़ा उद्योग अकेले प्रतिदिन 425,000,000 गैलन पानी का उपयोग करता है और केवल एक जोड़ी जींस  को बनाने में लगभग 500 गैलन पानी का उपयोग होता है। दुनिया भर में, 2050 तक, कपड़ा उद्योग में जल प्रदूषण के दोगुना होने की उम्‍मीद है, जो इसे धरती पर दूसरा सबसे बड़ा प्रदूषित उद्योग बनाता है। चिंता का एक प्रमुख कारण, पानी का अत्‍यधिक उपयोग और अत्‍यधिक जल प्रदूषण है, जो सबसे ज्‍यादा रंगाई और प्रोसेसिंग की वजह से होता है। जल स्रोतों के घातक प्रदूषण ने अपशिष्‍ट जल के उपचार और निर्वहन के लिए नियमों की एक लंबी श्रृंखला को जन्‍म दिया है। कॉमन एफफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्‍लांट (सीईटीपी) और कुछ मामलों में जेडएलडी सिस्‍टम की स्‍थापना भारत में अब एक नियम बन गया है।

श्री रिजित सेनगुप्‍ता, सीईओ, सीआरबी ने कहा, “सेंटर फॉर रिस्‍पॉन्सिबल बिजनेस के पास स्थिरता, टिकाऊ उद्यमों को बढ़ावा देने और कैसे उद्योग अपने मुख्‍य परिचालन में स्थिरता को एकीकृत करते हैं इसपर नजर रखने का अधिकार है। भारत जैसे देश में, जब हम स्थिरता के बारे में बात करते हैं तब तीन पहलुओं – आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण – के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है, जिसमें व्‍यापारिक मुद्दे और समझौते शामिल हैं। जल के मामले में, इसका तात्‍पर्य पानी को एक प्रमुख औद्योगिक इनपुट, पानी के लिए समान पहुंच के लिए सामाजिक जरूरत और एक संसाधन के रूप में जल संरक्षण को सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाने की आवश्‍यकता है। इस संतुलन को बनाने में मदद करने के लिए समाधान खोजने के हमारे प्रयासों में, सीआरबी जल उपयोग दक्षता का सक्षम बनाने के लिए इंडस्ट्रियल/सेक्‍टोरल रणनीतियों में सर्कुलर इकोनॉमी/रिसोर्स के सिद्धांतों को लागू करने की वकालत करता है। अंत में, समाधान खोजने की प्रक्रिया भी महत्‍वपूर्ण है और इसे बहु-हितधारक सहयोग के आधार पर स्‍थानीय रूप से सह-डिजाइन करने की जरूरत है। ”

बहु-हितधारक परामर्श के दौरान, इस बात पर चर्चा की गई कि जल प्रबंधन, मौजूदा प्रोत्‍साहनों और नीतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्‍यकता है, जिसका उद्देश्‍य कपड़ा उद्रयोग में जल संरक्षण के मुद्दे को संबोधित करना है। विशेषज्ञों ने भी उद्योग से स्‍थायी व्‍यावसायिक प्रथाओं को अपनाने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि वे अपशिष्‍ट जल को एक संसाधन के रूप में देखें। हरिद्वार और सराय में उपयोग किए जा रहे मॉडल पर भी प्रकाश डाला गया, जो हाइब्रिड एनुयिटी मॉडल आधारित सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट है, जो सफल रहा है और कपड़ा उद्योग अपशिष्‍ट जल उपचार के लिए इससे सीख ले सकता है। विचार करने के लिए एक महत्‍वपूर्ण बिंदु यह था कि वर्तमान और अपडेटेड डाटा किसी भी हस्‍तक्षेप की योजना बनाते समय उपलब्‍ध होना चाहिए। इसके अलावा, वस्त्र मंत्रालय अन्‍य मंत्रालयों के परामर्श और सहयोग से क्षेत्र के लिए एक स्‍थायी रोडमैप विकसित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों को चला सकता है और विभिन्‍न सीखों को लागू कर सकता है।

यहां सर्वोत्‍तम स्‍वच्‍छ तकनक, ऑटोमेशन के लिए प्रोत्‍साहन और मशीनरी के उन्‍नयन एवं जल के पुन: उपयोग के लिए प्रभावी तंत्र को अपनाने के जरिये प्रक्रिया अनुकूलन के लिए कपड़ा प्रसंस्‍करण उद्योग को सक्षम बनाने की आवश्‍यकता है। उद्योगों को स्‍पष्‍ट नीतियों और कैसे ये लागत लाभ प्रदान कर सकती हैं इसके बारे में बताया जाना चाहिए। अन्‍य क्षेत्रों में तकनीकी विकास को ट्रैक करने और कपड़ा उद्योग के लिए सर्वोत्‍तम संभव और टिकाऊ अपशिष्‍ट जल उपचार सुनिश्चित करने के लिए अन्‍य क्षेत्रों से प्राप्‍त सीखों को लागू करना महत्‍वपूर्ण है। उद्योग और सरकारें इस संकट के समाधान के लिए विभिन्‍न स्‍तरों पर सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा, उपभोक्‍ता टिकाऊ उत्‍पादन और उपभोग के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं। यह स्‍पष्‍ट है कि इस क्षेत्र में बेहतर जल प्रबंधन के लिए एक दीर्घकालिक, सहयोगात्‍मक दृष्टिकोण की जरूरत है।

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