चुनाव परिणाम के बाद दंगा होना क्या बतलाता है ?

निशिकांत ठाकुर
जो दीप पश्चिम बंगाल ने जलाया है, उसे शोला बनने से क्यों रोक रहे हैं ? उस रोशनी से पूरे देश को प्रकाशित होने दीजिए। लड़ते दो हैं, जीतते तो केवल एक ही हैं। जीतने वाला भी वही होता है और हारने वाला भी वही, लेकिन हारने वाला कई तरह का आरोप लगाता है। हल्ला करता है।  और कई बार, वह अपना आपा खोकर जीत को एक पक्षीय करार देता है। चुनाव जीतने हारने के बाद कुछ उपद्रवी तत्व समाज को नुकसान पहुंचता है, दंगे करता है। फिर क्या एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप से समाज को दिग्भ्रमित करता है और हर पक्ष अपने को पाक साफ होने का दिखावा करता है। वह दूसरे पक्ष को हमेशा दोषी करार देता है। इसके बाद जांच भी होती है, लेकिन जांच की रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की जाती और मामला रफा दफा हो जाता है। कई बार तो जांच रिपोर्ट आने में सालों नहीं, दशकों तक लग जाते हैं।
उदाहरण के रूप में यदि कहा  जाए तो हर चुनाव के  बाद इस प्रकार के दंगे हुए हैं । अभी दो चुनाव तो सबको याद है पहले दिल्ली विधान सभा चुनाव के बाद जो दंगे हुए और पश्चिम बंगाल में जो  हो रहा है । वही दिल्ली में भी हुआ था, वही पश्चिम बंगाल में भी हो रहा है। सच तो निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलता है , लेकिन उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से जनता के समक्ष कहां आ पाती है ?
लगातार दो चुनाव में भाजपा धूल चटाने वाले  दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को केंदीय सत्तारूढ़ दल द्वारा कहां काम  करने दिया जा रहा है और उस व्यक्ति विशेष अथवा दल के लिए हमेशा बंदूक के नोक पर रखने की कोशिश की जाती है और सरकार पर तरह तरह के आरोप लगाए जाते हैं  । उसी प्रकार  पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय में और उसके बाद कितने अपमानजनक बातें  मुखमंत्री ममता बनर्जी के लिए कही गई । अब एक गोलबंदी के तहत नेताओं को यह बात पच नहीं रही है  और वह राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करने लगे हैं। हालांकि, राज्यपाल और राष्ट्रपति इतने कमजोर मानसिकता के नहीं होते जो कुछ हारे हुए विपक्ष के कहने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दंे। वे जो भी निर्णय लेंगे या लेते हैं, उसका संविधानसम्मत होना अनिवार्य होता है। वैसे दिल्ली सरकार के सारे अधिकार उपराज्यपाल को देकर केंद्रीय सत्तारूढ़  दल ने मुख्यमंत्री को पंगु तो बना ही दिया है । हो सकता है कुछ ऐसा ही नियम बनाकर पश्चिम बंगाल सरकार को पंगु बना दिया जाए।
मैंने अपने पिछले लेख में पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा की हुई हार पर विमर्श किया था। इसकी काफी प्रतिक्रिया आई। कुछ खट्टी थी, कुछ मीठी-सी ।  दुनिया के सभी पढ़े लिखे लोग जानते हैं कि  लेख एक व्यक्तिगत विचार होता है, जिसे लिखकर सरकार का ध्यान तो आकर्षित कराया जा सकता है , लेकिन सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता।
हां, हमें यह अधिकार संविधान ने दिया है कि उसे बहकने से रोका जाए। लाठी डंडों से नहीं गाली गलौज से नहीं, बल्कि बुद्धिजीवी तरीके से। लेकिन, आज देश के सामने ऐसी स्थिति आ गई है कि यदि आप अपनी भावनाओं को भी सरकार के विचारों के विपरीत व्यक्त करते हैं, तो आप अपराधी मान  लिए जाएंगे। भले ही सरकार का ध्यान इस तरफ आकर्षित हो या न हो उनके भले बुरे कार्यों में उनका समर्थन करने वाले आप पर टूट पड़ते है। आप चुप रहिए, उनके भले बुरे कार्यों का समर्थन करते रहिए। आप उनके गुड बुक में बने रहेंगे और सरकार द्वारा प्रदत्त लाभ के भागीदार होते रहेंगे। लेकिन जहां आप किसी भी गलत काम की समीक्षा में सरकार की तरफ अंगुली उठाते हैं, तो समझ लीजिए आप किरकिरी कर रहे हैं।
सोशल मीडिया के जमाने में एक टीम सक्रिय होकर हजारों कमियों को गिनाकर आपको इस प्रकार का ज्ञान देगी, जिसकी अनुभूति आपको अपने जीवनकाल में नहीं हुआ होगा। बीते चार दशक के पत्रकारीय और सार्वजनिक जीवन के बाद मेरे लिए भी यह नया अनुभव ही है। यदि आपको स्वयं पर भरोसा नहीं होगा, तो आप उनकी बातों पर विश्वास कर लें और आपने जो अपने विचार व्यक्त किए वह सबके सब कोरा बकबास है। कई बार सोचता हूं कि पता नहीं, इतने ज्ञानी कहां से प्रगट हो जाते हैं जो ज्ञान के साथ साथ धमकी देते हैं ? डराते है और तथाकथित रूप से परोक्ष तौर पर धमकाते हैं।
हमारा देश नारी शक्ति की पूजा करता है , लेकिन मेरे पिछले लेख से यह स्पष्ट हो गया की यह कही सुनी बातें है । ऐसा कुछ भी नही होता । देश के सर्वश्रेष्ठ नेता जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के प्रति असंसदीय भाषा का प्रयोग सार्वजनिक मंच से करते हैं, तो फिर उनके अनुयायी कहां पीछे रहने वाले हैं। जिन जिन गंदे और घटिया शब्दों का प्रयोग मेरे पिछले लेख की प्रतिक्रिया स्वरूप किया गया, सहज में कोई भी सभ्य समाज का व्यक्ति इतनी निर्लज्जता से कैसे उन गंदे शब्दों का प्रयोग एक महिला  के लिए कर सकता है । उस कापुरुष के मन में नारियों के प्रति इतनी घृणा क्यों है , इतनी कुंठा क्यों है ?  उसकी इस घृणा और कुंठा की जांच की जानी चाहिए की क्या इतना घटिया सोच वाला व्यक्ति सभ्य समाज में रहने लायक है या उसे जेल के अंदर रहना चाहिए । वैसे ,  यह एक निजी विचार है निश्चित रूप से इस पर कोई कार्यवाही नहीं होगी क्योंकि सत्तारूढ़ दल  से जुड़ा किसी कापुरुष  की सोच है । उस पर कोई और कैसे करवाई करेगा ।
अब आइए देश की ज्वलंत मुद्दों पर बात करें,  क्योंकि अब तक लाखों लोग कोरोना महामारी में काल के गाल में समा चुके हैं । इस असामयिक आपदा पर भी कहने के लिए बहुत कुछ हैं, लेकिन नहीं,  इससे सरकार का मनोबल कमजोर होगा और जो  नगर के नगर और गांव के गांव इस महामारी से जूझ रहे हैं उनका निदान फिर  कैसे होगा । सरकारी महकमे में तथाकथित बड़े बड़े गुणी और ज्ञानी हैं , क्या उन्होंने कोरोना रूपी तूफान की पूर्वानुमान नही लगाया । अब जब बेहिसाब लोग काल के गाल में समा रहे हैं तब भोली भली आम  जनता को   बहकाने के लिए कोरोना का तीसरे फेज के लिए शोर मचाया जा रहा है । यह अच्छी बात है कि हमारी सरकार तीसरे फेज को चुनौती देने के लिए कटिबद्ध हो गई है , लेकिन जो दूसरे फेज में लॉकडॉन की स्थिति बन गई है उसे कैसे रोका जाए निश्चित रूप से सरकारी अमला इस पर भी काम कर रहा होगा । जो भी हो हमारा देश अब तक कई बड़े राजनेताओं , डॉक्टरों, उद्योगपतियों , कई नामचीन पत्रकारों को हमने खोया है उसकी क्षतिपूर्ति भला कैसे होगी । आखिर कोसा तो हर मामले में सरकार को ही जाएगा , इस बात को भी समझते हुए हमारे बड़े नेतागण ऐसे अयोग्य लोगो के घेरे में आ गए हैं जिनकी राय को सरकार ब्रह्म लकीर मानकर चलती है जिसके कारण सरकार की बदनामी और जग हंसाई  तो होती ही होती है और राय देने वाले मुंह छुपाते भागते फिरते हैं । यह बात सरकार के समझ में कब आएगी यह समझ में नहीं आता । वैसे जब तक अज्ञानी लोगों के बीच हमारे भाग्य विधाता घिरे रहेंगे – हमारा देश इसी प्रकार दिन प्रतिदिन दुखद स्थिति का सामना करता रहेगा ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति विश्लेषक है)।

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