दूसरों से प्रेम करना और प्रेम पाना ही सच्ची खुशी का आधार
डॉ. बीरबल झा
नई दिल्ली: 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो हमें प्रेम करने और प्रेम पाने की कला को समझने व अपनाने की प्रेरणा देता है। सच्ची खुशी दूसरों के साथ जुड़ने, साझा करने और जीवन को सहजता से अपनाने में ही निहित है।
खुशी एक अमूर्त भावना है, जिसे न खरीदा जा सकता है और न ही बेचा। यह मन की वह स्थिति है, जिसे हर व्यक्ति प्राप्त करना चाहता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि असली खुशी कैसे मिले?
अक्सर यह धारणा बनाई जाती है कि धन ही खुशी की गारंटी है। हालांकि, यह सच नहीं है। पैसा कुछ सुविधाएँ और आराम जरूर प्रदान कर सकता है, लेकिन यह सुख और संतोष की गारंटी नहीं देता। असली खुशी भौतिक वस्तुओं से नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष और मानसिक शांति से उत्पन्न होती है।
भगवान बुद्ध ने भी अपने उपदेशों में कहा है कि सच्ची खुशी बाहरी साधनों से नहीं, बल्कि आत्मसंयम, नैतिक आचरण और इच्छाओं से मुक्ति के माध्यम से प्राप्त होती है। इसी तरह, अमेरिकी विचारक हेनरी वार्ड बीचर का कहना था, “खुश रहने की कला साधारण चीजों में खुशी खोजने की शक्ति में निहित है।”
दूसरों से प्रेम करना और बदले में प्रेम पाना खुशी का सबसे बड़ा स्रोत है। जब तक कोई खुशी साझा नहीं की जाती, तब तक वह अधूरी रहती है। यदि आपने कोई सफलता प्राप्त की है लेकिन उसे किसी के साथ साझा नहीं किया, तो क्या आप वास्तव में खुश महसूस करेंगे? एक प्रसिद्ध कहावत है—”दुख बाँटने से आधा हो जाता है और खुशी बाँटने से दोगुनी।”
अत्यधिक अपेक्षाएँ और असंतोष का जाल
खुशी का सबसे बड़ा शत्रु है अत्यधिक अपेक्षा। जब हम दूसरों या परिस्थितियों से बहुत ज्यादा उम्मीदें पाल लेते हैं, तो निराशा और असंतोष जन्म लेते हैं। अक्सर हमारी अपेक्षाएँ और वास्तविकता के बीच का अंतर हमें दुखी कर देता है। इसलिए, संतोष, कृतज्ञता और सहनशीलता ही दीर्घकालिक खुशी की कुंजी हैं।
छोटी-छोटी खुशियों में आनंद
खुशी किसी गंतव्य की तरह नहीं, बल्कि जीवन की यात्रा में छोटे-छोटे क्षणों में पाई जाती है। यह हमारे रोजमर्रा के संबंधों, छोटी खुशियों और संतुलित मानसिकता में बसती है। जब हम सकारात्मक कार्यों में संलग्न होते हैं, अपने रिश्तों को सहेजते हैं और कृतज्ञता का भाव रखते हैं, तो सच्ची खुशी प्राप्त कर सकते हैं।
खुशी के लिए मेरी दिनचर्या
खुशी को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना जरूरी है। मेरी खुद की दिनचर्या में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की तंदुरुस्ती को महत्व दिया गया है। हर सुबह मैं दिल्ली के आजाद पार्क में टहलने जाता हूँ, जहाँ करीब 20 साथी मेरे साथ होते हैं।
हमारी यह मुलाकात सिर्फ व्यायाम तक सीमित नहीं रहती, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जावान बनने का भी जरिया बनती है। हम ‘राम-राम’ का 108 बार जाप करते हैं, जिससे मन को शांति और स्थिरता मिलती है। इसके बाद, हँसी सत्र होता है, जो तनाव दूर करने और मन को प्रसन्न करने का प्राकृतिक उपाय है। आइए, हम दूसरों पर नहीं, बल्कि दूसरों के साथ हँसें।
इसके बाद, हम पार्क की बेंचों पर बैठकर हल्की-फुल्की बातें करते हैं, चुटकुले सुनाते हैं और शायरी साझा करते हैं। ये छोटे-छोटे पल तनाव को दूर करने और नई ऊर्जा देने का काम करते हैं। यह साबित करता है कि खुशी के लिए बड़े संसाधनों की जरूरत नहीं होती, बल्कि यह छोटी-छोटी चीजों—संगति, हँसी और साझा अनुभवों में छिपी होती है।
खुशी की असली परिभाषा
आज की दुनिया में लोग खुशी की तलाश में कई तरह के साधनों का सहारा लेते हैं, जिनमें दवाएँ भी शामिल हैं। हालांकि, ये केवल अस्थायी राहत देती हैं। असली खुशी भीतर से ही उपजती है। जिस तरह हम अपने शरीर का ध्यान रखने के लिए आहार और व्यायाम करते हैं, उसी तरह मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल भी जरूरी है।
भगवद गीता का एक प्रसिद्ध संदेश है—”कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”, जिसका अर्थ है “अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करो, परिणाम की चिंता मत करो।” यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है और हमें सिखाता है कि खुशी सही कर्म करने और परिणामों की चिंता छोड़ने में निहित है।
(लेखक परिचय: डॉ. बीरबल झा एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक, सांस्कृतिक योद्धा और शिक्षाविद् हैं। वे अंग्रेज़ी भाषा प्रशिक्षण और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं।)