मोहम्मद सिराज ने झेली हर चुनौतियों की मार, अब उन्हें भी चाहिए जसप्रीत बुमराह जैसी ‘वर्कलोड मैनेजमेंट’ की जगह

चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: टेस्ट सीरीज से पहले हमेशा जसप्रीत बुमराह को लेकर चर्चा होती है — उनकी फिटनेस, वापसी का प्लान, कितने मैच खेलेंगे, कब आराम देंगे, सब कुछ एकदम सटीक रणनीति के साथ। बुमराह हैं भी भारत के सबसे कीमती तेज गेंदबाज़। लेकिन जब बुमराह को आराम मिल रहा था, तब मोहम्मद सिराज मैदान पर दिन-रात मेहनत कर रहे थे, लगातार ओवर फेंक रहे थे और टीम के लिए हर मौके पर खड़े नज़र आए।
इंग्लैंड के खिलाफ चल रही टेस्ट सीरीज में सिराज ने सिर्फ उपस्थिति ही नहीं दिखाई, बल्कि नेतृत्व भी किया। तीन मैचों में 13 विकेट लेकर वो सीरीज में सबसे आगे हैं। एडबस्टन में उनकी छह विकेट की पारी भारत को मिली एकमात्र जीत का टर्निंग पॉइंट बनी। उन्होंने अब तक 109 ओवर फेंके हैं, जो बुमराह (86.4 ओवर) से कहीं ज्यादा हैं — वो भी तब जब बुमराह ने दूसरा टेस्ट खेला ही नहीं।
टीम के सहायक कोच रयान टेन डोशेट ने भी इसे खुलकर माना: “सिराज जैसे खिलाड़ी का वर्कलोड मैनेज करना भी उतना ही जरूरी है। वो हमेशा तैयार रहते हैं एक्स्ट्रा ओवर डालने को।” उन्होंने एक लाइन में सिराज की असली पहचान भी बता दी — “उनके अंदर शेर जैसा दिल है। जब गेंद उनके हाथ में होती है, तो लगता है कुछ होने वाला है।”
2023 की शुरुआत से अब तक सिराज ने भारत के किसी भी तेज गेंदबाज़ से ज्यादा टेस्ट ओवर फेंके हैं — कुल 569.4 ओवर। भारत के पिछले 27 में से 24 टेस्ट में उन्होंने हिस्सा लिया है और इस दौरान दुनिया में सिर्फ पैट कमिंस और मिचेल स्टार्क ही उनसे ज्यादा खेले हैं। सिराज भारत की तेज गेंदबाज़ी का स्थायी इंजन बन चुके हैं।
बुमराह को लेकर भारतीय चयनकर्ता अजीत अगरकर पहले ही कह चुके हैं कि वो पांच में से सिर्फ तीन टेस्ट खेलेंगे — उनके पुराने पीठ के दर्द और आगे के व्यस्त कैलेंडर को देखते हुए। और हेड कोच गौतम गंभीर ने भी हार के बाद साफ कहा कि बुमराह की भागीदारी पहले से तय थी — नतीजा कुछ भी हो, रिस्क नहीं लिया जाएगा।
लेकिन सिराज? उन्होंने बिना कुछ कहे, चुपचाप टीम के लिए सबसे मुश्किल स्पेल झेले हैं। जब गेंद पुरानी हो गई, जब विकेट नहीं मिल रहे थे, जब किसी और को आराम चाहिए था — सिराज वही थे जिन पर भारत ने भरोसा किया। और उन्होंने भी हर बार जोश और जुनून के साथ जवाब दिया।
अब वक्त है कि मोहम्मद सिराज को भी उस बातचीत का हिस्सा बनाया जाए, जहां वर्कलोड की योजना बनती है। वो भले खुद कुछ ना कहें, लेकिन उन्होंने वो सम्मान और वो जगह पूरी तरह से हासिल कर ली है।