उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफा से उत्तराधिकारी की दौड़ शुरू
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम को अचानक अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र सौंपा और कहा कि वे अनुच्छेद 67(ए) के तहत तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं। उनका कार्यकाल अगस्त 2022 में शुरू हुआ था और वह 2027 तक इस पद पर रहते, लेकिन अब राज्यसभा के सभापति पद सहित उपराष्ट्रपति की कुर्सी खाली हो गई है।
धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय पर आया जब संसद का मॉनसून सत्र शुरू ही हुआ था और इसी दिन राज्यसभा में एक विपक्ष प्रायोजित प्रस्ताव लाया गया था, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा को हटाने की मांग की गई थी। इस पर धनखड़ ने सदन में टिप्पणी भी की थी, जिसने सरकार को असहज कर दिया था।
हालांकि इस्तीफे की वजह औपचारिक रूप से स्वास्थ्य बताई गई है, लेकिन उनकी अक्सर विपक्ष से तीखी टकराव वाली कार्यशैली और कई विवादास्पद टिप्पणियों के चलते वे कभी-कभी खुद सरकार के लिए भी असहज स्थिति पैदा कर देते थे।
अब उपराष्ट्रपति पद के उत्तराधिकारी की तलाश शुरू हो चुकी है। एनडीए, जिसकी लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत है, को धनखड़ के फैसले ने अचानक चौंका दिया है, लेकिन उसके पास नेताओं की कोई कमी नहीं है। सूत्रों के अनुसार, पार्टी आगामी दिनों में संभावित नामों पर मंथन करेगी।
संभावित उम्मीदवारों में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश का नाम प्रमुखता से उभर रहा है। वे 2020 से इस पद पर हैं और जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद हैं। उनकी सरकार के साथ अच्छी समझ और भरोसे को देखते हुए उन्हें गंभीर दावेदार माना जा रहा है।
इसके अलावा, भाजपा किसी राज्यपाल को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है, जैसा कि जगदीप धनखड़ के साथ हुआ था, जो उपराष्ट्रपति बनने से पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे। या फिर पार्टी किसी अनुभवी संगठनात्मक नेता या केंद्रीय मंत्री को इस संवैधानिक पद के लिए चुन सकती है।
धनखड़ के पूर्ववर्ती वेंकैया नायडू भी भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे हैं और 2017 में मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए इस पद पर पहुंचे थे।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हम अभी इस पर विचार कर रहे हैं, लेकिन पार्टी निश्चित रूप से एक स्थिर, सुलझे और गैर-विवादास्पद व्यक्ति को इस पद के लिए चुनेगी।”
अब सभी की निगाहें भाजपा के निर्णय पर टिकी हैं कि वह अगले उपराष्ट्रपति पद के लिए किसे मैदान में उतारती है, क्योंकि अगले छह महीनों में नए उपराष्ट्रपति का चुनाव कराना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है। तब तक राज्यसभा के उपसभापति सदन की कार्यवाही की ज़िम्मेदारी संभालेंगे।
धनखड़ का इस्तीफा न केवल राजनीतिक रूप से अहम है, बल्कि यह दिखाता है कि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति की व्यक्तिगत सीमाएं और सार्वजनिक जिम्मेदारियां कभी-कभी टकरा सकती हैं।