भारतीय सिनेमा का सूरज: रजनीकांत के पचास सालों की चमकदार यात्रा
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: पंद्रह अगस्त 1975 का दिन भारतीय सिनेमा के इतिहास में सिर्फ एक और रिलीज़ डेट नहीं थी। यह वह दिन था जब “अपूर्व रागंगल” के साथ एक ऐसा चेहरा पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर उभरा, जो आने वाले दशकों में केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक बन जाएगा — रजनीकांत।
तमिल सिनेमा के महान निर्देशक के. बालाचंदर की फिल्म “अपूर्व रागंगल” में रजनीकांत ने एक छोटी भूमिका निभाई थी। वह दृश्य केवल चंद सेकेंड्स का था, लेकिन उसकी छाप ने दर्शकों के दिल में जगह बना ली। बालाचंदर ने उस दिन न केवल एक किरदार को पर्दे पर उतारा था, बल्कि एक किंवदंती की नींव रखी थी। रजनीकांत का जन्म शिवाजी राव गायकवाड़ के रूप में कर्नाटक के एक मराठी परिवार में हुआ था, लेकिन उनका भाग्य उन्हें तमिल सिनेमा के सिंहासन तक ले आया।
पचास वर्षों की इस सिनेमाई यात्रा में रजनीकांत ने सिर्फ फिल्में नहीं कीं, उन्होंने जीवन को पर्दे पर जिया। एक कुली, एक पुलिसवाला, एक रोबोट, एक माफिया डॉन, हर किरदार में उन्होंने कुछ ऐसा जोड़ दिया जो केवल उन्हीं का था: उनका स्टाइल, उनका स्वैग, और उनकी अद्भुत संवाद अदायगी। उनकी चाल, चश्मा पहनने का तरीका, सिगरेट को हवा में उछालकर होंठों तक लाना, ये सब महज आदतें नहीं, पॉप कल्चर बन गए।
उनकी फिल्मों की लोकप्रियता सिर्फ तमिलनाडु या दक्षिण भारत तक सीमित नहीं रही। रजनीकांत वह सेतु बने, जिसने भाषाओं की सीमाओं को पार कर उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ा। “बाशा”, “अन्नामलाई”, “शिवाजी”, “एंथिरन” और “कबाली” जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस के सारे कीर्तिमान तोड़े।
किसी भी सुपरस्टार के लिए यह कहना आसान होता है कि उनकी सफलता मेहनत और प्रतिभा की देन है, लेकिन रजनीकांत की कहानी में जो बात उन्हें सबसे अलग बनाती है, वह है उनकी विनम्रता। एक वक्त था जब वह बेंगलुरु की बसों में कंडक्टर थे। उसी वक्त की विनम्रता और जमीन से जुड़ाव आज भी उनके व्यक्तित्व में झलकती है। शायद इसीलिए आज भी हर उम्र, हर वर्ग और हर भाषा के लोग उन्हें “थलाइवा” कहकर आदर से पुकारते हैं।
उनकी इस स्वर्ण जयंती पर भारतीय सिनेमा के तमाम दिग्गजों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। कमल हासन, जो उनके पहले सह-कलाकार रहे हैं, ने कहा, “मैं अपने दोस्त रजनीकांत की 50 साल की सिनेमाई चमक को सलाम करता हूँ।” मलयालम सुपरस्टार मोहनलाल और ममूटी ने भी रजनीकांत के साथ काम करने को अपना सौभाग्य बताया।
लोकेश कनगराज, जो रजनीकांत के साथ “कूली” बनाए, ने इस फिल्म को अपने करियर की खास उपलब्धि बताया। यह फिल्म न केवल एक सिनेमाई उत्सव है, बल्कि एक युग का उत्सव है, उस युग का जिसमें रजनीकांत जैसे सितारे जन्म लेते हैं।
हृतिक रोशन, जिन्होंने 1986 में रजनीकांत के साथ “भगवान दादा” में बाल कलाकार के रूप में काम किया था, ने लिखा, “आप मेरे पहले शिक्षक थे, और आज भी प्रेरणा बने हुए हैं।”
नई पीढ़ी के सितारे जैसे शिवकार्तिकेयन और धनुष भी इस स्वर्णिम मौके पर “थलाइवा” को सलाम करने से पीछे नहीं रहे। शिवकार्तिकेयन ने लिखा, “मैंने आपको देखकर सीखा, आपको नकल किया और आपके रास्ते पर चलने की कोशिश की, यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उसी इंडस्ट्री में काम कर रहा हूँ जिसमें आप हैं।”
रजनीकांत की कहानी केवल फिल्मों की कहानी नहीं है, यह संघर्ष, सपनों और सफलता की महागाथा है। यह हमें याद दिलाती है कि एक बस कंडक्टर भी करोड़ों दिलों का सम्राट बन सकता है, बशर्ते उसमें जुनून हो, प्रतिभा हो और सबसे अहम, इंसानियत हो।
“कूली” केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक श्रद्धांजलि है, उस सितारे को जिसने सिनेमा को नया मायना दिया। पचास वर्षों के बाद भी, रजनीकांत के चेहरे पर वही चमक है, और दर्शकों की आंखों में उनके लिए वही श्रद्धा। उन्होंने साबित कर दिया है कि उम्र महज़ एक संख्या है, लेकिन लेजेंड बनना एक साधना है।
रजनीकांत अब केवल अभिनेता नहीं रहे, वह एक भावना हैं, एक आंदोलन हैं, और भारतीय सिनेमा के सबसे सुनहरे अध्याय का शीर्षक हैं।
