गोरक्षनाथ पीठ: सामाजिक समरसता और भविष्य की राजनीतिक रणनीति
रीना सिंह, अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय
गोरक्षनाथ पीठ केवल एक धार्मिक पीठ नहीं बल्कि हिंदू समाज की सबसे बड़ी संगठित शक्ति है, जिसका प्रभाव भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों तक फैला हुआ है और जिसके पीठाधीश्वर सभी ज्योतिर्लिंगों और शक्तिपीठों से आध्यात्मिक रूप से जुड़े माने जाते हैं। यह परंपरा हिंदू धर्म की अखंडता और सांस्कृतिक विरासत का अद्वितीय प्रतीक है और समय-समय पर समाज को दिशा देने, सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा देने में अग्रणी रही है। गोरक्षपीठ हमेशा से सर्वधर्म समभाव का प्रतीक रहा है एवं समाज में एकजुटता का संदेश देता रहा है।
सदियों से गोरक्षपीठ में नाथ योगियों और सूफी संतों की विचारधारा का भारत में एक साथ प्रचार-प्रसार हुआ, और ऐसा भी देखा गया कि कुछ नाथ संतों ने सूफी धारा को अपनाया तो कुछ सूफी संतों ने नाथ साधना पद्धति से प्रभावित होकर नाथ धारा को अपनाया। यह समय जाति या धर्म के भेद से ऊपर उठकर साधना और मोक्ष का था। हालांकि, कुछ कट्टरपंथी तत्वों ने समाज में भाईचारे और आपसी सौहार्द को दूषित करने का प्रयास किया, लेकिन गोरक्षपीठ ने सदियों से हर जाति, धर्म और वर्ग के व्यक्ति को अपने संकीर्ण राजनीतिक या धार्मिक दृष्टिकोण से ऊपर उठाकर जोड़ रखा। यहाँ तक कि मुस्लिम समुदाय भी लंबे समय से गोरखपंथी परंपरा से जुड़ा रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल और दक्षिण भारत के कई प्रांतों में ऐसे मुस्लिम जोगी हैं, जो नाथ पंथीयों की तरह गेरूआ वस्त्र धारण करते हैं और हाथ में सारंगी लिए गोपीचंद्र और राजा भर्तृहरि के गोरखनाथ के प्रभाव में संन्यासी बनकर लोकगीत गाते हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी और जार्ज वेस्टन ब्रिग्स ने भी नाथमत से जुड़े मुस्लिम समुदाय का उल्लेख किया है।
महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज, जो वीर सावरकर के बाद हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने, स्वतंत्रता संग्राम और हिंदू राष्ट्रवादी चेतना को नई ऊर्जा दी और राम जन्मभूमि आंदोलन की नींव रखी। उनके शिष्य महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने इस आंदोलन को जनआंदोलन का स्वरूप देकर सामाजिक समरसता की परंपरा को और सुदृढ़ किया, दलितों को मंदिर प्रवेश से आगे बढ़ाकर पुजारी तक नियुक्त करवाया, काशी के डोम राजा के घर सहभोज कर सामाजिक एकता का संदेश दिया और 1989 में अयोध्या शिलान्यास के दौरान प्रथम ईंट एक दलित भाई कामेश्वर चौपाल से रखवाकर जातिगत भेदभाव को तोड़ा।
वर्तमान पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी इस परंपरा को और ऊँचाइयों तक ले जा रहे हैं और प्रशासन, राजनीति तथा धर्म को संतुलित कर गोरक्षनाथ पीठ की विचारधारा को लोककल्याण और सामाजिक न्याय का आधार बना रहे हैं। गोरक्षनाथ पीठ की परंपरा जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता का प्रतीक रही है, और यही कारण है कि आज देश की सर्वोच्च संस्थाओं में दलित और पिछड़े वर्ग से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहुँचना महंत अवेद्यनाथ जी के सपनों के भारत का साकार होना है। गोरक्षनाथ परंपरा केवल उत्तर भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि दक्षिण भारत तक फैली है। कर्नाटक के मंगलुरु में स्थित गोरखनाथ मठ इसका जीवंत उदाहरण है, जो पीठ से आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा हुआ है और जहाँ योग, साधना, ध्यान, शिक्षा तथा सेवा गतिविधियों के माध्यम से दक्षिण और उत्तर भारत के बीच सांस्कृतिक सेतु का कार्य होता है।
महंत अवेद्यनाथ जी ने तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम से सामाजिक समरसता का संदेश दिया, धर्मांतरण के खिलाफ आवाज उठाई और पिछड़ी जाति तथा अनुसूचित वर्ग के अधिकारों को सुरक्षित रखा। दक्षिण भारत में श्री गोरखनाथ मठ की जड़ें सदियों पुरानी हैं। लोककथाओं में उज्जैन के राजा भर्तृहरि का उल्लेख है, जो अपना राज्य छोड़कर नाथ योगी बने और तमिलनाडु के महान नाथ योगी पट्टीनाथर के शिष्य बनकर मोक्ष को प्राप्त हुए। दक्षिण भारतीय भाषाओं में गोरखनाथ पीठ को कोरक्का सिद्धार कहा जाता है। तमिलनाडु में उनके समाधि स्थल और वेल्लियांगिरी पर्वत की गुफाएँ पीठ की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं।
राजनीति में, आने वाले समय में बीजेपी दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में तभी मजबूत हो सकती है, जब वे योगी आदित्यनाथ की छवि और गोरखनाथ पीठ के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंधों को वर्तमान पीढ़ी के सामने रखें। पीठ के माध्यम से पार्टी हिंदू समाज के व्यापक नेटवर्क, संगठित युवा और धार्मिक समुदाय का समर्थन जोड़ सकती है, जिससे दक्षिण भारत में भाजपा की स्वीकार्यता और स्थिरता बढ़ती है।
योगी आदित्यनाथ अपने गुरु महंत अवेद्यनाथ जी द्वारा शुरू की गई ओबीसी, एससी-एसटी उत्थान विचारधारा को पुनर्जीवित कर सकते हैं, जिससे वे हिंदी भाषी राज्यों के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी एक सशक्त राजनीतिक चेहरा बनेंगे। नेपाल, बांग्लादेश और अन्य देशों में गोरखनाथ परंपरा का प्रभाव यह दिखाता है कि यह केवल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय हिंदू चेतना और सामाजिक संगठन का केंद्र है। वर्तमान समय में जब समाज लव जिहाद, जातीय संघर्ष, सीमा विवाद और धार्मिक असंतुलन जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब गोरक्षनाथ पीठ केवल आध्यात्मिक साधना तक सीमित न रहकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू समाज का नेतृत्व करते हुए भविष्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाएगा।
महंत दिग्विजयनाथ ने कहा था कि यदि भगवान को अपने घर में स्थान देना अपराध है, तो यह अपराध वे बार-बार करेंगे। इसलिए गोरक्षनाथ पीठ का योगदान केवल अतीत तक सीमित नहीं है बल्कि वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए मार्गदर्शक है।
