बिहार चुनाव: कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दो महीने से गैरमौजूदगी, बीजेपी का तंज
चिरौरी न्यूज
पटना: बिहार की सियासत इन दिनों पूरे उफान पर है। गांवों की चौपालों से लेकर पटना के चाय स्टॉल तक एक ही सवाल गूंज रहा है। “इस बार कौन जीतेगा?” लेकिन इस राजनीतिक हलचल के बीच एक कोना है जो चुप है। और यही चुप्पी अब सबसे बड़ी कहानी बन गई है।
बिहार चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अनुपस्थिति अब चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है। राहुल गांधी ने आखिरी बार 1 सितंबर को पटना में अपनी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की समापन रैली को संबोधित किया था। उस दिन उन्होंने बेरोजगारी, सामाजिक न्याय और शिक्षा जैसे मुद्दों पर जोर देते हुए कहा था, “अगर बिहार उठेगा, तो भारत उठेगा।”
लेकिन इसके बाद से लगभग दो महीने बीत चुके हैं और राहुल गांधी दोबारा बिहार की जमीन पर नहीं उतरे हैं।
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राजद नेता तेजस्वी यादव ने कई रैलियां कर माहौल गरमाया है। वहीं कांग्रेस का प्रचार ठंडा पड़ा हुआ है, और पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच बेचैनी बढ़ती जा रही है।
कांग्रेस के एक उम्मीदवार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “लोग पूछते हैं, आपका बड़ा नेता कहां है? हम क्या जवाब दें? गांधी परिवार का चेहरा न हो तो जनता को कैसे भरोसा दिलाएं?”
महागठबंधन के भीतर भी इस मुद्दे पर हलचल है। तेजस्वी यादव जहां पूरे जोश के साथ प्रचार में जुटे हैं, वहीं कांग्रेस की सुस्ती सहयोगियों को खटकने लगी है। एक राजद नेता ने साफ कहा, “चुनाव एकता से लड़ा जाता है। कोई साथी अगर आधे मन से लड़े तो वो बोझ बन जाता है।”
कांग्रेस ने हालांकि अपने बचाव में कहा है कि पार्टी की रणनीति तय है और राहुल गांधी जल्द ही बिहार में रैलियां करेंगे।
बीजेपी ने साधा निशाना
राहुल गांधी की चुप्पी अब बीजेपी के लिए बड़ा राजनीतिक हथियार बन चुकी है। पार्टी प्रवक्ता संजय मयूख ने कहा, “राहुल गांधी को बिहार के मतदाताओं पर भरोसा नहीं है, इसलिए वे मैदान से गायब हैं।”
बीजेपी लगातार कांग्रेस की निष्क्रियता पर वार कर रही है और चुनावी माहौल में इस खालीपन का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी की गैरमौजूदगी के पीछे तीन कारण बताए जा रहे हैं:
- आंतरिक रणनीतिक मतभेद: सीट बंटवारे और प्रचार की योजना को लेकर RJD और कांग्रेस के राज्य नेतृत्व और हाईकमान के बीच टकराव।
- राष्ट्रीय प्राथमिकताएं: कांग्रेस का ध्यान महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों पर ज्यादा केंद्रित है। हालांकि अभी दोनों राज्यों में चुनाव जैसे महत्वपूर्ण विषय नहीं है।
- नई रणनीति: राहुल गांधी भीड़ आधारित राजनीति के बजाय मुद्दा आधारित प्रचार की दिशा में प्रयोग कर रहे हैं।
लेकिन सवाल वही है, क्या डिजिटल रणनीति जमीनी सियासत को मात दे सकती है? बिहार अभी भी आमने-सामने की राजनीति में विश्वास रखता है, न कि सोशल मीडिया के भाषणों में।
राहुल गांधी की चुप्पी अब सिर्फ कांग्रेस की रणनीति नहीं, बल्कि बिहार की सियासी बहस का केंद्र बन गई है। यह चुनाव राहुल गांधी की राजनीतिक प्रासंगिकता और कांग्रेस की दिशा, दोनों की परीक्षा ले रहा है।
