रमेश सिप्पी ने सुनाया ‘शोले’ के 50 साल पुराने किस्से, बताया कैसे अमजद खान बने गब्बर
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: गोवा में आयोजित 56वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) में 27 नवंबर को फिल्म शोले पर एक विशेष सत्र रखा गया, जिसका शीर्षक था—‘50 Years of Sholay: Why Sholay Still Resonates’। इस दौरान फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी ने इस क्लासिक को लेकर कई दिलचस्प खुलासे किए।
रमेश सिप्पी ने बताया कि फिल्म के सबसे प्रतिष्ठित विलेन गब्बर सिंह के किरदार के लिए अमजद खान कैसे चुने गए। उन्होंने कहा, “अमजद खान अपने आप में एक खोज थे। मैंने उन्हें पहले अपनी बहन के साथ देखे गए एक नाटक में देखा था और वह अच्छे अभिनेता लगे थे, लेकिन बाद में वह बात याद नहीं रही। जब सलीम–जावेद ने उनका नाम सुझाया, तो बात जम गई।”
उन्होंने आगे बताया कि अमजद खान को यह मौका इसलिए भी मिला क्योंकि मूल रूप से गब्बर का रोल डैनी डेन्जोंगपा को मिला था, लेकिन वह उस समय अफगानिस्तान में फिरोज़ खान के साथ शूटिंग कर रहे थे और लौट नहीं सके। सिप्पी ने कहा, “हमने गब्बर के किरदार में भाषा या लहजे में कोई बदलाव नहीं किया। अमजद का यूपी वाला अंदाज़ किरदार पर बिल्कुल फिट बैठा।”
रमेश सिप्पी ने कहा, “डैनी की अनुपस्थिति ने अमजद खान जैसे गब्बर को जन्म दिया — और आगे की कहानी इतिहास बन गई।”
कैसे मिली ‘गब्बर की धरती’—शोले की प्रतिष्ठित लोकेशन
सिप्पी ने फिल्म की शूटिंग लोकेशन पर भी रोचक बातें साझा कीं। उन्होंने बताया कि गब्बर के इलाके के रूप में दिखाए गए पथरीले पहाड़ और सूनी धरती बाद में डकैत फिल्मों की पहचान बन गए।
उन्होंने कहा, “उस समय तक सभी डकैत फिल्में उत्तर भारत—राजस्थान, चंबल घाटी और आसपास—में शूट होती थीं। मैं कुछ नया करना चाहता था। हम दक्षिण भारत गए और बेंगलुरु से लगभग 50 किलोमीटर दूर मैसूर की ओर जाते हुए एक पथरीला इलाका देखा। वहीं खड़े-खड़े महसूस हुआ कि यही सही जगह है।”
उन्होंने बताया कि यह लोकेशन सबसे पहले आर्ट डायरेक्टर एम.आर. आचरेकर ने सुझाई थी और इस नए परिदृश्य ने फिल्म को एक अनोखी पहचान दी। “कई चुनौतियाँ थीं, लेकिन इस जगह की वजह से फिल्म को वह टोन मिला जो किसी सेट पर संभव ही नहीं था,” उन्होंने बताया।
1975 में रिलीज़ हुई शोले में अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, अमजद खान, जया बच्चन और हेमा मालिनी ने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं। यह फिल्म अपने अद्वितीय किरदारों—जय, वीरू, बसंती, ठाकुर और गब्बर—की वजह से भारतीय सिनेमा में एक अमर स्थान रखती है। पाँच दशक बाद भी ये किरदार भारतीय दर्शकों की यादों में उतनी ही मजबूती से बसे हुए हैं।
