असम की डेमोग्राफ़ी पर हिमंत सरमा ने कहा, “एक बार मुस्लिम 50% पार कर गए तो दूसरे नहीं बचेंगे।”

On Assam's demography, Himanta Sarma said, "Once Muslims cross 50%, others will not survive."
(File Photo/Twitter)

चिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुरुवार को राज्य में कथित “डेमोग्राफिक हमले” को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यदि असम में मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तो अन्य समुदायों का “अस्तित्व संकट में पड़ सकता है।” एजेंडा आजतक कार्यक्रम में बोलते हुए सरमा ने दावा किया कि दशकों से अनियंत्रित माइग्रेशन के कारण असम की मूल जनसंख्या अपने अस्तित्व को लेकर असुरक्षा महसूस कर रही है।

मुख्यमंत्री ने सांख्यिकीय आकलनों का हवाला देते हुए कहा कि असम में मुस्लिम आबादी, जो उनके अनुसार 2021 में लगभग 38 प्रतिशत थी, 1961 से चली आ रही 4–5 प्रतिशत की दशकीय वृद्धि दर के चलते 2027 तक 40 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। उन्होंने कहा, “यदि मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से ऊपर चली गई, तो बाकी समुदायों का अस्तित्व नहीं बचेगा। केवल वही (समुदाय) रह जाएंगे।”

सरमा ने यह भी कहा कि असम के मुसलमान, विशेष रूप से जिन्हें उन्होंने “मिया मुसलमान” कहकर संबोधित किया, उन्हें सरकारी योजनाओं से परहेज नहीं है, बल्कि “विचारधारात्मक मतभेदों” के कारण वे उन्हें वोट नहीं देते। उन्होंने एक प्रसंग साझा करते हुए कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति ने कभी उनसे कहा था कि वह “जरूरत पड़ने पर किडनी दान कर देगा, लेकिन वोट नहीं देगा।” सरमा के मुताबिक, “इससे साफ होता है कि वोट योजनाओं के लिए नहीं, विचारधारा के लिए दिए जाते हैं।”

मुख्यमंत्री ने कहा कि असम में पहचान की राजनीति कोई विकल्प नहीं, बल्कि “अस्तित्व बचाने की मजबूरी” है। उन्होंने दावा किया कि 1951 में राज्य की कुल जनसंख्या 80 लाख थी, जो अब बढ़कर 3.1 करोड़ हो गई है, लेकिन “मूल निवासियों” की आबादी लगभग 70 लाख ही है। सरमा के अनुसार, “बाकी 2.4 करोड़ लोग माइग्रेंट हैं,” जिसके कारण असम की ज़मीन, संसाधनों, भाषा और सांस्कृतिक विरासत पर दबाव बढ़ रहा है।

सरमा ने 1979-85 के असम आंदोलन और 1985 के असम समझौते का जिक्र करते हुए कहा कि ये आंदोलन बांग्लादेश से “अवैध प्रवासन” की चिंताओं पर आधारित थे। उन्होंने कहा, “40 साल बाद भी हम इसे लागू कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।”

उन्होंने यह भी दावा किया कि “चाहे 1 लाख रुपये भी दे दूं,” मुस्लिम मतदाता उनका समर्थन नहीं करेंगे। उनके शब्दों में, “असम में हमारे मिया मुस्लिम लोगों का एक बड़ा हिस्सा मुझे वोट नहीं देगा।”

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