संस्कृत के पुनरुत्थान का अनुकूल माहौल बना है देश में: गृहमंत्री अमित शाह

A favourable environment has been created in the country for the revival of Sanskrit: Home Minister Amit Shahचिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हुआ है। वे राजधानी दिल्ली में आयोजित 1,008 संस्कृत संभाषण शिविरों के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे।

अमित शाह ने बताया कि ‘अष्टादशी योजना’ के तहत अब तक करीब 18 परियोजनाएं लागू की जा चुकी हैं, जिनके अंतर्गत दुर्लभ संस्कृत ग्रंथों के प्रकाशन, थोक खरीद और पुनर्मुद्रण के लिए केंद्र सरकार वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से संस्कृत विद्वानों के मानदेय में भी वृद्धि की गई है।

गृह मंत्री ने बताया कि ज्ञान भारतम मिशन के अंतर्गत लगभग 500 करोड़ रुपये की बजट राशि के साथ एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य संस्कृत और प्राकृत में बिखरे हुए पांडुलिपियों का संग्रह और संरक्षण करना है। उन्होंने कहा कि “यह मिशन हमारे गौरवशाली अतीत को सहेजने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।”

अब तक:

52 लाख से अधिक पांडुलिपियां दर्ज की जा चुकी हैं

3.5 लाख से अधिक का डिजिटलीकरण हो चुका है

1.37 लाख पांडुलिपियां ऑनलाइन पोर्टल namami.gov.in पर उपलब्ध कराई जा चुकी हैं

इस कार्य के लिए विभिन्न विषयों और भाषाओं के विद्वानों की एक विशेष टीम बनाई गई है, जो इन पांडुलिपियों का अनुवाद और संरक्षण कर रही है।

अमित शाह ने संस्कृत भारती की प्रशंसा करते हुए कहा कि, *”1,008 संस्कृत संभाषण शिविरों का आयोजन अपने आप में एक अद्वितीय और साहसिक पहल है।” उन्होंने कहा कि संस्कृत का पतन औपनिवेशिक काल से पहले ही शुरू हो गया था, और इसके पुनरुत्थान के लिए समय व निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।

कार्यक्रम में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता सहित कई प्रतिष्ठित गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। शाह ने कहा कि संस्कृत भारती 1981 से संस्कृत की अपार ज्ञान-संपदा को विश्व के सामने लाने और लोगों को संस्कृत बोलने व सीखने के लिए प्रशिक्षित करने का कार्य कर रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि दुनियाभर के कई वैज्ञानिक और भाषाविद् संस्कृत को सबसे वैज्ञानिक भाषा मानते हैं। अब ज़रूरत इस बात की है कि हम इसके इतिहास को कोसने के बजाय भविष्य के लिए पुनरुत्थान की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

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