लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल प्रदूषण से 15 लाख मौत; सरकार ने कहा, ऐसी कोई डेटा नहीं

According to a Lancet report, 1.5 million deaths occur in India every year due to pollution; the government says there is no such data.
(File Photo/ Twitter)

चिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने संसद में स्पष्ट कहा है कि सिर्फ़ वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों या बीमारियों के साथ सीधा संबंध स्थापित करने वाला कोई ठोस राष्ट्रीय डेटा उपलब्ध नहीं है। यह रुख़ कई अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के बिल्कुल विपरीत है, जो भारत में प्रदूषण-जनित स्वास्थ्य बोझ के लगातार बढ़ते खतरे को रेखांकित करते हैं।

यह बयान उस समय आया है जब दिल्ली और पूरे नेशनल कैपिटल रीजन में हवा की अत्यंत ख़राब गुणवत्ता ने लोगों को सड़कों पर उतरकर विरोध करने पर मजबूर कर दिया है। साफ़ हवा की मांग अब पहले से कहीं अधिक तेज़ हो रही है।

वैश्विक शोध और भारत की स्थिति

पिछले वर्ष द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 15 लाख लोगों की अकाल मृत्यु लंबी अवधि तक प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने के कारण होती है—ऐसी मौतें जिन्हें रोका जा सकता था, यदि देश विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमाओं का पालन कर पाता।

रिपोर्ट में PM2.5—फेफड़ों और रक्त प्रवाह तक आसानी से पहुंचने वाले बेहद सूक्ष्म कणों—के गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों पर विशेष ज़ोर दिया गया था। इन कणों का स्तर भारत के कई शहरों में नियमित रूप से वैश्विक सुरक्षा मानकों से कई गुना अधिक दर्ज हो रहा है।

नवंबर में जारी एक अन्य अहम विश्लेषण, जो ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिज़ीज के नवीनतम आंकड़ों पर आधारित था, में चौंकाने वाला निष्कर्ष सामने आया: 2023 में दिल्ली में सबसे बड़ा ‘हत्यारा’ ज़हरीली हवा थी। अध्ययन के मुताबिक उस वर्ष राजधानी में हुई कुल मौतों में लगभग 15% मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी थीं—जो कई प्रमुख संक्रामक और गैर-संक्रामक बीमारियों से भी अधिक थी।

सरकार का रुख़

तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन के सवाल का जवाब देते हुए, स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रकाशराव जाधव ने राज्यसभा में स्वीकार किया कि वायु प्रदूषण सांस संबंधी और उससे जुड़ी बीमारियों में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
लेकिन उन्होंने यह भी दोहराया कि भारत के पास ऐसा कोई राष्ट्रीय डेटाबेस नहीं है जो प्रदूषण के संपर्क और मौतों के बीच प्रत्यक्ष संबंध साबित कर सके।

उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के दौरान AQI अक्सर 800 के पार चला जाता है—जो WHO की 0–50 की सुरक्षित सीमा का कई गुना है।

देशव्यापी संकट की चेतावनी

विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के अधिकांश शहरों में पूरे साल वायु गुणवत्ता शायद ही कभी सुरक्षित स्तर पर पहुंचती है। लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहना अब एक देशव्यापी सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में देखा जा रहा है।

जाधव ने बताया कि 2019 में शुरू किए गए नेशनल प्रोग्राम फॉर क्लाइमेट चेंज एंड ह्यूमन हेल्थ (NPCCHH) के तहत सरकार ने जलवायु-संवेदनशील स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए जागरूकता, क्षमता निर्माण और तैयारी पर जोर दिया है। इस कार्यक्रम के तहत:

वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय “स्वास्थ्य अनुकूलन योजना” तैयार की गई है। सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी-अपनी राज्य कार्य योजना बनाने में मदद दी गई है।

और हर योजना में वायु प्रदूषण तथा उसके संभावित स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के उपायों पर एक समर्पित अध्याय शामिल है।

इसके अतिरिक्त, भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी शुरुआती चेतावनी और वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान राज्यों और शहरों को उपलब्ध कराए जाते हैं ताकि स्वास्थ्य अधिकारी और जोखिमग्रस्त समुदाय गंभीर प्रदूषण वाले दिनों के लिए पहले से तैयारी कर सकें।

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