बिहार चुनाव 2025: एनडीए में एकजुटता, महागठबंधन में असमंजस; सीएम चेहरे पर पर तेजस्वी-राहुल में खींचतान
चिरौरी न्यूज
पटना: बिहार की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर है। अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले सियासी हलचल तेज है, लेकिन दो प्रमुख गठबंधनों, एनडीए और महागठबंधन, के अंदरूनी हालात एकदम अलग तस्वीर पेश कर रहे हैं। एक ओर जहां एनडीए में नेतृत्व को लेकर स्पष्टता और एकजुटता है, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर भारी असमंजस और रणनीतिक खींचतान नजर आ रही है।
एनडीए में नीतीश कुमार निर्विवाद नेता
एनडीए में सीटों का औपचारिक बंटवारा भले न हुआ हो, लेकिन नेतृत्व को लेकर कोई विवाद नहीं है। जदयू, भाजपा, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा — सभी घटक दलों ने एक स्वर में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन दे दिया है। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेता खुले तौर पर नीतीश के नेतृत्व को स्वीकार कर चुके हैं।
यहां तक कि नीतीश कुमार ने जदयू के तीन उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है, जो उनकी स्थिति को मजबूत बनाता है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इशारा दिया है कि सीटों का बंटवारा सर्वे के आधार पर होगा, लेकिन नेतृत्व पर कोई विवाद नहीं है।
महागठबंधन में नेतृत्व का संकट
इसके उलट, महागठबंधन यानी INDIA गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को बहुत पहले ही महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया था। उन्होंने यहां तक कह दिया कि “कोई माई का लाल तेजस्वी को सीएम बनने से नहीं रोक सकता।” तेजस्वी खुद भी चुनाव प्रचार में सीएम फेस की तरह सक्रिय हैं और युवाओं तथा पिछड़े वर्गों में उनकी लोकप्रियता भी दिख रही है।
लेकिन असली पेच कांग्रेस की ओर से फंसा है। पिछली बार (2020) तेजस्वी को सहजता से सीएम फेस मान लेने वाली कांग्रेस इस बार खुलकर समर्थन देने से बच रही है। कांग्रेस कोर कमेटी के सदस्यों का कहना है कि मुख्यमंत्री पर फैसला चुनाव परिणाम के बाद होगा। कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने भी साफ कर दिया है कि तेजस्वी फिलहाल सिर्फ समन्वय समिति के चेयरमैन हैं, न कि महागठबंधन के सीएम कैंडिडेट। यह बयान लालू और तेजस्वी दोनों की चिंता बढ़ाने वाला है।
सीट बंटवारे पर भी खींचतान
सीएम फेस को लेकर असहमति के अलावा सीट बंटवारे को लेकर भी कांग्रेस और आरजेडी में सहमति नहीं बन पाई है। आरजेडी कांग्रेस को 50-55 सीटों तक सीमित रखना चाहती है, जबकि कांग्रेस 2020 के प्रदर्शन के आधार पर अधिक सीटों की मांग कर रही है। राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के बाद कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है और वह पिछली बार से कम सीटों पर समझौता करने को तैयार नहीं।
महिलाओं में नीतीश अब भी मजबूत
हालांकि सर्वे में नीतीश कुमार तीसरे स्थान पर हैं, लेकिन महिलाओं में उनकी लोकप्रियता अब भी मजबूत बनी हुई है। उनकी मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना और सामाजिक योजनाएं इस चुनाव में उनकी बड़ी ताकत होंगी। इंकइनसाइट के एक हालिया पोल में 60.4% महिलाओं ने एनडीए को वोट देने की बात कही, जिसमें 45% ने नीतीश को अपनी पहली पसंद बताया।
इस समय बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा फर्क नेतृत्व की स्पष्टता को लेकर है। एनडीए में नीतीश कुमार का चेहरा स्पष्ट और सभी घटकों द्वारा स्वीकार्य है। वहीं, महागठबंधन में तेजस्वी को लेकर कांग्रेस की चुप्पी और सीट बंटवारे पर खींचतान ने असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या नेतृत्व को लेकर यह भ्रम महागठबंधन को नुकसान पहुंचाएगा? और क्या एनडीए की एकजुटता फिर से सत्ता दिलाएगी? बिहार का मतदाता इस बार सिर्फ पार्टियों या चेहरों पर नहीं, बल्कि नेतृत्व की स्पष्टता, रोजगार, जातीय समीकरण और विकास के संतुलन पर फैसला सुनाएगा।