“बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण को रद्द किया जा सकता है अगर…”: सुप्रीम कोर्ट

"Bihar Voter Roll Revision Can Be Set Aside If...": Supreme Courtचिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार दोपहर बिहार में चल रही ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) प्रक्रिया को लेकर अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि यदि इस मतदाता सूची पुनरीक्षण में अवैधता साबित होती है, तो इसके नतीजों को सितंबर तक भी रद्द किया जा सकता है। यह टिप्पणी भले ही चुनाव आयोग द्वारा बिहार के करीब आठ करोड़ मतदाताओं की दोबारा जांच को लेकर कोई अंतिम फैसला न हो, लेकिन यह उस विपक्ष के लिए बड़ी राहत मानी जा रही है जो इस पूरी प्रक्रिया को संविधान के खिलाफ और अवैध ठहरा रहा है।

राहुल गांधी और विपक्षी दलों के लिए यह टिप्पणी एक मनोबल बढ़ाने वाली बात है, खासकर तब जब उन्होंने चुनाव आयोग पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर मतदाता सूची में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया है। राहुल गांधी ने जोरदार तरीके से कहा है कि यह ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ एक छलावा है, जिसके पीछे लाखों लोगों — खासकर वंचित वर्गों के मतदाताओं, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस या उसके सहयोगियों को वोट देते हैं — को मतदाता सूची से बाहर किया जा रहा है।

राहुल गांधी ने सोमवार को संसद के बाहर इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। विपक्षी सांसद चुनाव आयोग के दफ्तर तक मार्च करना चाहते थे लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक लिया और राहुल गांधी समेत 29 सांसदों को हिरासत में ले लिया गया।

चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि SIR का मकसद मतदाता सूची को ‘शुद्ध’ करना है, जिसमें मृत व्यक्तियों, राज्य से बाहर जा चुके नागरिकों और एक से अधिक बार दर्ज नामों को हटाया जा रहा है। आयोग ने पहले कहा था कि अब तक 65 लाख से ज्यादा लोगों के नाम सूची से हटाए जा चुके हैं, जिनमें नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश से आए कई लोग भी शामिल हैं जो किसी तरह भारत की मतदाता सूची में शामिल हो गए थे।

हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया पर शुरुआत से ही विवाद बना हुआ है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में SIR की संवैधानिक वैधता और इसके समय पर सवाल उठाए। आज की सुनवाई में उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव आयोग ने नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज मांगे, जिसमें आधार और उसका अपना वोटर आईडी कार्ड मान्य नहीं है, जबकि नागरिकता तय करना चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र नहीं है। यह अधिकार केंद्र सरकार, विशेष रूप से गृह मंत्रालय का है।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने एक याचिकाकर्ता की ओर से दलील देते हुए कहा, “चुनाव आयोग यह कहता है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन वह खुद नागरिकता का निर्धारण करने का अधिकारी नहीं है। कोर्ट पहले ही कह चुका है कि चुनाव आयोग की जिम्मेदारी सिर्फ पहचान तय करना है… आप ऐसा सिस्टम नहीं बना सकते जिसमें पांच करोड़ लोगों की नागरिकता पर संदेह किया जाए। जब तक सरकार उचित प्रक्रिया का पालन कर किसी को नागरिकता से वंचित नहीं करती, तब तक यह मान लिया जाता है कि वे भारत के वैध नागरिक हैं।”

कोर्ट की यह टिप्पणी फिलहाल चुनाव आयोग के लिए एक चेतावनी मानी जा रही है और विपक्ष के लिए कानूनी लड़ाई में एक अहम पड़ाव।

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