बीजेपी की चौंकाने वाली चालें और सी पी राधाकृष्णन की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी

BJP's shocking moves and C P Radhakrishnan's candidature for the post of Vice Presidentचिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में अगर कोई पार्टी बार-बार अपने फैसलों से सबको चौंकाने का माद्दा रखती है, तो वह है भारतीय जनता पार्टी (BJP)। चाहे राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू का चयन हो, उपराष्ट्रपति पद पर जगदीप धनखड़ की नियुक्ति, या फिर राम मंदिर की तिथि की घोषणा, बीजेपी अक्सर ऐसे फैसले लेती है जो पहली नजर में अप्रत्याशित लगते हैं, लेकिन दूरगामी रणनीति का हिस्सा होते हैं।

अब एक बार फिर बीजेपी ने चौंकाया है, सी पी  राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकित करके। यह फैसला न सिर्फ एक व्यक्ति की नियुक्ति है, बल्कि एक व्यापक राजनीतिक संदेश है, खासकर दक्षिण भारत को लेकर बीजेपी की भविष्य की रणनीति का।

अप्रत्याशित लेकिन रणनीतिक फैसला

2022 में जब जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया गया था, तब वह फैसला जाट आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में था। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल और एक मुखर वकील, धनखड़ को बीजेपी ने एक “ताक़तवर प्रवर्तक” (tough enforcer) के रूप में पेश किया था। संसद में विपक्ष से तीखे टकराव, कानूनी दलीलों और आक्रामक तेवरों के कारण उन्हें विपक्ष ने जल्दी ही एक पक्षपाती चेहरा मान लिया था।

लेकिन अब सी पी  राधाकृष्णन को आगे कर बीजेपी ने न केवल एक सौम्य और संतुलित नेता को चुना है, बल्कि एक ऐसे चेहरे को सामने लाया है जो दक्षिण भारत के लिए एक ब्रिज का काम कर सकता है।

राधाकृष्णन: एक वैचारिक और क्षेत्रीय संतुलन

राधाकृष्णन महज़ एक नेता नहीं हैं, बल्कि एक विचारधारा के लंबे समय से वाहक हैं। 17 साल की उम्र से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और जनसंघ से जुड़े इस नेता की छवि एक समर्पित और शांत रणनीतिकार की है। वह ना केवल तमिलनाडु जैसे राज्य में राज्यपाल रहते हुए सक्रिय रहे, बल्कि डीएमके नेताओं के सनातन धर्म विरोधी बयानों पर संतुलित प्रतिक्रिया देकर केंद्र की विचारधारा को साफ़ तौर पर प्रस्तुत किया।

उनकी यह रणनीतिक और शांत शैली उन्हें धनखड़ से बिल्कुल अलग बनाती है, जो अक्सर टकराव की राजनीति के लिए पहचाने जाते थे। वहीं, राधाकृष्णन की संवैधानिक भूमिका को निभाने की योग्यता और राजनीतिक baggage से मुक्ति उन्हें एक सर्वमान्य विकल्प बनाती है।

बीजेपी का दक्षिण भारत प्लान

अब बात करें उस बड़ी रणनीति की, जिसका यह फैसला हिस्सा है, बीजेपी का साउथ इंडिया प्लान। कर्नाटक को छोड़ दें, तो दक्षिण भारत बीजेपी के लिए अभी भी एक चुनौती है। तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पार्टी को वैचारिक समर्थन तो मिला है, लेकिन वोटों में वह समर्थन कमज़ोर रहा है।

यहाँ  राधाकृष्णन एक “पैन-साउथ इंडियन” चेहरा हैं, यानी एक ऐसा चेहरा जो पूरे दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए एक भरोसे का प्रतीक बन सकता है। डीएमके के विरोधी तो वे पहले से हैं, लेकिन उनके बोलने का तरीका आक्रामक नहीं बल्कि संस्थागत है। इसीलिए डीएमके की आलोचना करने के बावजूद वे कट्टरपंथी नहीं लगते, बल्कि एक जिम्मेदार पदाधिकारी के रूप में सामने आते हैं।

वे महाराष्ट्र जैसे राज्य में भी एक्टिव रहे हैं, वहाँ के विवादास्पद Public Security Bill पर विपक्ष ने उन्हें पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी। इससे साफ़ होता है कि उनकी साख केवल दक्षिण भारत तक सीमित नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें स्वीकार्यता मिल चुकी है।

नया संदेश: समावेशिता बनाम टकराव

धनखड़ की अचानक विदाई भी अपने आप में एक संकेत थी। यह सिर्फ स्वास्थ्य कारण नहीं, बल्कि एक तात्कालिक निर्णय था जो सरकार की बिना जानकारी के एक महत्त्वपूर्ण विपक्षी प्रस्ताव स्वीकारने के बाद हुआ। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि बीजेपी को एक नरम, संतुलित, और विचारधारा से जुड़ा नेतृत्व संसद में चाहिए, न कि ऐसा नेतृत्व जो टकराव को हवा दे।

राधाकृष्णन इस रिक्त स्थान को न सिर्फ भरते हैं, बल्कि उसे एक नए स्तर पर ले जाते हैं। इससे दक्षिण भारत की आवाज़ भी संसद के उच्च सदन में होगी, और जहां बीजेपी अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ-साथ क्षेत्रीय संतुलन भी साधेगी।

यह सिर्फ एक उपराष्ट्रपति का चुनाव नहीं है, यह एक संदेश है कि बीजेपी अब सामाजिक इंजीनियरिंग से परे जाकर राष्ट्रीय समावेशिता की ओर बढ़ रही है। राधाकृष्णन का चयन एक ऐसा भविष्य दर्शाता है, जहां नीति, संवाद और विचारधारा साथ-साथ चलेंगे और जहां दक्षिण भारत, जिसे अब तक बीजेपी की सबसे बड़ी कमजोरी माना जाता था, शायद उसकी सबसे बड़ी ताक़त बन जाए।

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