राज्यपालों के लिए समयसीमा संबंधी आदेश के बाद केंद्र ने “संवैधानिक अराजकता” की चेतावनी दी
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: सरकार ने राष्ट्रपति और राज्यों के गवर्नरों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से असहमति जताई है। सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि इस तरह की समयसीमाएं संविधान में निर्धारित शक्तियों का उल्लंघन करती हैं, जिससे संवैधानिक व्यवस्था में अराजकता उत्पन्न हो सकती है।
एप्रिल महीने में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने राष्ट्रपति के लिए तीन महीने और गवर्नरों के लिए एक महीने का समयसीमा तय की थी, ताकि वे विधानमंडल से पारित विधेयकों पर निर्णय ले सकें। सरकार का कहना है कि ऐसा करने से संविधान के विभाजन को खतरा उत्पन्न हो सकता है और यह न केवल संवैधानिक व्यवस्था को बाधित करेगा, बल्कि न्यायिक हस्तक्षेप भी संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर सकता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी लिखित याचिका में कहा कि संविधान में इस प्रकार की प्रक्रिया को लागू करने के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, और ऐसी समयसीमा तय करने से संवैधानिक तंत्र में असंतुलन आ सकता है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और गवर्नर की संस्था पूरी तरह से राजनीतिक दृष्टिकोण से सशक्त है और यह लोकतांत्रिक शासन के उच्च आदर्शों का प्रतीक है। किसी भी प्रकार की समस्या को राजनीतिक और संवैधानिक माध्यमों से हल किया जाना चाहिए, न कि न्यायिक हस्तक्षेप के द्वारा।
संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत, गवर्नर विधायिका से प्राप्त विधेयकों को स्वीकृति दे सकते हैं, उसे रोक सकते हैं या राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकते हैं। यदि गवर्नर को लगता है कि विधेयक संविधान या राष्ट्रीय महत्व से संबंधित नहीं है, तो वह उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकते हैं।
12 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु से जुड़े एक मामले में आदेश दिया था कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर गवर्नर द्वारा भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेना होगा। यह आदेश राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधानिकता पर उठाए गए सवालों के बाद विवादित हो गया था। राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत शीर्ष अदालत से 14 सवाल पूछे थे, जिनमें यह जानने की कोशिश की गई थी कि राष्ट्रपति और गवर्नर के पास विधेयकों के संदर्भ में कौन सी शक्तियां हैं।
जुलाई महीने में चीफ जस्टिस बीआर गावई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए सवालों पर सुनवाई के लिए समय सीमा तय की और केंद्र और राज्यों से अपनी लिखित प्रतिक्रियाएं 12 अगस्त तक दाखिल करने को कहा।
