डॉ. बीरबल झा ने पेश किया विकास का त्रिस्तरीय मॉडल: जीविका के लिए अंग्रेज़ी, पहचान के लिए संस्कृति, समाज के लिए नैतिकता
चिरौरी न्यूज
पटना: ब्रिटिश लिंगुआ के प्रबंध निदेशक, सामाजिक उद्यमी और प्रसिद्ध लेखक डॉ. बीरबल झा ने इस सप्ताह अपने प्रेरक संबोधनों में देश के समावेशी विकास के लिए एक स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत किया। उनका तीन सूत्रीय फॉर्मूला — जीविका के लिए अंग्रेज़ी, पहचान के लिए संस्कृति और समाज के लिए नैतिकता — न केवल चिंतन को प्रेरित करता है, बल्कि क्रियान्वयन की दिशा भी दिखाता है।
अंग्रेज़ी को बनाएं आजीविका का औज़ार
“अंग्रेज़ी सिखिए दिखावे के लिए नहीं, जीवन में तरक्की के लिए,” डॉ. झा ने जोर देते हुए कहा कि अंग्रेज़ी अब सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक नहीं, बल्कि रोजगार का साधन बननी चाहिए। उन्होंने आंकड़ों के हवाले से बताया कि देश के 35 लाख स्नातकों में से केवल 25% ही रोजगार योग्य माने जाते हैं, जिसका एक बड़ा कारण संप्रेषण क्षमता की कमी है। उनका मानना है कि अंग्रेज़ी को ग्रामीण भारत तक व्यावसायिक प्रशिक्षण का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
संस्कृति से मिले पहचान की जड़ें
“बिना जड़ों का पेड़ नहीं टिक सकता, और बिना संस्कृति के समाज अपनी पहचान खो बैठता है,” उन्होंने कहा। मिथिलालोक फाउंडेशन के माध्यम से डॉ. झा मैथिली भाषा, मधुबनी कला और लोक परंपराओं को पुनर्जीवित कर रहे हैं। वे मानते हैं कि आधुनिकता और सांस्कृतिक गौरव एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।
समाज के लिए नैतिकता जरूरी
तेजी से बदलते तकनीकी युग में नैतिक शून्यता पर चिंता जताते हुए डॉ. झा ने कहा, “जो क़ानूनी है, वह नैतिक भी हो — यह जरूरी नहीं। नैतिकता एक ऊंचा मानदंड मांगती है।” उन्होंने शिक्षा, शासन और नागरिक जीवन में मूल्य आधारित दृष्टिकोण अपनाने की बात कही।
डॉ. झा का यह विचारात्मक मॉडल न केवल नीति-निर्माताओं के लिए दिशादर्शक है, बल्कि आम नागरिकों के लिए एक आह्वान भी है — “आइए, अंग्रेज़ी सिखें रोजगार के लिए, संस्कृति को जिएं अपनी पहचान के लिए, और नैतिकता को अपनाएं समाज को बेहतर बनाने के लिए।”