डॉ. मनमोहन सिंह और सुषमा स्वराज की संसद में ‘शायरी जुगलबंदी’ अब केवल यादों में ही रह गई

Dr. Manmohan Singh and Sushma Swaraj's 'Shayari Jugalbandi' in Parliament is now only a memory
(Screengrab/Twitter VIdeo)

चिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को आर्थिक सुधारों के अग्रदूत के रूप में जाना जाता है, जिनके नेतृत्व में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। लेकिन इसके अलावा, डॉ. सिंह की एक और गहरी रुचि शायरी में थी, और उन्होंने अक्सर संसद में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर कटाक्ष करने के लिए शेर-ओ-शायरी का सहारा लिया।

सिंह की यह शायरी न केवल उनकी टीम बल्कि विपक्ष के सांसदों से भी तालीयां बटोरती थी, क्योंकि उस समय संसद में हास्य और विनोद का माहौल था, न कि दुश्मनी का। खासकर 15वीं लोकसभा के दौरान 2009-2014 तक भाजपा की वरिष्ठ नेता, दिवंगत सुषमा स्वराज के साथ उनकी शायरी की जुगलबंदी एक शानदार अनुभव बन गई थी।

मार्च 2011 में, जब संसद में विकीलीक्स के एक केबल ने कांग्रेस सरकार पर 2008 के विश्वास मत के दौरान सांसदों को रिश्वत देने का आरोप लगाया था, तो सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमला करते हुए शहाब जफरी की मशहूर शायरी के साथ कहा, “तू इधर उधर की ना बात कर, ये बता कि कारवां क्यों लुटा, हमें राहज़नों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।”

इस पर प्रधानमंत्री ने अल्लामा इकबाल का शेर पेश किया, “माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख मेरा इंतजार देख।” इस शेर ने न केवल सुषमा स्वराज को मुस्कराने पर मजबूर किया, बल्कि पूरे सदन में तालियां भी बजीं।

2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान भी इन दोनों नेताओं के बीच शायरी की एक और जंग छिड़ी। डॉ. सिंह ने मिर्ज़ा गालिब की शायरी के जरिए विपक्ष पर हमला किया, “हमें उनसे है वफ़ा की उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।” इस पर सुषमा स्वराज ने बशीर बद्र की शेर के साथ पलटवार किया, “कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता।”

सुषमा स्वराज के निधन के बाद, डॉ. सिंह ने उन्हें एक महान संसद सदस्य और एक असाधारण मंत्री बताते हुए कहा था, “मैं सुषमा स्वराज के अचानक निधन से स्तब्ध हूं। उनके साथ मेरा गहरा जुड़ाव था, जब वह लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं।”

अब, डॉ. सिंह के निधन के साथ, उनकी और सुषमा स्वराज की शायरी जुगलबंदी केवल हमारी यादों में रह जाएगी। यह उन दिनों की याद दिलाती है जब संसद में राजनीतिक बहसों में कम हंगामा और अधिक तालियां होती थीं, और राजनीतिक संवाद में संघर्ष से ज्यादा सौहार्द था।

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