ईरान ने अमेरिका के हमलों को बताया ‘बर्बर सैन्य आक्रोश’, संयुक्त राष्ट्र और IAEA से की आपात बैठक की मांग
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: ईरान ने अमेरिका द्वारा उसके परमाणु ठिकानों पर किए गए हवाई हमलों की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इसे “बर्बर सैन्य आक्रोश” और अंतरराष्ट्रीय कानून तथा संयुक्त राष्ट्र चार्टर का गंभीर उल्लंघन करार दिया है।
फोर्डो, नतांज और इस्फहान स्थित शांतिपूर्ण परमाणु सुविधाओं पर किए गए अमेरिकी हमलों के बाद, ईरान के विदेश मंत्रालय ने एक कड़ा बयान जारी किया जिसमें कहा गया,
“इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का विदेश मंत्रालय अमेरिका की इस बर्बर सैन्य आक्रामकता की कड़े शब्दों में निंदा करता है, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के बुनियादी सिद्धांतों का अभूतपूर्व उल्लंघन है। हम इस गंभीर अपराध के बेहद खतरनाक प्रभावों और परिणामों के लिए युद्धोन्मादी और कानून तोड़ने वाली अमेरिकी सरकार को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराते हैं।”
ईरान ने इस हमले के लिए इज़रायल को भी दोषी ठहराते हुए उसे “नरसंहारक यहूदीवादी शासन” कहा और आरोप लगाया कि अमेरिका ने इज़रायल के साथ मिलकर यह हमला किया है। तेहरान के अनुसार यह हमला इज़रायल की सैन्य आक्रामकता के दसवें दिन हुआ और अमेरिका की “आपराधिक मिलीभगत” को उजागर करता है।
ईरानी सरकार ने कहा कि यह हमला संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2, पैरा 4 का उल्लंघन है और साथ ही सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2231 का भी, जो 2015 के परमाणु समझौते को समर्थन देता है। ईरान ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ, वे अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी में थे और उनका उद्देश्य पूरी तरह शांतिपूर्ण था।
बयान में आगे कहा गया, “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान यह अधिकार सुरक्षित रखता है कि वह अमेरिकी सैन्य आक्रोश और अपराधों का पूरी ताकत से प्रतिरोध करे और देश की सुरक्षा तथा राष्ट्रीय हितों की रक्षा करे।”
ईरान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाने की मांग की है और IAEA के गवर्नर्स बोर्ड से भी तुरंत इस मसले पर विचार करने का अनुरोध किया है।
ईरान ने IAEA के महानिदेशक पर भी “स्पष्ट पक्षपात” का आरोप लगाया और कहा कि उनके “पूर्वाग्रही रवैये ने इस हालिया तबाही की ज़मीन तैयार की”।
बयान का अंत इन तीखे शब्दों के साथ हुआ, “अब यह पूरी दुनिया के सामने स्पष्ट हो चुका है कि एक ऐसा देश जो खुद को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य मानता है, वह न तो किसी नियम का पालन करता है, न किसी नैतिकता का और न ही किसी अपराध से पीछे हटता है, अगर उससे एक नरसंहारक और कब्ज़ाधारी शासन के हितों की पूर्ति होती हो।”