कश्मीरी पंडित महिला सरला भट की हत्या का मामला 35 साल बाद फिर खुला, छापेमारी जारी
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) ने मंगलवार को केंद्र कश्मीर में कई स्थानों पर छापेमारी की। यह कार्रवाई 35 साल पहले एक कश्मीरी पंडित महिला सरला भट की हत्या के मामले की जांच के सिलसिले में की गई। अधिकारियों ने बताया कि यह छापेमारी उन लोगों के घरों पर की गई जो कभी प्रतिबंधित संगठन जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) से जुड़े रहे हैं। मामला 1990 में लापता हुईं और बाद में मृत पाई गईं सरला भट की हत्या से जुड़ा है।
सरला भट, जो पेशे से नर्स थीं, अप्रैल 1990 में श्रीनगर के सौरा स्थित शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) के छात्रावास से रहस्यमयी परिस्थितियों में लापता हो गई थीं। कुछ दिन बाद उनका शव श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके में पाया गया था। यह घटना उस समय की है जब घाटी में उग्रवाद अपने चरम पर था और कश्मीरी पंडितों पर हमले बढ़ते जा रहे थे। सरला भट की हत्या भी उसी उथल-पुथल वाले दौर में हुई थी, जिसने कश्मीरी पंडित समुदाय को भारी नुकसान पहुंचाया।
अधिकारियों ने बताया कि एसआईए ने जिन लोगों के ठिकानों पर तलाशी ली उनमें जेकेएलएफ के पूर्व सदस्य शामिल हैं। इनमें पूर्व जेकेएलएफ नेता पीर नूरुल हक शाह उर्फ ‘एयर मार्शल’ का नाम प्रमुख रूप से सामने आया है। उनके आवास की भी गहन तलाशी ली गई। एसआईए ने हाल ही में इस पुराने मामले की जांच अपने हाथ में ली है और अब इस मामले को एक नई दिशा में ले जाने की कोशिश कर रही है।
सूत्रों के अनुसार, एसआईए को संदेह है कि सरला भट की हत्या योजनाबद्ध तरीके से की गई थी और इसमें कुछ पूर्व उग्रवादियों की संलिप्तता हो सकती है। एजेंसी अब तकनीकी और फॉरेंसिक साक्ष्यों के साथ-साथ पुराने गवाहों के बयान भी दोबारा खंगाल रही है ताकि न्यायिक प्रक्रिया को मजबूती से आगे बढ़ाया जा सके।
सरकारी सूत्रों ने यह भी बताया कि छापेमारी के दौरान कुछ दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए गए हैं, जिन्हें अब जांच के लिए भेजा जाएगा। एसआईए इस मामले को न्याय तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है और आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां या पूछताछ की जा सकती है।
सरला भट की हत्या का मामला न केवल एक पुरानी जांच की पुनरावृत्ति है, बल्कि यह उन हजारों कश्मीरी पंडितों की पीड़ा का प्रतीक भी है, जो 1990 के दशक में आतंकवाद और असुरक्षा के कारण घाटी छोड़ने पर मजबूर हुए थे। अब, इतने वर्षों बाद इस मामले की फिर से जांच होना, कई लोगों के लिए न्याय की एक नई उम्मीद लेकर आया है।