मालेगांव ब्लास्ट केस: साध्वी प्रज्ञा का सनसनीखेज दावा, “मोदी, योगी और भागवत का नाम लेने का दबाव बनाया गया”

Malegaon Blast Case: Sadhvi Pragya's sensational claim, "Pressure was put on me to take the names of Modi, Yogi and Bhagwat"चिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: मालेगांव ब्लास्ट मामले में एनआईए कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के एक दिन बाद पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने एक चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने दावा किया है कि जांच अधिकारियों ने उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और अन्य कई वरिष्ठ नेताओं के नाम लेने का दबाव बनाया था। प्रज्ञा ने आरोप लगाया कि उन्हें झूठ बोलने के लिए प्रताड़ित किया गया, यहां तक कि उनके फेफड़े काम करना बंद कर चुके थे और उन्हें अस्पताल में अवैध रूप से रखा गया।

प्रज्ञा के मुताबिक, उनसे कहा गया था कि यदि वे इन नामों को लेती हैं तो उन्हें पीटा नहीं जाएगा। उन्होंने बताया कि पूछताछ के दौरान उनसे राम माधव, योगी आदित्यनाथ, मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार जैसे नाम लेने के लिए कहा गया। उन्होंने कहा कि चूंकि वे गुजरात में रहती थीं, इसलिए उनसे मोदी का नाम लेने के लिए खास दबाव बनाया गया। प्रज्ञा ने कहा कि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया क्योंकि उन्हें झूठ बोलने के लिए मजबूर किया जा रहा था।

इससे पहले, अदालत में यह भी सामने आया कि एक गवाह, जो बाद में मुकर गया, ने बयान दिया था कि उसे भी योगी आदित्यनाथ और आरएसएस से जुड़े चार अन्य लोगों का नाम लेने के लिए मजबूर किया गया था। एटीएस के पूर्व अधिकारी मेहबूब मुझावर ने भी आरोप लगाया था कि उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था, जिसे उन्होंने मानने से इनकार कर दिया था। हालांकि अदालत ने इन आरोपों को खारिज कर दिया, लेकिन मुझावर ने शुक्रवार को दोहराया कि जांच को जानबूझकर एक “भगवा आतंक” के रूप में प्रस्तुत करने के इरादे से गलत दिशा में मोड़ा जा रहा था।

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में लगाए गए विस्फोटक उपकरण में धमाका हुआ था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। एनआईए की विशेष अदालत ने प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पूरोहित और अन्य पांच आरोपियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा और उन्हें संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि यह साबित नहीं हो सका कि ब्लास्ट में इस्तेमाल हुई मोटरसाइकिल प्रज्ञा की थी, क्योंकि उसका इंजन नंबर स्पष्ट नहीं था और चेसिस नंबर को मिटा दिया गया था।

वहीं, पीड़ित परिवारों ने कहा है कि वे न्याय के लिए उच्च न्यायालयों, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट का भी रुख करेंगे। कुछ पीड़ितों की ओर से वकील शाहिद नदीम ने भी एनआईए पर सवाल उठाए और कहा कि जिन गवाहों ने अदालत में बयान बदल दिए, उनके खिलाफ झूठी गवाही के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।

यह मामला अब राजनीतिक और कानूनी बहस का केंद्र बन गया है, जहां एक ओर अदालत का फैसला राहत का कारण बना है, वहीं दूसरी ओर पीड़ितों के परिजन अब भी न्याय के लिए संघर्षरत हैं।

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