RBI ने कच्चे तेल की वैश्विक संभावित महंगाई पर चेताया: भारत की तेल कीमतों पर सतर्क नजर जरूरी
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी ताज़ा बुलेटिन में चेतावनी दी है कि वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का भारत की महंगाई पर प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव पड़ सकता है, और इसके लिए लगातार निगरानी व मूल्यांकन जरूरी है।
‘Revisiting the Oil Price and Inflation Nexus in India’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में RBI ने कहा है कि भले ही सरकार के सक्रिय हस्तक्षेप ने अब तक घरेलू तेल कीमतों पर असर को सीमित रखा है, लेकिन कच्चे तेल के आयात पर बढ़ती निर्भरता दीर्घकाल में महंगाई को प्रभावित कर सकती है।
RBI ने सुझाव दिया कि इस जोखिम को कम करने के लिए सरकार को वैकल्पिक और गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना चाहिए। साथ ही, तेल निर्यातक देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते और क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements) के जरिए सस्ते दरों पर तेल आयात की संभावनाएं तलाशनी चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि deregulation (मूल्य नियंत्रण से मुक्ति) के बाद के दौर में अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल कीमतों में बदलाव का असर पेट्रोल और डीजल की घरेलू कीमतों पर स्पष्ट रूप से दिखता है, हालांकि सरकार की ओर से टैक्स, सेस और तेल विपणन कंपनियों के नियंत्रण के जरिए इस प्रभाव को काफी हद तक सीमित किया गया है।
RBI के आंकड़ों के अनुसार, अगर अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में 10% की वृद्धि होती है, तो भारत की हेडलाइन महंगाई दर (headline inflation) में तत्काल रूप से करीब 20 बेसिस प्वाइंट (0.20%) की वृद्धि हो सकती है।
इस बीच, पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि भारत तेल आत्मनिर्भरता की दिशा में आत्मविश्वास से आगे बढ़ रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश ऊर्जा सुरक्षा की ओर कदम-दर-कदम बढ़ रहा है।
पुरी ने बताया कि अब 10 लाख वर्ग किलोमीटर का समुद्री क्षेत्र तेल खोज के लिए खोल दिया गया है और 99% ‘नो-गो’ क्षेत्रों को हटा दिया गया है। इसके तहत Open Acreage Licensing Programme (OALP) के तहत दिए जा रहे तेल व गैस ब्लॉक्स को घरेलू और वैश्विक ऊर्जा कंपनियों से अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। OALP का दसवां राउंड (Round X) निवेश और भागीदारी के नए मानक स्थापित कर सकता है।
कुल मिलाकर, RBI की चेतावनी और सरकार की तैयारियों से साफ है कि भारत को अपनी ऊर्जा नीति को संतुलित रखना होगा—जहां एक ओर आयात पर निर्भरता घटे, वहीं महंगाई और विकास की गति पर नियंत्रण बना रहे।