निर्भीक और शीर्ष स्तरीय पत्रकारिता का प्रतीक संकर्षण ठाकुर नहीं रहे

Sankarshan Thakur, a symbol of fearless and top-level journalism, is no moreचिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: ऐसे दौर में जब पत्रकारिता अक्सर पक्ष-विपक्ष की सीमाओं में सिमटती जा रही थी, संकर्षण ठाकुर उन चंद पत्रकारों में थे जिनकी कलम सिर्फ सत्ता नहीं, सच्चाई की तलाश करती थी। वरिष्ठ पत्रकार और The Telegraph के एडिटर संकर्षण ठाकुर का सोमवार को गुरुग्राम के एक अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे 63 वर्ष के थे।

पत्रकारिता में नैतिक साहस, ज़मीनी जुड़ाव और साहित्यिक संवेदना के दुर्लभ संगम के रूप में पहचाने जाने वाले ठाकुर ने भारतीय पत्रकारिता को एक ऐसा चेहरा दिया, जो न तो सत्ता से डरा और न ही लोकप्रियता के मोह में बहा।

पटना में 1962 में जन्मे ठाकुर, प्रसिद्ध पत्रकार जनार्दन ठाकुर के पुत्र थे। प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर्स, पटना और दिल्ली में प्राप्त करने के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली।

1984 में SUNDAY मैगजीन से अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत करने वाले ठाकुर ने The Indian Express, Tehelka और The Telegraph में काम किया। दो बार The Telegraph से जुड़े रहे ठाकुर की राजनीतिक विश्लेषण और ग्राउंड रिपोर्टिंग ने उन्हें एक अलग ही मुकाम दिया।

उनकी खासियत थी—बेहद संवेदनशील लेखनी, तीखा विश्लेषण और व्यक्तिगत स्टाइल जिसमें अक्सर उनकी कॉलर ऊपर उठी होती थी। बिहार की राजनीति पर उनकी गहरी पकड़ ने उन्हें ना सिर्फ एक पत्रकार बल्कि एक इतिहासकार जैसा दर्जा दिलाया।  उनकी लिखी ‘Subaltern Saheb’, ‘Single Man: The Life and Times of Nitish Kumar of Bihar’ और ‘The Brothers Bihari’ को खूब सराहा गया।

उनकी मौत पर सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक शोक की लहर दौड़ गई। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उन्हें याद करते हुए लिखा, “वो उन कुछ पत्रकारों में से थे जो जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में गए और वहां के लोगों को बिना किसी पूर्वग्रह के सुना।”

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “वे शानदार लेखक और भारत की राजनीति के गहरे विश्लेषक थे। ऐसी पत्रकारिता आज विलुप्त होती जा रही है।”

RJD के मनोज कुमार झा ने लिखा, “उनके विचारों से कोई सहमत हो या असहमत, लेकिन ज़मीनी सच्चाइयों की उनकी पकड़ उन्हें हमेशा यादगार बनाए रखेगी। वे हमेशा धारा के विपरीत तैरना पसंद करते थे।”

कश्मीर, पाकिस्तान, करगिल युद्ध, 1984 के दंगे, इंदिरा गांधी की हत्या से लेकर बिहार की राजनीति तक—हर जगह उनकी कलम ने ऐसी तस्वीरें खींचीं जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती थीं।

Editors Guild of India ने भी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “वो एक निडर ग्राउंड रिपोर्टर थे, जिनकी रिपोर्टिंग ने भारत के कई निर्णायक क्षणों को जीवंत बना दिया।”

संकर्षण ठाकुर के अंतिम संस्कार सोमवार को लोधी रोड श्मशान घाट में किया गया। पत्रकारिता का यह चमकता सितारा चला गया, लेकिन उसकी रौशनी आने वाली पीढ़ियों को सच्ची पत्रकारिता का रास्ता दिखाती रहेगी।

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