शेखचिल्ली निकले फुटबाल के कर्णधार, अब पहले सौ में जगह पाना हुआ भारी

AIFF suspends executive committee member Deepak Sharma for assault on two female players in Goaराजेंद्र सजवान

भले ही फ्रांस ने फीफा वर्ल्ड कप जीता हो लेकिन फीफा रैंकिंग में बेल्जियम पहले और विश्व चैंपियन फ्रांस दूसरे नंबर पर है। ब्राज़ील, इंग्लैंड और पुर्तगाल तीसरे से पांचवें स्थान पर बने हुए हैं। जहां तक अपने देश की बात है तो पिछले सौ सालों की कोशिशों के बावजूदभी पहले सौ में टिके रहने का माद्दा पैदा नहीं कर पाई है, भारतीय फुटबाल।

इसमें दो राय नहीं कि हमारी फुटबाल ने बड़े बड़े ख्वाब देखे। पूर्व फेडरेशन अध्यक्ष प्रियो रंजन दास मुंशी जब तक कुर्सी पर रहे हर फीफा वर्ल्ड कप के बाद भारत की वर्ल्ड कप खेलने की उम्मीदों को चार साल आगे बढा देते थे।

2002, 2006 और फिर 20010 को लक्ष्य बना कर वह किस्से कहानियां सुनाते रहे और भारतीय फुटबाल प्रेमियों को बेवकूफ बनाये रहे। उनके बाद सत्ता संभालने वाले प्रफुल्ल पटक को कौन नहीं जानता। 2018 के बाद 2022 और अब 2026 में भारत कोवर्ल्ड कप खिलाना चाहते हैं।जैसे कि दुनिया की फुटबाल उनके इशारे पर चलती हो।

अफसोस कि बात यह है कि स्वर्गीय मुंशी की तरह पटेल भी दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल को महज मज़ाक समझते रहे। लेकिन अपना देश इतना महान है कि झूठ बोलने वालों और देशवासियों को गुमराह करने वालों पर कोई एक्शन नहीं लिया जाता। बस यह कह दिया जाता है कि नेताओं का काम ही झूठ बोलना और जनता को गुमराह करना है।जहां तक भारतीय फुटबाल की फीफा रैंकिंग की बात है तो भारत महान 105वें पायेदान पर खड़ा है और बहुत जल्दी तेजी से और पीछे लुढ़क सकता है।

विश्वकप खेलने का दावा करने वाले देश का हाल यह है कि उसे एशियायी खेलों में भी भाग लेने के काबिल नहीं समझा जाता। 1951 और 1962 के एशियायी खेलों में ख़िताब जीतने वाला देश अब महाद्वीप के सबसे फिसड्डी बन कर रह गया है। चार ओलंपिक खेलने वाले देश के का हाल यह है कि उसने उच्चतम फीफा रैंकिंग 1995-96 में हासिल की थी। तब भारतीय फुटबाल 94वें स्थान पर थी। अर्थात आगे की लड़ाई फिर से पहले सौ देशों में स्थान पाने की होगी।

कुछ एक लाख की आबादी वाले देश विश्व कप खेल रहे हैं और डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले देश के पास ग्यारह भरोसे के खिलाड़ी नहीं हैं। यह हाल तब है जबकि फुटबाल पर अन्य खेलों के मुकाबले कहीं ज्यादा खर्च हो रहा है। विदेशी कोच पिछले पचास साल से आ जा रहे हैं, सब्जबाग दिखा रहे हैं, कभी भारतीय खिलाड़ियों को ‘सोया शेर’ बताते हैं तो कभी ब्लू टाइगर्स कहते हैं।

देशवासियों के खून पसीने की कमाई उन पर लुटाई जा रही है। खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण सारा तमाशा चुचाप देख रहे हैं। फेडरेशन से कोई सवाल नहीं किया जाता। भला देश में कौनसी फेडरेशन है जिससे सरकार ने कभी सवाल जवाब किया हो! दुनिया के बाकी देश फुटबाल जैसे महान खेल में निरंतर आगें बढ़ने और वर्ल्ड कप खेलने की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन भारतीय फुटबाल का सपना बस पहले सौ में जगह पाने का है। वाह री भारतीय फ़ुटबाल!

Indian Football: Clubs, coaches and referees included in 'Khela'!

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

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